चारागाह भूमि का कम होना चिंता का विषय अतिक्रमण से गोवंशों को खतरा बढा
लक्ष्मणगढ़ (अलवर) कमलेश जैन
राजस्थान प्रांत कृषि प्रधान प्रांत है। अधिकांश लोग खेती एवं पशुपालन कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। एक तरफ पशुपालक समुदाय है, जिसकी आजीविका गोचर (साझा चरागाह भूमि) पर मवेशियों को चराने पर निर्भर करती है। दूसरी तरफ़, चारागाह भूमि पर प्रभावशाली लोग अतिक्रमण कर अपना अधिकार जता रहे हैं । पिछले दो दशकों से यहाँ हालात ऐसे ही हैं, चरागाह की ज़मीन पर अतिक्रमण लगातार बढ़ रहा है। और पशुपालक अपने पशुओं और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उपखंड क्षेत्र लक्ष्मणगढ़ सहित गाँवों में चरागाह सामुदायिक हैं ।और पंचायत के हैं, इसलिए किसी व्यक्ति का उन पर दावा नहीं है। इसके विपरीत, जबकि सामुदायिक चरागाह का उपयोग जानवरों को चारा खिलाने के लिए किया जाता है, समय के साथ इन भूखंडों पर अतिक्रमण हो गया है , जिसमें लोग बस्तियाँ बनाने के लिए भूमि को साफ कर रहे हैं।
अब, दूर-दूर तक भटकने के बाद भी जानवर चरने में असमर्थ हैं। ऐसे में यहां पशुओं के लिए चारा दुर्लभ हो रहा है।
अतिक्रमणकर्ता कौन हैं?
चरागाह की जमीन पर अवैध कब्जा कर उस पर निजी लाभ के लिए खेती करने वाले ज्यादातर लोग पैसे वाले और प्रभावशाली हैं। इसके अलावा, कभी-कभी भूमिहीन हाशिए के समुदाय इन जमीनों पर छोटे -छोटे कच्चे मकान बना लेते हैं।
कानून क्या कहता है?
राजस्थान भूमि काश्तकारी अधिनियम 1955, भूमि राजस्व अधिनियम 1956 और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 के अनुसार, चारागाह भूमि की सुरक्षा और विकास की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत, नगर पालिका की है। पंचायती राज नियम 1996 के नियम 136, 169 और 170 के तहत, हर ग्राम पंचायत का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि चारागाह भूमि न केवल अतिक्रमण से मुक्त और सुरक्षित हो, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि उस पर उपयुक्त प्रकार की झाड़ियाँ और पौधे उगाए जाएँ।
समय-समय पर राज्य सरकार ने इस संबंध में सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हुए हैं।
लेकिन प्रशासन जमीनी स्तर पर इसका पालन करने में विफल रहा हैं।
क्षेत्र में पशुधन की अधिकता के कारण चारे की मांग उत्पादन से अधिक रहती है। लेकिन चारे का पारंपरिक स्रोत अब कम होता जा रहा है।
पर्यावरण कार्यकर्ता और गौ रक्षक सांसद केदारनाथ शर्मा समाज सेवी विक्रम सिंह नरूका ने इस संकट के परिणामों के बारे में बताया - उन्होंने कहा, क्षेत्र में गोचर भूमि अपनी जैव विविधता के कारण विशेष महत्व रखती है। इन भूखंडों से न केवल पशुओं को चारा मिलता है, बल्कि इनसे विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे, झाड़ियाँ, घास, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ और खाना पकाने के लिए ईंधन भी मिलता है। यह वन्यजीवों की कई प्रजातियों का प्राकृतिक आवास भी है। ऐसी पारगमन भूमि का सिकुड़ना अंततः मानव जीवन के लिए हानिकारक है।
अनुचित बताया है - चरागाह भूमि से अतिक्रमण नहीं हटाना सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों के भी खिलाफ़ है ।
उपाय , अतिक्रमणों को हटाना और मनरेगा के तहत संरक्षण, राजस्व अभिलेखों में चारागाह के लिए उपयोग की जाने वाली सरकारी भूमि को चिह्नित करने के लिए प्रभावी कार्रवाई आवश्यक है। विभिन्न गौ संरक्षण संगठनों ने चरागाह भूमि को अतिक्रमण से बचाने के प्रयास में कहा कि अब हम सूचना के अधिकार के तहत हर गांव की जमीन और उस पर हुए अतिक्रमण की जानकारी जुटाएंगे। जहां भी अतिक्रमण होगा, वहां सार्वजनिक जमीन के रखरखाव के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करेंगें।