जैन धर्म के प्रवर्तक व प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभनाथ) का गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया

लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) कमलेश जैन
आदिनाथ भगवान (ऋषभदेव) के गर्भ कल्याणक जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का हैं, गर्भ कल्याणक उनकी माता, मरु देवी के गर्भ में होने के समय होने वाली शुभ घटनाओं का वर्णन करता है। यह एक महत्वपूर्ण घटना है जो जैन धर्म में पंचकल्याणक में से एक मानी जाती है।
जब ऋषभदेव की आत्मा अपनी माता के गर्भ में प्रवेश करती है, तो यह एक विशेष शुभ समय होता है। इस समय, देवताओं और देवियों द्वारा गर्भ में शुभता प्रदान की जाती है। रत्न वर्षा होती है और वातावरण आनंदमय हो जाता है। यह घटना बताती है कि एक महान आत्मा का जन्म होने वाला है।
इस अवसर पर लक्ष्मणगढ़ कस्बे स्थित जैन मंदिर में विधि-विधान पूर्वक भगवान आदिनाथ का अभिषेक कर विश्व कल्याण एवं शांति की कामना की गई। भगवान आदिनाथ प्रभु की शांति धारा की गई। जैन समाज के लोकेश माणक जैन ने बताया कि कस्बे में स्थित जैन मंदिर में शांतिधारा माणक जैन तथा लोकेश जैन ने किया। शांतिधारा के बाद भगवान आदिनाथ की पूजा की गई, एवं विधान का आयोजन किया गया जिसमे मधु जैन गुल्लो रानी रजनी जैन शशि बाला सुधा गुड़िया जैन सहित लोकेश जैन माणक जैन धीरज जैन आदि काफी संख्या में लोग शामिल हुए। धीरज जैन ने बताया कि भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। जैन पुराणों के अनुसार राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव हुये। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
आदिनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक घटना है। यह तीर्थंकरों की महानता और उनकी आत्मा की यात्रा को दर्शाता है।






