जैन धर्म में क्यों मनाए जाते हैं पर्वाधिराज दशलक्षण पर्व
लक्ष्मणगढ़ ( अलवर / कमलेश जैन) मध्यलोक के अढाई द्वीप में 15 कर्मभूमियां हैं।30 भोगभूमियां हैं।
96 कुभोग भूमियां हैं।
5 भरत 5 ऐरावत क्षेत्र ऐसे 10 क्षेत्र में छह काल का परिवर्तन होते रहता है।
छटवा काल समाप्त होने के 49 दिन पहले आर्यखण्ड में महाप्रलय प्रारम्भ होता है।
प्रथम 7 दिन मूसलाधार प्रचंडकारी जल की वर्षा होती है फिर अग्नि आदि 7 प्रकार की वर्षाएं 7-7 दिन ऐसे 49 दिन होती है।
इन 49 दिन के महाप्रलय का अंतिम दिन होता है आषाढ़ सुदि पूर्णिमा का
इस महाप्रलय के कारण आर्य खण्ड की भूमि 1 योजन ऊँची टीले जैसी है धुलकर पूरा मलवा लवण समुद्र में जाकर मिल जाता है।
इस महाप्रलय के ठीक पहले देवता गण 72 जोड़े विज्यार्ध पर्वत की गुफाओं में छिपा देते हैं फिर उनसे ही आर्यखण्ड की सृष्टी का संचार होता है।
सावन वदि एकम
- करणानुयोग जी के द्रष्टीकोण से सावन वदि एकम का अनादि अनन्त महत्व है।
- अढ़ाई द्वीप के 5 भरत और 5 ऐरावत इन 10 क्षेत्रों में छह काल का परिवर्तन होते रहते हैं।
- अवसर्पिणी काल का प्रारम्भ होता है सावन वदि एकम से
- उत्सर्पिणी काल का प्रारम्भ होता है सावन वदि एकम से
- पहले दूसरे तीसरे चौथे पांचवे छटवे सभी कालों का प्रारम्भ होता है सावन वदि एकम से
- सावन वदि एकम का दिन है नए युग के प्रारम्भ का
- महाप्रलय का 49 वा दिन आषाढ़ सुदि पूर्णिमा छटवे काल के समाप्त का अंतिम दिन रहता है।सावन वदि एकम से 49 दिन तक 7 प्रकार
- की 7 - 7 दिन शुभ शुभ वर्षाएं होती है। सावन वदि एकम से भादों सुदि चौथ तक
- फिर भादों सुदि पंचमी को अमृत की वर्षा होती है।
- विज्यार्ध पर्वत की गुफा में देवों द्वारा छिपाए गए 72 जोड़े आकर अपने बच जाने की ख़ुशी मनाते हैं।
- इस तरह भादों सुदि पंचमी से 10 दिन के दशलक्षण पर्व मनाएं जाते हैं अर्थात दशलक्षण पर्वराज जी सावन वदी एकम से 49 दिन के बाद प्रारम्भ होते हैं।
भादों के महीने के शुक्ल पक्ष में पंचमी से लेकर चौदस तक 10 दिन के लिए जो पर्व मनाए जाते हैं, इसे दशलक्षण पर्व कहा जाता है। पहला दिन उत्तम क्षमा का होता है फिर क्रमशः मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रम्हचर्य। ये दश धर्म निर्ग्रंथ दिगम्बर मुनियों के द्वारा धारण किए जाते हैं और श्रावकगण इन 10 दिनों में इनकी साधना करते हैं। पर्व आने पर धर्मात्मा के अंदर ख़ुशी का संचार होता है, जैसे वर्षा होने पर चातक प्रसन्न होता जाता है, आम के बौर आने पर कोयल कूकती है, सावन आने पर मोर हर्षित होकर नृत्य करता है, जहां पाप कर्मों का दहन किया जाता है, आत्मा से पृथक किया जाता है।अध्यात्म की दृष्टि से यह सबसे पवित्र दिन होते है इन दिनों में अशुभ के कार्य छोड़कर आत्मध्यान प्रतिदिन अवश्य जैन अनुयाईयो को करना चाहिए।