मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म :रक्तदान से रक्त संबंध - निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

Apr 24, 2023 - 19:59
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मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म :रक्तदान से रक्त संबंध  - निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

खैरथल,अलवर (हीरालाल भूरानी)
  हर इंसान में ईश्वर का रूप देखकर हमें मानव मात्र की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए और यही सबसे बड़ा धर्म है, उक्त उदगार शहर के निरंकारी सत्संग भवन पर मानव एकता दिवस के अवसर पर आयोजित समागम में जिला संयोजक सोमनाथ जी ने उपस्थिति श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहे।  रक्तदान सामाजिक कारक न होकर मानवीयता का एक ऐसा दिव्य गुण है जो योगदान की भावना को दर्शाता है।’ उक्त् उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी द्वारा आज ग्राउंड नं0 2 निरंकारी चैक, दिल्ली में आयोजित हुए ‘मानव एकता दिवस’ के अवसर पर विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये गये।

 आगे सत्गुरु माता जी ने मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए फरमाया कि रक्तदान निष्काम सेवा का एक ऐसा सुंदर भाव होता है जिसमें केवल सर्वत्र के भले की कामना ही मन में होती है। फिर हृदय में यह भावना उत्पन्न नहीं होती कि केवल हमारे सगे संबंधी या हमारा परिवार ही महत्वपूर्ण है अपितु समस्त संसार ही हमारा परिवार बन जाता है।  संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन के सचिव आदरणीय जोगिन्दर सुखीजा जी ने जानकारी देते हुए बताया कि मानव एकता दिवस के अवसर पर दिल्ली एवं एन. सी. आर में लगभग 1,200 युनिट. रक्त संग्रहित हुए। इसके अतिरिक्त संपूर्ण भारतवर्ष में भी 50,000 से अधिक युनिट रक्त संग्रहित किया गया।
जैसा कि सर्वविदित ही है कि निरंकारी जगत में ‘मानव एकता दिवस’ का दिन युगप्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी की प्रेरणादायी सिखलाईयों को समर्पित है। इसके साथ ही सेवा के पुंज, पूर्ण समर्पित गुरु भक्त चाचा प्रताप सिंह एवं अन्य महान बलिदानी संतों को भी इस दिन स्मरण किया जाता है। ‘मानव एकता दिवस’ के अवसर पर समूचे देश के विभिन्न स्थानों पर सत्संग कार्यक्रमों के साथ विशाल रूप में रक्तदान शिविरों की श्रृंखलाओं का आरम्भ हो जाता है जो वर्ष भर चलता है।

रक्तदान के महत्व को बताते हुए सत्गुरु माता जी ने फरमाया कि ‘रक्त नालियों में बहे नाड़ियों में नहीं’ कि रक्त देते हुए हम यह विचार नहीं करते कि हमारा रक्त किसके शरीर में जा रहा है यह तो एक सामाजिक कार्य है जो मानवीय मूल्यों को दर्शाता है जिसका एक जीवन्त उदाहरण निरंकारी राजपिता जी ने स्वयं रक्तदान करके दिया।

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