सरमथुरा में 'झोलाछापों' पर सख्ती का असर: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उमड़ी मरीजों की भीड़, चरमराई व्यवस्थाएं

सरमथुरा, (धौलपुर/ नाहर सिंह मीना ) सरमथुरा में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) सरमथुरा पर मरीजों की अप्रत्याशित भीड़ उमड़ पड़ी है। मौसम के उतार-चढ़ाव और गर्मी के बढ़ते प्रकोप के कारण उल्टी-दस्त, पेट दर्द जैसी बीमारियों के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। एक ओर जहां यह कार्रवाई अवैध प्रैक्टिस पर लगाम लगाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, वहीं दूसरी ओर इसने सीएचसी सरमथुरा की लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है।
- ओपीडी से वार्ड तक, मरीजों का अंबार
मिली जानकारी के अनुसार, सीएचसी सरमथुरा की ओपीडी में बीते दिनों 1000 से अधिक मरीज इलाज के लिए पहुंचे, जो सामान्य दिनों की तुलना में कहीं अधिक है। अस्पताल प्रभारी ने बताया कि गर्मी के इस मौसम में ओपीडी से लेकर वार्ड तक मरीजों की संख्या डेढ़ से दो गुना बढ़ गई है। यह स्थिति अस्पताल के सीमित संसाधनों और कर्मचारियों पर भारी दबाव डाल रही है।
- झोलाछापों पर कार्रवाई बनी 'ट्रिगर'
अस्पताल प्रभारी ने इस भारी भीड़ का मुख्य कारण स्वास्थ्य विभाग और पुलिस द्वारा सरमथुरा में झोलाछाप डॉक्टरों पर की गई कार्रवाई को बताया। उनके अनुसार, पहले ये मरीज झोलाछापों से इलाज करवा लेते थे, लेकिन अब कानूनी शिकंजे के डर से वे सरकारी अस्पताल का रुख कर रहे हैं। हालांकि, यह कार्रवाई मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ रोकने के लिए आवश्यक थी, लेकिन इसने सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरियों को उजागर कर दिया है।
- डॉक्टरों की भारी कमी: कैसे सुधरेगी व्यवस्था?
सीएचसी सरमथुरा की सबसे गंभीर समस्या डॉक्टरों की भारी कमी है। चौंकाने वाली बात यह है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सकों के 12 पद सृजित हैं, लेकिन वर्तमान में मात्र 3 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। पिछले लंबे समय से 9 डॉक्टरों के पद रिक्त चल रहे हैं। ऐसे में, जब मरीजों की संख्या में इतनी बढ़ोतरी हुई है, तो मौजूदा तीन डॉक्टरों के लिए इतने बड़े caseload को संभालना असंभव-सा हो गया है। मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है और गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलने में भी परेशानी आ रही है।
- व्यवस्था पर उठते गंभीर सवाल
यह स्थिति स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जब यह ज्ञात था कि क्षेत्र में झोलाछापों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है और उन पर कार्रवाई से मरीजों का दबाव सरकारी अस्पतालों पर बढ़ेगा, तो क्या विभाग ने पहले से तैयारी क्यों नहीं की? डॉक्टरों के इतने लंबे समय से रिक्त पड़े पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लगातार मांग की है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त किया जाए। वे सवाल उठा रहे हैं कि "क्या विभाग द्वारा व्यवस्था को कब तक सुधारा जाएगा या फिर ऐसे ही चलता रहेगा?" यदि जल्द ही डॉक्टरों की कमी को पूरा नहीं किया गया और अस्पताल में अन्य आवश्यक सुविधाएं नहीं बढ़ाई गईं, तो सरमथुरा और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा जाएंगी, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा। यह देखना होगा कि प्रशासन इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए क्या ठोस कदम उठाता है।






