बच्चों का टीकाकरण करवाएं-डिप्थीरिया से बचायें बचाव ही उपचार, लक्षण दिखते ही तुरंत चिकित्सक से करें सम्पर्क
भरतपुर, 16 अक्टूबर। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. गौरव कपूर ने बताया कि डिप्थीरिया यानी गलघोंटू जो आमतौर पर 16 साल तक के बच्चों में होता है। डिप्थीरिया एक गंभीर जीवाणु संक्रमण है, जिसके लक्षणों में बुखार, गले में खराश, निगलने में कठिनाई और गंभीर मामलों में सांस रुकने जैसी समस्याएं शामिल हैं, अगर इसका समय पर उपचार नहीं किया गया तो यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है। स्वास्थ्य विभाग ने मामले की गहन जांच शुरू कर दी है।
यह होता है डिप्टीथीरिया -
सीएमएचओ ने बताया कि डिप्टीथीरिया बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में गलघोंटू बीमारी कहा जाता है। इस बीमारी के टारगेट पर आमतौर पर 16 साल तक के बच्चे होते हैं। यह बीमारी कोरिनेबैक्टीरियम बैक्टिरिया नामक जीवाणु से होती है। जीवाणु से शरीर में जहर फैलने की संभावना रहती है इसमें मौत तक हो सकती है। डिप्टीथीरिया बीमारी के सबसे प्रमुख लक्षण शुरुआत में सर्दी, खांसी और बुखार के रूप में नजर आते हैं। इस बीमारी में यदि बच्चों को सही समय पर उपचार नहीं मिलता है तो सांस की नली के पास सफेद झिल्ली बनने लगती है। यह झिल्ली बढ़ते हुए श्वास नली को दबा देती है इससे बच्चे को श्वास लेने में तकलीफ होने लगती है और उसका दम घुटने लगता है और इसमें कई बार जान भी जा सकती है।
करवाएं टीकाकरण-
आरसीएचओ डॉ. अमरसिंह ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए हर महीने गांव-गांव में जाकर के टीकाकरण किया जाता है, लेकिन कुछ लोग अपने बच्चों को टीका नहीं लगवाते हैं। ये एक ऐसी बीमारी है, जो कॉमन तब बन जाती है, जब इसका टीका सरकार में निःशुल्क होने के बावजूद भी लोग लगवाने नहीं पहुंचते। ये बीमारी कोरिनेबैक्टीरियम बैक्टिरिया के संक्रमण से होती है। इसमें बैक्टिरिया सबसे पहले गले को नुकसान पहुंचाता है। समुचित इलाज के अभाव में जान तक चली जाती है। डिप्टीथीरिया से बचाव के लिए सरकार द्वारा नियमित टीकाकरण में निःशुल्क टीके लगाए जाते हैं इसके बचाव के लिए जन्म के बाद डेढ, ढाई और साढे तीन माह में पेंटावेलेंट का टीका लगाया जाता है, डेढ से दो साल के बीच में डीपीटी बूस्टर प्रथम डोज एवं 5 से 7 साल के बीच में डीपीटी बूस्टर द्वितीय डोज लगाई जाती है। 10 साल एवं 16 साल पर टीडी का टीका लगाया जाता है।
बचाव ही उपचार है, लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे -
यह बीमारी आमतौर पर एक से दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। अगर किसी चीज या वस्तु में बैक्टीरिया है तो उसे छूने से भी यह फैल सकती है। संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने के दौरान उसके आसपास खड़े लोगों को भी डिप्थीरिया हो सकता है। इसमें सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि कोविड की तरह शुरुआती दिनों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। इस दौरान भी इसके बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति के जरिए फैल रहे होते हैं और संक्रमित व्यक्ति को नुकसान पहुंचा रहे होते हैं। इस बैक्टीरिया से गले में मोटी भूरे रंग की परत जम जाती है, इससे श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। यह धीरे-धीरे बढ़ती रहती है और हृदय को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है। बुखार, गले में खराश, निगलने में कठिनाई और गंभीर मामलों में सांस रुकने जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
- कोशलेन्द्र दत्तात्रेय