राजस्थान और मध्यप्रदेश में बनेगा श्री कृष्ण गमन पथ: 525 किमी का धार्मिक सर्किट उज्जैन से झालावाड़, भरतपुर होते हुए जाएगा मथुरा
भरतपुर ,राजस्थान
भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से लेकर उनकी शिक्षा स्थली उज्जैन को धार्मिक सर्किट के जरिए जोड़ा जाएगा।यह धार्मिक सर्किट करीब 525 किलोमीटर का हो सकता है।यह सर्किट राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार मिलकर बनाएगी ।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा ने श्री कृष्ण गमन पथ बनाने की घोषणा की। श्री शर्मा ने कहा कि भगवान कृष्ण के गमन पथ को जल्द ही तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। मध्यप्रदेश के उज्जैन के सांदीपनि में भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा हासिल की। जानापाव (एमपी ) में भगवान परशुराम ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया।धार के पास अमझेरा में भगवान श्री कृष्ण का रुक्मिणी हरण को लेकर युद्ध हुआ। ऐसे स्थलों को सरकार पर्यटन स्थल बनाने जा रही है।माना जा रहा है कि श्री कृष्ण गमन पथ में राजस्थान के भरतपुर जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल होगा। मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा एवं उनकी पत्नी गीता शर्मा सोमवार को डीग जिले के पूंछरी का लौठा पहुंचे। जहां उन्होंने श्रीनाथजी के मंदिर और मुकुट मुखारविंद की पूजा -अर्चना की। इसके बाद श्री शर्मा उज्जैन पहुंचे।
मुख्यमंत्री ने कहा - स्थान चिन्हित कर लिए हैं - मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से भरतपुर, कोटा, झालावाड़ के रास्ते छोटे छोटे गांव से होते हुए उज्जैन पहुंचे थे। हमने उनकी राह में पड़ने वाले स्थानों को चिन्हित कर लिया है।उन सभी धार्मिक स्थलों को मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकार जोड़ेगी।
राजस्थान में श्रीकृष्ण से जुड़े बड़े तीर्थ - कुछ महीने पहले उत्तरप्रदेश से सटे राजस्थान (डीग) के गांव (वहज) में जमीन के नीचे पूरा गांव मिला था। खुदाई के दौरान कई हजार साल पुराने हड्डियों के अवशेष, बर्तन एवं मूर्तियां मिली थी। यह गांव का इलाका बृज यानी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली से जुड़ा हुआ है। यह इलाका गोवर्धन से महज 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि खुदाई में मिली चीजों का सम्बन्ध भगवान श्रीकृष्ण के काल से है। भगवान श्री कृष्ण स्वयं गाय चराने के दौरान वहज क्षेत्र तक विचरण करने आते थे।वहज गांव में स्थित टीला 5500 साल से भी पुराना है।वहज गांव 84 कोस परिक्रमा मार्ग में भी आता है। गांव में यह मान्यता है कि जब श्री कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठाया था,उस दौरान ग्वालों के साथ वहज गांव के भी लोग थे।जो वारिश से बचने के लिए गोवर्धन पर्वत के नीचे छिपे थे।
मध्यप्रदेश में है चार कृष्ण तीर्थ
सांदीपनि आश्रम के मुताबिक श्रीकृष्ण 11 साल की उम्र में उज्जैन पहुंचे थे। वे उज्जैन में 64 दिनों तक ही रहे। इन 64 दिनों में श्री कृष्ण ने 64 विद्याऐं सीखीं। इन 64 दिनों में उन्होंने 16 दिनों में 16 कलाएं 4 दिन में 4 वेद 6 दिन में 6 शास्त्र ,18 दिन में 18 पुराण 20 दिन में गीता का ज्ञान प्राप्त किया था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने पुनर्जीवित करने की संजीवनी विद्या भी महर्षि सांदीपनि से ही सीखी थी। 64 दिन की शिक्षा पूरी हो जाने के बाद गुरु दक्षिणा के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने सांदीपनि के सबसे छोटे बेटे दत्त का पार्थिव शरीर यमराज से लाकर संजीवनी विद्या से उसे जीवित किया था। भगवान श्री कृष्ण ने उसका नाम पुनर्दत्त रखा और उनकी मां सुश्रुषा को सौंप दिया।
श्रीकृष्ण ने भगवान परशुराम से प्राप्त किया था सुदर्शन चक्र
मान्यता है कि जानापाव भगवान परशुराम की जन्मस्थली थी। यह स्थान इन्दौर के महू के पास स्थित है। जहां श्रीकृष्ण ने भगवान परशुराम से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण 12-13 साल के थे, तब भगवान परशुराम से मिलने उनकी जन्मस्थली जानापाव (इन्दौर )गए थे। भगवान शिव ने यह चक्र त्रिपुरासुर वध के लिए बनाया था। और विष्णुजी को दे दिया था। श्री कृष्ण के पास आने के बाद यह उनके पास ही रहा।
श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया - मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने जिस स्थान से माता रुक्मिणी का हरण किया था।वह अमका -झमका मन्दिर धार जिले के अमझेरा में स्थित है। यह मंदिर 7000 साल पुराना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक यह मंदिर रुक्मिणी जी की कुलदेवी का था। वे यहां पूजा करने आया करतीं थीं। सन् 1720- 40 में इस मंदिर का राजा लाल सिंह ने जीर्णोद्धार करवाया था। पौराणिक युग में इस स्थान को कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था। रुक्मिणी वहीं के राजा की पुत्री थी। उसके बाद मंदिर के नाम से जगह को अमझेरा नाम दिया गया।
यहां श्री कृष्ण की सुदामा से हुई मित्रता
नारायण धाम उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील से करीब 9 किलोमीटर दूर है।यह श्री कृष्ण मंदिर है।यह दुनिया का एक मात्र मंदिर है जिसमें श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ विराजमान हैं। नारायण धाम मंदिर में कृष्ण-सुदामा की अटूट मित्रता को पेड़ों के प्रमाण के तौर पर भी देख सकते हैं। कहा जाता है कि नारायण धाम के पेड़ उन्हीं लकड़ियों से फले फूले है जो श्री कृष्ण व सुदामा ने एकत्रित की थी। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था कि यह वह स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण की सुदामा से मित्रता हुई। यानि गरीबी और अमीरी की मित्रता का सबसे श्रेष्ठ स्थान है।
गोवर्धन से 20 किमी दूर है मुख्यमंत्री का गांव
आपको बता दें कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की श्री गिरिराज जी में अटूट आस्था है।उनका पैतृक गांव अटारी (नदबई ) गोवर्धन से करीब 20 किलोमीटर दूर है। भजनलाल शर्मा मुख्यमंत्री बनने से पहले समय-समय पर गोवर्धन गिरिराज जी के दर्शन करने के लिए आते रहते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी भजनलाल शर्मा सबसे पहले गोवर्धन गिरिराज जी के दर्शन करने पहुंचे थे। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी उज्जैन के रहने वाले हैं।