किसान का कोड़ा -महात्मा फूले की जयन्ती पर विशेष

उदयपुरवाटी (सुमेरसिंह राव) महात्मा जोति राव फूले ने तत्कालीन परिस्थितियों से रूबरू होकर 1883 में किसान का कोड़ा नामक ग्रंथ की रचना की थी किंतु उनके देहान्त के बाद इसका प्रकाशन हुआ.उस समय छोटे क़िसानों की पशुओं से भी बदतर हालत को इस ग्रंथ में रेखांकित किया है.क़िसानों की निर्धनता अशिक्षा कुप्रथाओं पर फुले ने कोड़ा चलाया है साथ ही उन्होंने तत्कालीन सरकार को अनेक कृषि सुधार के उपाय सुझायें हैं जिनका अनुसरण कर किसानों को समाज की मुख्य धारा में लाया जा सकता है.
किसान की दरिद्रता के तीन कारण यथा कृषि पर जनसंख्या का बढ़ता दवाब पंडे पुरोहित वर्ग महाजन और शासक तथा नौकरशाही द्वारा किसानों का शोषण हैं.उन्होंने कहा कि भूमि पर गिरने वाली हर बूंद को सहेजना होगा तालाब बांध बनाये जायें तालाबों नदी नालों की गाद को किसान अपने खेतों में डालें,हरे पेड़ काटने पर पाबंदी हो अच्छी नस्ल की भेड़ बकरियाँ विदेशों से ख़रीद कर पशुपालकों को दे किसानों को ऋणमुक्त किया जाये उन्हें कम ब्याज पर ऋण दिया जाये.उत्तम बीज हल औजार दिये जाये कृषकों के बालकों को निःशुल्क शिक्षा दी जाये.
हर वर्ष श्रावण मास में कृषि प्रदर्शनियाँ लगायी जाये किसानों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाये.कृषि अध्ययन के लिये कृषक पुत्रों को विदेश भेजें तथा देश में भी कृषि विश्वविद्यालय खोले जायें. जरा विचार करें जिन मुद्दों के लिये किसान आज भी आंदोलन कर रहे हैं उन्हें महात्मा फूले ने डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ही सरकार के समक्ष रख दिया था.ऐसे दूरदृष्टा थे महात्मा फूले.उनकी जयन्ती पर शत शत प्रणाम.
- लेखक मंगलचन्द सैनी पूर्व तहसीलदार






