किसानों के मसीहा महात्मा फुले- लेखक-मंगल चंद सैनी पूर्व तहसीलदार
उदयपुरवाटी (सुमेरसिंह) हमारा देश आज भी कृषि प्रधान देश है लगभग 70% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। सबका पेट भरने वाला किसान आज भी महाजन, शासन तथा नौकरशाही द्वारा शोषण का शिकार है। जरा सोचिए महात्मा फुले के समकालीन लगभग 200 वर्ष पूर्व तो किसान की क्या दुर्दशा होगी यह कल्पना ही की जा सकती है।
महात्मा फुले ने किसानों की पीड़ा को आंखों से देखा किसानों की बदहाल स्थिति से रूबरू होकर ही उन्होंने किसान का कोडा ग्रंथ की रचना की जिसमें उनकी माली हालत का वर्णन व सुधार करने हेतु जो सुझाव दिए उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं-
- 1.किसान पुत्रों को शिक्षा दी जाए,
- 2.किसान पुत्रों की पाठशाला में किसानों से ही अध्यापक नियुक्त किए जाएं।
- 3.कृषि कार्य आधुनिक पद्धति से करने हेतु कृषि यंत्र दिए जावें व उनके प्रयोग का प्रशिक्षण दिया जावे।
- 4.गोधन की रक्षा के लिए यूरोपियन व मुसलमान आदि को गोमांस खाने पर प्रतिबंध लगाया जावे।
- 5.पशुधन के सुधार हेतु विदेश से श्रेष्ठ नस्लों का आयात किया जावे।
- 6.किसानों को पशुधन चराने के लिए निःशुल्क भूमियां दी जावे।
- 7.वृक्षों की कटाई रोकने के कानून बनाए जावे।
- 8.मेड बंदी शासकीय खर्चे से की जाकर भूमि के कटाव को रोका जावे।
- 9.किसानों को उर्वरकों की आपूर्ति कर उनके उचित प्रयोग की जानकारी दी जावे।
- 10.नाले नहरें तालाब और बांध बनाकर सिंचाई क्षमता बढ़ाई जावे।
- 11.किसान छात्रों को आदर्श कृषि करने का प्रशिक्षण दिया जावे व उन्हें छात्रवृत्ति दी जावे तथा श्रेष्ठ किसानों को पुरस्कार देकर विदेश भ्रमण कराया जावे।
- 12.कम ब्याज पर ऋण दिया जावे उत्तम बीज व हल औजार उपलब्ध कराये जावे।
- 13.नदी तालाबों नालों में जमी गाद को निःशुल्क निकालने की इजाजत दी जावे ताकि खेतों में डाली जा सके।
उपर्युक्त सुझावों को पढ़ कर लगता है कि आज भी किसानों की अधिकतर समस्याएं समाधान चाह रही हैं जिन समस्याओं को महात्मा फुले लगभग 200 वर्ष पूर्व उठा चुके हैं।