प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोजपुर अधीन उपस्वास्थ्य केंद्र चिमरावली गोड़ योग प्रशिक्षक ने कराया विद्यालय में योग

लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) कमलेश जैन
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय ठेकड़ा का बास में योग सत्र का आयोजन करते हुए आयुष्मान आरोग्य मंदिर चिमरावली गोड योग प्रशिक्षक दुष्यंत कुमार शर्मा ने कहा कि योगासनों से हम स्थूल शरीर की विकृतियां दूर कर सकते हैं , सूक्ष्म शरीर पर योगासनों की अपेक्षा प्राणायाम का विशेष प्रभाव पड़ता है , प्राणायाम से सुक्ष्म शरीर ही नहीं , स्थूल शरीर पर भी विशेष प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से होता है । हमारे शरीर में फेफड़ों , हृदय एवं मस्तिष्क का एक विशेष महत्व है और इन तीनों का एक दूसरे के स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध भी है ।
स्थूल रूप से प्राणायाम श्वास प्रश्वास के व्यायाम की एक पद्धति है , जिससे फेफडे बलिष्ठ होते हैं, रक्त संचार की व्यवस्था सुधरने से समग्र आरोग्य एवं दीर्घ आयु का लाभ मिलता है । शरीर - विज्ञान के अनुसार मानव के दोनों फेफडे श्वास को अपने भीतर भरने के लिए वे यंत्र हैं , जिनमें भरी हुई वायु समस्त शरीर में पहुंच कर ओषजन, अर्थात् ऑक्सीजन प्रदान करती है और विभिन्न अवयवों से उत्पन्न हुई मलिनता (कोर्बोनिक गैस ) को निकाल बाहर करती है । यह क्रिया ठीक तरह होती रहने से फेफड़े मजबूत होते हैं और रक्त शोधन का कार्य चलता रहता है ।
इस प्रकार , फेफड़ों की कार्य पद्धति का अधुरा पन रक्त शुद्धि व रक्त संचार पर प्रभाव डालता है । उद्वेग चिंता क्रोध निराशा भय कामुकता इत्यादि मनोविकारों का समाधान प्राणायाम द्वारा सरलता पूर्वक किया जा सकता है । इतना ही नहीं , मस्तिष्क की क्षमता के साथ स्मरण शक्ति , कुशाग्रता , सूझ- बूझ, दूरदर्शिता, सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति, धारणा , प्रज्ञा व मेघा इत्यादि मानसिक विशेषताओं का अभिवर्धन करके प्राणायाम द्वारा दीर्घ जीवी । बनकर जीवन का वास्तविक आनंद प्राप्त किया जा सकता है ।
प्रायः अधिकतर व्यक्ति गहरा श्वास लेने के अभ्यस्त नहीं होते , जिससे फेफड़ों का लगभग एक चौथाई भाग कार्य करता है । शेष तीन - चौथाई भाग लगभग निष्क्रिय पडा रहता है । शहद की मक्खी के छत्ते की तरह फेफोड़ों में प्रायः सात करोड़ तीस लाख 'स्पंज ' जैसे कोष्ठक होते हैं । साधारण हल्का श्वास लेने पर उनमें से लगभग दो करोड़ छिद्रों में ही प्राणवायु का संचार होता है , शेष पाँच करोड तीस लाख छिद्रों में प्राण वायु न पहुंचने से ये निष्क्रिय पडे रहते हैं । परिणामतः इनमें जड़ता और मल अर्थात् विजातीय द्रव्य जमने लगते हैं , और क्षय ( टी बी ) , खाँसी , ब्रांकाइटिस आदि भयंकर रोगों से व्यक्ति आक्रान्त हो जाता है ।
उपनिषद में प्राण को माता पिता की संज्ञा दी गई है । प्राण के अधीन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है इसलिए प्राण को परमात्मा की संज्ञा दी गई है ।






