जहाजपुर में जहाजनुमा जिनालय ‘स्वस्तिधाम’ बना आस्था का अद्भुत प्रतीक, भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्राचीन प्रतिमा से शुरू हुई अध्यात्मिक यात्रा

जहाजपुर (मोहम्मद आज़ाद नेब) भीलवाड़ा जिले की ऐतिहासिक नगरी जहाजपुर अब एक अनोखे और भव्य जिनालय के कारण देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। ‘स्वस्तिधाम’ नामक यह जिनालय नगर के नाम ‘जहाजपुर’ से प्रेरित होकर जहाज की आकृति में निर्मित किया गया है, जो न सिर्फ स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि आध्यात्मिकता और समाज की एकजुटता का प्रतीक भी बन चुका है।
इस आध्यात्मिक अध्याय की शुरुआत 23 अप्रैल 2013 को महावीर जयंती के दिन हुई, जब नगर में भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्राचीन प्रतिमा भूगर्भ से प्रकट हुई। प्रशासन द्वारा प्रतिमा को अपने अधीन लिए जाने के बाद, आर्यिका श्री 105 स्वस्ति भूषण माता जी के प्रयासों से 29 अप्रैल को यह प्रतिमा समाज को सौंप दी गई।
इसके बाद मंदिर निर्माण की योजना बनी, और माता जी के सुझाव पर तय किया गया कि जिनालय की आकृति जहाज के स्वरूप में होनी चाहिए। स्वस्तिधाम मंदिर समिति के वाइस प्रेसिडेंट धनराज जैन और मीडिया प्रभारी नेमीचंद जैन ने बताया कि जालोर जिले के एक छोटे जहाजनुमा जिनालय को आदर्श मानते हुए भव्य मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ किया गया। वर्ष 2016 में इसकी नींव रखी गई, और चार वर्षों के परिश्रम के बाद 7 फरवरी 2020 को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा स्वर्णिम वेदिका पर विराजित की गई।
स्वस्तिधाम जिनालय की प्रमुख विशेषताएं:
- गर्भगृह का आकार 100×60 स्क्वायर फीट है।
- सम्पूर्ण जिनालय का क्षेत्रफल 150×80 स्क्वायर फीट में फैला हुआ है।
- मंदिर की आगे से तिकोनी आकृति और छत पर तीन शिखर इसे विशिष्ट बनाते हैं।
- छत पर 24 तीर्थंकरों की चौबीसी जिनालय की स्थापना की गई है।
- जिनालय के चारों ओर 8×5 फीट के जलकुंड बनाए गए हैं, जिनमें फव्वारे और विशेष लाइटिंग की व्यवस्था है, जिससे यह विशाल जहाज की भांति जल पर तैरता हुआ प्रतीत होता है।
आज यह जहाजनुमा जिनालय ‘स्वस्तिधाम’ न केवल जहाजपुर की पहचान बन गया है, बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल भी बन चुका है। यह स्थान न केवल श्रद्धा और भक्ति का केन्द्र है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब समाज एकजुट होकर संकल्प करता है, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है।






