महान संत सेन जी महाराज की 721 जयन्ती पर सत्य-अहिसा और प्रेम की मिसाल
गुरला (भीलवाड़ा,राजस्थान/ बद्रीलाल माली) गुरला के सत्यनारायण सेन की जुबानी "जब भी भारत भूमि पर आदमी अज्ञानता के अंधेरे में भटका है तब तब धरती पर महान आत्माओं ने जन्म लिया और मनुष्यों को सही राह दिखाई और इन आत्माओं के सत्कर्मा के कारण भगवान का दर्जा देकर पूजा जाने लगे, लगभग पांच सौ साल पहले एक महान सन्त सेन महाराज का अवतरण हुआ जिससे बाधव गढ़ की प्रसिद्धी बढ़ा दी
भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार प्रियदास के अनुसार संत शिरोमणि सेन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख कृष्ण 12(द्वादशी) दिन रविवार को वृत्त योग तुला लग्न पूर्व भाद्रपक्ष को चन्दन्यायी के घर में हुआ नन्दा बचपन से ही विनम्र दयालु और ईश्वर में दृढ़ विश्र्वास रखते थे सेन जी महाराज ने गृहस्थ जीवन के साथ भक्ति के मार्ग पर चलने लगे
नदांजी सेन का जीवन स्वजातीय कर्म, साधु सत्संग और ईश्वर आराधना मे व्यतीत होता था ये साधु सत्संग प्रेमी थे मध्यकाल में संतो मे सेन महाराज का स्थान भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुरूप जनमानस को शिक्षा और उपदेश के माध्यम से एकरूपता मे फिरोया, सेन जी महाराज का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो गया कि जनमानस स्वतः ही उनकी ओर खिचा चला जाता था
वृद्धावस्था मे सेन महाराज काशी चले गए और उन्होंने वहीँ कुटीया बनाकर रहने लगे और लोगों को उपदेश देते थे वह क्षेत्र जहां रहते थे सेनपुरा के नाम से जाना जाता था सेन महाराज प्रत्येक जीव मे ईश्वर का दर्शन करते और सत्य अहिंसा तथा प्रेम का संदेश जीवन पर्यंत देते रहे
ज्ञात हो कि बिलासपुर - कटनी रेल्वे लाइन पर जिला उमरिया से 32 किलोमीटर की दूरी पर बाधव गढ़ में स्थित है जो तत्कालीन रीवा नरेश वीर सिंह जूदेव के राज्य काल मे बांधवगढ़ का बड़ा नाम था