अनुसंधान में बरती गंभीर लापरवाही, पुलिस अधीक्षक को दिये कार्यवाही के आदेश, आदेशों की पालना नहीं करने पर अदालत ने जताई नाराजगी, एस.पी. से मांगी रिपोर्ट
भीलवाड़ा शहर के आजाद चौक क्षेत्र में स्थित किरायेशुदा दुकान का कब्जा रातोंरात मकान मालिक द्वारा लिये जाने वाले चर्चित प्रकरण में अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, संख्या 02, भीलवाडा की पीठासीन अधिकारी श्रीमती नीति वर्मा द्वारा अनुसंधान में लापरवाही बरतने पर नाराजगी जताते हुये पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा को मामले में निष्पक्ष अनुसंधान किये जाने हेतु उच्चाधिकारी को नियुक्त करने तथा अग्रीम अनुसंधान पुलिस नियमावली के तहत निष्पक्ष एवं नियमानुसार कर रिपोर्ट 15 दिन के भीतर भीतर प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया, जिसमें पुलिस थाना सिटी कोतवाली के सब इन्स्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी राजपाल सिंह की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पणी कर नाराजगी जाहिर की।
आजाद चौक में स्थित किरायेशुदा दुकान को मालिक द्वारा रातोंरात खाली करने की नियत से दुकान का कब्जा छीन लेने के मामले में पुलिस कर्मियों की सहभागिता ने खाकी को शर्मसार किया है। पुलिस थाना भीमगंज और सिटीकोतवाली के अनुसंधान अधिकारीयों के कारण खाकी दागदार हो रही है। इस प्रकरण में वर्दीधारियों पर अपराधियों के साथ मिलीभगत करने व कानून की अव्हेलना आदि के आरोप लगते रहे हैं। जिस पर समय-समय पर न्यायालय द्वारा सही एवं उचित दिशा में निष्पक्ष अनुसंधान किये जाने के निर्देश भी पुलिस को बार-बार दिये जाते रहे हैं। न्यायालय ने पुलिस के अनुसंधान में खामियों और ड्यूटी में कोताही को उजागर करते हुये संबंधित अनुसंधान अधिकारी के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है।
वर्ष-2021 में न्यायालय के समक्ष भरत कुमार साडानी द्वारा जरिये अधिवक्ता ललित कुमावत, मनीष नागोरी एवं ऋत्विका राव के फेयर इन्वेस्टीगेशन की याचिका दायर की, जिनके द्वारा पैरवी करते हुये न्यायालय को बताया कि अनुसंधान अधिकारी मामले में निष्पक्ष अनुसंधान नहीं कर रहा है। अनिश्चितकाल तक अनुसंधान को रोके रख लापरवाही को दर्शित कर रहा है जिससे अनुसंधान पूर्ण नहीं हो रहा है। आरोपी को लाभ पहुंचाने के लिये आज दिन तक अभियुक्त के नमुना हस्ताक्षर नहीं लिये गये हैं तथा हितबद्ध गवाह के बयान दर्ज नहीं किये गये हैं। परिवादी के अधिवक्ता ललित कुमावत, मनीष नागोरी एवं ऋत्विका राव द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करते हुये न्यायालय ने यह कहा है कि अनुसंधान अधिकारी द्वारा प्रकरण में अनुसंधान एफएसएल रिपोर्ट आने तक रोके रखना न्यायोचित नहीं है जो कि अनुसंधान अधिकारी की लापरवाही को दर्शाता है साथ ही प्रकरण में निष्पक्ष अनुसंधान नहीं होने की ओर भी इशारा करता है, जबकि प्रकरण काफी लम्बे समय से पेण्डिंग है, जिससे परिवादी के न्याय से वंचित होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। जिस पर न्यायालय द्वारा प्रकरण में निष्पक्ष अनुसंधान किये जाने हेतु अन्य उच्चाधिकारी को नियुक्त कर अग्रिम अनुसंधान पुलिस नियमावली के तहत निष्पक्ष एवं नियमानुसार तथा अनुसंधान के संबंध में रिपोर्ट प्रत्येक 15 दिन के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश पुलिस अधिक्षक को जारी किये, साथ ही इसमें चूक होने पर गंभीरता से लिये जाने की चेतावनी भी दी गई।
क्या है मामला ? पुलिस थाना भीमगंज में वर्ष 2021 में एक एफआईआर में प्रार्थी भरत कुमार सोडानी ने बताया कि नवीन कुमार सिंधी और कुछ अन्य लोगों ने रातोंरात समाज कंटकों की मदद से उसकी किरायेशुदा दुकान पर लगे तालों को मकानमालिक ने तोड़कर अवैध रूप से खाली करवाया। दुकान का कब्जा छीनकर लाखों रूपये के सामान को गायब करवा दिया। मामले की जॉच तत्कालिन अनुसंधान अधिकारी सहायक उपनिरीक्षण अनवर सिलावट को दी गई, आरोप है कि एफआईआर दर्ज करने के बाद से अनुसंधान अधिकारी आरोपियों को बचाने के प्रयास में लगा रहा, समय-समय पर कोर्ट तथा माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से दिये गये दिशानिर्देशों की जानबुझकर पनालना नहीं की गई। विधि के निदेशों के खिलाफ जाकर दुषित अनुसंधान किया गया। कोर्ट ने प्रार्थी और अनुसंधान अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराये गये दस्तावेजी साक्ष्यस कोर्ट के आदेश और दोनों पक्षों को सुनने के बाद तत्कालिन सहायक उपनिरीक्षण अनवर सिलावट हुसैन के खिलाफ वर्ष 2022 में अनुशासनात्मक विभागीय कार्यवाही करने और कार्यवाही की सूचना कोर्ट में उपलब्ध कराने के आदेश दिये गये। वहीं मामले में किसी और अधिकारी से जाँच कराने के आदेश दिये गये।
गौरतलब है कि आजाद चौक में किरायेशुदा दुकान से जबरन कब्जा छिन लेने के इस चर्चित प्रकरण में कोर्टों द्वारा बार-बार दिये गये आदेश एवं निर्देशों की पालना में आज दिन तक करीब ढाई वर्ष की लम्बी अवधी के पश्चात् भी अनुसंधान पुरा कर अंतिम परिणाम रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश करने में पुलिस असफल रही है, ना ही अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारीगण से संबंधित अनुसंधान अधिकारी ने अनुसंधान को लम्बित रखने के विस्तृत कारणों को बताकर अनुसंधान को पेण्डिंग रखने की स्वीकृति ली गई है। मामले में अनुसंधान अधिकारी के साथ अपराधियों की मिलाभगती होने के गंभीर आरोप लगने के पश्चात् भी अनुसंधान अधिकारी द्वारा प्रार्थी के भाई आशीष सोडानी जो कि वक्त घटना उपस्थित होने के बावजुद उसके बयान आज दिन तक लेखबद्ध नहीं किये गये, न ही अभियुक्त के नमुना हस्ताक्षर लेकर एफएसएल जॉच कराये जाने हेतु अनुसंधान किया गया, जो कि अनुसंधान अधिकारी की घौर लापरवाही एवं अनियमितता का आचरण दर्शित किया जाकर कार्यवाही किये जाने के प्रथमदृष्ट्या संदेह पत्रावली पर मौजुद है, जिस संबंध में न्यायालय ने आदेश पारित किया है।
ए.सी.जे.एम. 02 कोर्ट की जज श्रीमती नीति वर्मा ने अपने आदेश में कहा कि मात्र एफएसएल रिपोर्ट को आधार बनाकर हस्तगत प्रकरण में भी अनुसंधान अधिकारी राजपाल सिंह द्वारा अनुसंधान नहीं किया जाना व अनुसंधान पत्रावली के संबंध में सवाल पुछे जाने पर अनुसंधान के तथ्यों के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी उसे नहीं होना भी प्रकट होता है। जैसा कि स्वयं अनुसंधान अधिकारी ने आपरोपी के हस्ताक्षर अनुसंधान में आवश्यक नहीं होने का तथ्य लिखित में दिया ऐसे में अनुसंधान अधिकारी द्वार प्रकरण में मात्र प्रार्थी के हस्ताक्षरों की एफएसएल जॉच कराये जाने पर जोर देकर प्रकरण में अनुसंधान एफएसएल रिपोर्ट आने तक रोके रखने का व्यक्त किया गया तथ्य न्यायोचित नहीं माना गया, जिस पर कोर्ट ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। काफी लम्बे समय से अनुसंधान लम्बित है लेकिन स्थिति वही बनी हुई है।