हाथियों को मारना चिंता का विषय - मीणा

Sep 17, 2024 - 17:47
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हाथियों को मारना चिंता का विषय - मीणा

वन वनस्पति वन्यजीव एवं अभयारण्य क्षेत्र मानव  के साथ सभी प्राणियों जल थल नभ चर चाहें जहां भी रहते हों उनके अनुकूल प्राकृतिक वातावरण बनाने का काम हमेशा करते आयें है ओर करते रहेंगे यह  कटुसत्य है इनके बगैर कोई सुरक्षित नहीं है।  बड़ते पर्यावरणीय ख़तरों से निजात पाने के लिए हमें स्वच्छ सुंदर शुद्ध वायु वातावरण की वर्तमान में बहुत अधिक आवश्यकता है प्रत्येक देश राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय ख़तरों कों लेकर चिंतित हैं,  बड़ते तापघात वायु प्रदुषण आक्सीजन की कमी घटते जल स्तर बढ़ती जनसंख्या और प्राकृतिक संतुलन को कैसे बनाएं रखा जा सकता है एक विचारणीय मुद्दा होने के साथ चिंतनीय विषय है। रोज एक हैक्टेयर भूमि से  जंगल सा़फ हों रहें हैं, वन्य जीव आवासों की तलाश में आबादी क्षेत्रों में आने लगें हैं, और यह होना भी है क्योंकि उनके प्राकृतिक आवासों को नित उजाड़ा जा रहा है उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है साथ में छेड़छाड़ आम बात है।
वन्य जीवों के उजड़ते आवासों तथा बढ़ती अमानवीय घटनाओं से सभी जीव चिंतित सहमें से दिखाई देने लगे हैं, प्राकृतिक व मानव निर्मित आपदाओं का भी सर्वाधिक प्रभाव इन जीवों को भुगतना पड़ता है क्योंकि मानव स्वयं अपने खिलाफ कोई फैसला नहीं लेता जबकि वह अन्य प्राणियों को ख़तरे के काल में डाल देता है, वर्तमान में यही हों रहा है। जिम्बाब्वे में भंयकर सुखा पड़ने से वहां मानव व वन्य जीवों में आपसी टकराव बड़ने की शंकाओं के साथ पर्यावरण मंत्री ने प्राकृतिक रिजर्व हवांगे में 200  हाथियों को मारने के आदेश दे दिए उनका कहना है कि बोत्सवाना के बाद दुनिया में दुसरे सबसे अधिक हाथी यहां है और सुखे से बचने के लिए हाथियों का शिकार किया जाना तय किया है लेकिन आखिर प्रशन यह आता है कि क्या हाथियों को मारना ही उच्चित है उन्हें दुसरे प्रांत या दुसरे देश में भी भेजा जा सकता है। यदि विपरीत परिस्थितियों में  हाथी नहीं बचा सकेंगे तब अन्य वन्य जीवों का क्या होगा एक गोर करने की आवश्यकता है। हाल ही उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले के महसी क्षेत्र में भेड़िया का आतंक का कारण क्या रहा, फिर उनकी हत्या के आदेश एक चिंता का विषय है और वैसे भी भेड़िये एका एक नरभक्षी क्यों बनें कहीं उनके आवासों को तो नहीं उजाड़ा जा रहा है या फिर उन्हें डराय धमकाया जा रहा हो। मामला यहीं नहीं रूक रहा राजस्थान के बाड़मेर जिले के लीलसर गांव में 12 अगस्त को 20 हिरणों का शिकार, अलवर जिले के क्यारा गांव में 11 राष्ट्रीय पक्षी मोरों की मौत भी एक चिंतनीय विषय है जिनका कोई पता नहीं लगा की आखिर मौतें क्यों व कैसे हुई, शिकारी कौन थे सोचने योग्य है।
राजस्थान के सरिस्का राष्ट्रीय टाईगर रिजर्व क्षेत्र के बाघ विहीन होने पर यहां पैंथरो की संख्या बहुतायत में होने के साथ सरिस्का कों इनका संरक्षण मिला, लेकिन पुनः टाईगर्स आबाद होने पर यहां पैंथरो पर संकट का साया मंडराता नजर आ रहा है,  पिछले वर्ष 2022,23तथा 2024 के 20 महिनों में 20 पैंथरो की मौत का पता चला है तथा शेष पैंथरो का आखिरी हाल क्या होगा क्या पैंथर सुरक्षित है या ख़तरे में वर्तमान परिस्थितियां सुरक्षा व्यवस्थाओं पर निशाना साधते नज़र आती है।
हाथी से लेकर सर्प या कहें एक छोटे से छोटे वन्य जीव का पारिस्थितिकी सिस्टम को अनुकूल बनानें में बढ़ा महत्व होता है जहां ये वन्य जीव रहते वहां विकास के नाम ट्यूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है इनके आवासों को उजाड़ कर कंक्रीट के महल खड़े करना फिर इनकी आजादी को छिनना उनके साथ बदसलूकी करना उन्हें डराना आम बातें बन रही है जब ये अपने स्वभाव में बदलाव लाते हैं तब इन्हें नरभक्षी कहते मौत के घाट उतार दिया जा रहा है शिकार किया जा रहा है लेकिन चिंता ना समाज को ना सरकारों को क्योंकि ये वन्य जीव है। यदि ऐसा नहीं होता तो ना जिम्बाब्वे में हाथियों को मराया जाता ना भारत में हिरणों मोरों का शिकार होता नाही अभयारण्य क्षेत्रों में वैध अवैध होटलों का निर्माण होता ओर ना ही ऐ परिस्थितियां पैदा होती जिससे कि मानव व भेड़ियों में आपस में भिड़ंत हो सकें। अतः हमें पारिस्थितिकी अनुकूलता कों बनाएं रखने के लिए सभी प्रकार की वनस्पतियों वनों वन्य जीवों तथा अभयारण्यों कों मानवीय दखलन से बचाने के साथ इन्हें सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए तथा वर्तमान में मारें जा रहें हाथियों को अन्यत्र सरंक्षण देना उच्चित होगा। ये लेखक के अपने निजी विचार है।

  • लेखक - राम भरोस मीणा, पर्यावरणविद्

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