घुमंतू-बंजारा समाज की संवेदनाओं का कितना मोल? – शेरसिंह बडगुजर
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज में रहने की आदत है, और वह समाज में आपसी सामंजस्य बनाए हुए रहता है । ये कहावत भारत में अत्यधिक प्रचलित है, क्योंकि भारत में विभिन्न प्रकार की जातिया निवास करती है । हर जाती का अपना एक अलग वजूद होता है और उनकी अपनी एक संस्कृति होती है । ये विभिन्न संस्कृति का मेल-जोल ही भारत को अनोखा राष्ट्र बनाता है ।
ये विभिन्न प्रकार की संस्कृति क्या आज भी ये जीवित है, शायद नहीं ?, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है भारत की सबसे अहम् माने जाने वाली जनजाति घुमन्तु प्रजाति जो आज लुप्त होने की कगार पर है । घुमंतू समाज का नाम लेते ही हमारे सामने एक ऐसी तस्वीर उभरती है, जिन्हे अक्सर घूमता हुआ देखा जा सकता है । जो अपने साथ अपना यूनिक कल्चर, लोकगीत सुनाते चलते है । ये वहीं समाज है जो देश आज़ाद होने से पहले परिवहन, व्यापार और समाज सुधार का काम किया करते थे । यह समाज आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा हैं । इस समाज को आम लोगों से लेकर सरकार तक नज़र-अंदाज़ किया जा रहा है । इसमें कहीं न कहीं मीडिया और प्रशासन की भी भूमिका रही है । घुमंतू समाज के लोगों की मुख्य समस्याएं मेनस्ट्रीम मीडिया में भी नहीं आती है ।