पितृ दिवस पर विशेष रिपोर्ट, चारों धामों का द्वार पिता ही है
लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) हमारे ग्रंथों में माता-पिता और गुरु को ही भगवान माना गया है। इनकी सेवा और भक्ति के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं। ऐसा कहा जाता है कि श्रवण कुमार को अपने माता-पिता की सेवा के लिए भक्त प्रह्लाद और ध्रुव के बराबर का स्थान दिया गया। आज भी दुनिया भर में लोग अपने पिता के कठिन परिश्रम को सम्मान देने के लिए पितृ दिवस मनाते हैं।हमारे ग्रन्थों में माता-पिता और गुरु तीनों को ही देवता माना गया है। इनकी सेवा और भक्ति में कसर रह जाए तो फिर ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं। और अगर हमने इनकी सेवा पूरे मन से की तो भगवान स्वयं कच्चे धागे से बंधे भक्त के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। आखिर श्रवण कुमार में ऐसा क्या खास था कि किसी भी भगवान से उनकी अहमियत कम नहीं है। माता-पिता की भक्ति और सेवा ने उसे भक्त प्रह्लाद और धु्रव के बराबर का आसन दिलाया है। पिता चाहे कैसे भी वचन बोले, कैसा भी बर्ताव करे, संतान को उनके प्रति श्रद्धा और विनम्रता से आज्ञाकारी होना ही चाहिए। केवल इतना सूत्र भर साध लेने से हम उस ईश्वर के राज्य के अधिकारी बन जाते हैं, जिसे पाने के लिए जाने कितने तपस्वियों ने शरीर गलाया, बरसों साधना की। कन्धे पर माता-पिता को लेकर तीर्थ कराने निकला श्रवण जब उनकी प्यास बुझाने के लिए पानी भरते हुए राजा दशरथ का एक तीर लग जाने से प्राण त्यागता है, तब वह अन्तिम इच्छा में यही कहता है मेरे माता-पिता प्यासे हैं आप उन्हें जाकर पानी पिला दें। प्राण त्यागते हुए भी जिसे अपने माता-पिता का ध्यान रहे, वह संतान उस युग में ही नहीं, इस युग में भी धन्य है। उसे किसी काल की परिधि में नहीं बांध सकते।
मानवीय रिश्तों में दुनिया में सबसे बड़ा स्थान मां को दिया जाता है, लेकिन एक बच्चे को बड़ा और सभ्य बनाने में उसके पिता का योगदान कम करके नहीं आंका जा सकता। बच्चे को जब कोई खरोंच लग जाती है तो जितना दर्द एक मां महसूस करती है, वही दर्द एक पिता भी महसूस करते हैं। यह अलग बात है कि बेटे को चोट लगने पर मां पुचकार देती है,वहीं पिता अपने बेटे की चोट पर व्यथित तो होता है लेकिन उसे बेटे के सामने मजबूत बने रहना है। ताकि बेटा उसे देख कर जीवन की समस्याओं से लड़ने का पाठ सीखे, सख्त एवं निडर बनकर जिंदगी की तकलीफों का सामना करने में सक्षम हो। माँ ममता का सागर है पर पिता उसका किनारा है। माँ से ही बनता घर है पर पिता घर का सहारा है। माँ से स्वर्ग है माँ से बैकुंठ, माँ से ही चारों धाम है पर इन सब का द्वार तो पिता ही है। आधुनिक समाज में पिता-पुत्र के संबंधों की संस्कृति को जीवंत बनाने की अपेक्षा है।
- कमलेश जैन