प्लास्टिक पर्यावरण,पारिस्थितिकी और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती -ज्ञानेन्द्र रावत

देश (न्यूज डेस्क) प्लास्टिक आज समूची दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। यह केवल पर्यावरण और पारिस्थितिकी का ही संकट नहीं है बल्कि खाद्य पदार्थों के जरिये मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौती बन गया है। असलियत में प्लास्टिक के इस्तेमाल से हालात इतने भयावह हो गये हैं कि शरीर का कोई भी अंग इसके दुष्प्रभाव से अछूता नहीं रहा है। रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की चीजें भी पर्यावरण ही नहीं, बल्कि दिल की सेहत के लिए भी खतरा बनती जा रही हैं। दैनंदिन जीवन में इस्तेमाल किए जाने वाले नमक और चीनी भी प्लास्टिक प्रदूषण से अछूते नहीं रहे हैं। ' माइक्रोप्लास्टिक इन साल्ट एण्ड शुगर ' नामक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि नमक और चीनी के बाद सभी ब्रांडों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं। यह इस बात का जीता-जागता सबूत है कि हमारे दैनिक इस्तेमाल की किसी भी वस्तु में, वह चाहे कोई भी खाद्य पदार्थ ही क्यों न हो, वह माइक्रोप्लास्टिक के संक्रमण से अछूती नहीं है। अध्ययन की मानें तो नमक के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़ों की मात्रा प्रति किलोग्राम 6.71 से 89.15 और चीनी में यह मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम पायी गयी है। यह माइक्रोप्लास्टिक की सर्वत्र मौजूदगी का जीवंत प्रमाण है।
हालिया अध्ययन इसका सबूत है कि समूची दुनिया में दिल की बीमारियों से हुयी तकरीबन तीन लाख छप्पन हजार मौतों का सम्बंध प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाले रसायन डाय-2 ऐथाइलहेक्सिल प्थेलेट यानी डीईएचपी से जुड़ा हुआ है। यह रसायन प्लास्टिक को लचीला और टिकाऊ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। यह रसायन खासतौर पर खाने-पीने के डिब्बे,बर्तन,बोतलें, खाद्य कंटेनर, माइक्रोवेव में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के छोटे कंटेनर, बच्चों के मुलायम प्लास्टिक के खिलौने,आई वी ट्यूब और ब्लड बैग आदि मेडिकल उपकरण, प्लास्टिक पाइप, कीटनाशक, डिटर्जेन्ट और परफ्यूम, नेल पॉलिश, हेयर स्प्रे जैसे कास्मेटिक्स में पाया जाता है। हमारे देश में इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा 1,03,587 को पार कर गया है। इसके बाद चीन और जापान का नम्बर आता है। इस रसायन से करीब 74 फीसदी मौतें मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया,पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में हुती हैं। अनुमान के मुताबिक इससे होने वाले नुक़सान का आंकड़ा 3.74 लाख करोड़ डालर हो सकता है जबकि न्यूयॉर्क यूनीवर्सिटी लैगोन हैल्थ की अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो सिर्फ़ 2018 में इस वजह से हुआ आर्थिक नुक़सान का आंकड़ा 51 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। दरअसल जब यह रसायन टूटकर सूक्ष्म कणों में बदलकर शरीर में पहुंचता है, तब वह हृदय की धमनियों में सूजन बढ़ाता है जिससे हृदय गति रूक सकती है और स्ट्रोक का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है।
सच तो यह है कि मानव शरीर का कोई भी अंग माइक्रो प्लास्टिक से अछूता नहीं है। हर सप्ताह क्रेडिट कार्ड जितना माइक्रो प्लास्टिक इंसान के शरीर में पहुंच रहा है। तुर्की की काकुरोवा यूनीवर्सिटी के शोध से खुलासा हुआ है कि इंसान के दिमाग में 50 फीसदी से ज्यादा माइक्रो प्लास्टिक के कण मौजूद हैं। ये दिल, दिमाग, कैंसर, डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का कारण हो सकते हैं। इसके प्रभाव से समुद्र भी नहीं बच सका है। एक अनुमान के मुताबिक समुद्र में अब कोई जलीय जीव प्लास्टिक के प्रभाव से बचा नहीं रह सका है। और जब जलीय जीव यथा मछली आदि को इंसान खाता है तो ये मानव शरीर में पहुंच जाते हैं। आने वाले समय में समुद्र में जलीय जीवों से ज्यादा प्लास्टिक कण होंगे। 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगी। प्लास्टिक के भयावह खतरों को देखते हुए दुनिया के 40 देश प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगा चुके हैं। इनमें फ्रांस, चीन, इटली, रवांडा और केन्या शामिल हैं। लेकिन भारत का इस बारे में रुख समझ से परे है।
दरअसल प्लास्टिक हर स्थिति में खतरनाक है। यह जब जलस्रोतों में पहुंचती है तो यह पेयजल को तो दूषित बनाती ही है, मृदा प्रदूषण का भी कारण बनती है, नतीजतन मृदा उर्वरता और फसलों के उत्पादन को भी भयावह स्तर तक प्रभावित करती है। वहीं यह वायु प्रदूषण का भी सबसे बड़ा कारण है। वातावरण में फैले प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण इंसान और जीव-जंतुओं के श्वसन तंत्र के माध्यम से उनके फेफड़ों तक को प्रभावित करते हैं। यही गंभीर रूप से स्वास्थ्य जोखिम का कारण बनते हैं। इसका मूल कारण हमारे यहां प्लास्टिक के कुशल प्रबंधन का सर्वथा अभाव है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की मानें तो सन 1950 में समूची दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण 20 लाख टन के करीब था जो 2017 में बढ़कर 35 करोड़ टन तक जा पहुंचा। आने वाले दो दशकों में यह बढ़कर दोगुना यानी 70 करोड़ टन का आंकड़ा पार कर लेगा। इसलिए अब जल्द सचेत हो जाने का समय है।
सबसे बड़ी बात प्लास्टिक उत्पादन में कटौती को लेकर हाई एंबिशन गठबंधन प्लास्टिक प्रदूषण से निजात पाने की दिशा में कचरे के निस्तारण के साथ इसके उत्पादन को सीमित करने का पक्षधर है, वहीं ग्लोबल कोलिएशन फार सस्टेनेबिल प्लास्टिक ग्रुप जिसमें भारत,रूस, चीन, ईरान, सऊदी अरब, क्यूबा और बहरीन जैसे देश हैं जो विकासशील देशों के लिए प्लास्टिक उत्पादन में बाध्य होकर कटौती किए जाने को व्यावहारिक नहीं मानते हैं। ये प्लास्टिक जनित प्रदूषण से निपटने को स्वैच्छिक लक्ष्य के हिमायती हैं। असल में प्लास्टिक उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले अहम पदार्थ कच्चे तेल एवं नेचुरल गैस से हासिल किए जाते हैं। यही अहम वजह है जिसके चलते पैट्रोकैमिकल्स कंपनियों के साथ साथ जीवाश्म ईंधन पर निर्भर देश प्लास्टिक पर कठोर प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को दक्षिण कोरिया जे जे द्वीप पर प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इसमें प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने हेतु दुनिया के पर्यावरण विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं ताकि आगामी महीनों में इसकी रोकथाम की दिशा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई संधि की जा सके। यदि इस मुद्दे पर सहमति बनती है तो यह समूची दुनिया के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)






