शादी ब्याह के समय तलवास के सेहरा की हाड़ौती क्षैत्र में रहती है मांग

Nov 25, 2024 - 17:53
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शादी ब्याह के समय तलवास के सेहरा की हाड़ौती क्षैत्र में रहती है मांग

बूंदी जिले में पर्यटन नगरी तलवास में शादी-ब्याह का सीजन प्रारंभ होते ही राधेश्याम माली का परिवार सेहरा बनाने के कार्य में सक्रिय हो जाता है, तब जाकर समय पर दुल्हा का सेहरा बन कर तैयार होता है। ब्राह्मण समाज में सेहरा का विशेष महत्व रहता है। दुल्हा सेहरा लगाकर तोरण द्वार पर पहुंचता है। सेहरा बनाना एक कला है। इस कला का प्रदर्शन अलग अलग जगह पर अलग अलग तरीके से होता है। तलवास के सेहरा की विशेष मांग रहती है। तलवास में राधेश्याम माली वर्तमान में सेहरा निर्माण का कार्य करता है। इस कार्य में इनकी पत्नी, बेटा, पौता, पौती भी सहयोग करते हैं।

राधेश्याम माली बताते हैं कि पर सेहरा बनाने का कार्य हमारे परिवार में पीढी दर पीढी चलता आ रहा है। मेरे दादाजी, पिताजी ओर अब मैं इस काम को कर रहा हुं। इन्होने बताया कि सेहरा बनाने के कार्य में खजुर के पैड से नरम नरम पत्ते लाना होता है। इनको साफ करके एक एक पत्ता काम में लिया जाता है। गर्मी के समय इनको यथास्थिति में रखना बड़ा कठिन कार्य रहता है। पानी की मटकियों में तैयार कर रखते हैं। शादी ब्याह की तय दिवस को निर्धारित समय पर सभी को एक साथ जोड़ कर सेहरा तैयार किया जाता है। सिर पर रखने का सेहरा बहुत ही आकर्षक लिये होता है। सेहरा बनाने में परिवार को तीन से चार दिन लग जाते हैं। साफे के हिसाब से साईज बनायी जाती है। इस कार्य में मेरी पत्नी, पुत्र, पौत्र, पौत्री सहयोग करते हैं। बच्चे इस काम को सिख रहे हैं लेकिन अभी ये बच्चे पूर्णतया कुशल नहीं हुये है। बच्चों से पूछने पर यह कार्य परिवार का सहयोग व धन के लिए कर रहे हैं। इन बच्चों को अभी इस कला का महत्व पूर्णरूपेण समझ में नहीं आ रहा है। यह एक बहुत सुंदर कला है। इसको जीवित रखना बहुत जरूरी है। रा

धेश्याम माली वर्तमान में कृषि कार्य करते हैं। कृषि कार्य हेतु भूमि कम होने से कृषि के साथ साथ सेहरा बनाने से आय का साधन भी बना हुआ है। वह बताते हैं कि मेहनत के अनुरूप राशी नहीं मिलती है लेकिन कला को जीवित रखने के लिए यह कार्य करता हूं। मैं चाहता हूं कि इस कला पीछे के बच्चे भी आगे बढाते रहे। इसके लिए इनको भी प्रशिक्षित कर रहा हूं। बच्चों से बात करने पर बच्चों ने यह सम्पूर्ण कार्य सीखने की इच्छा जताई। बच्चों ने बताया चाहे मजदूरी कम मिल रही है लेकिन हमारी पैतृक कला को जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी हैं। वर्तमान में एक सेहरा की कीमत 2500 रूपये मिलते हैं। वर्षभर में इस काम से मिलने वाली राशि से मैं संतुष्ट हैं । क्योंकि हमारे हाथों की कला से बनाए गये सेवरा से दुल्हा सजता है। सेहरा राजा के मुकुट की तरह होता है।

  •  राकेश नामा 

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