महाराजा सूरजमल की ससुराल की हवेली रखरखाव के अभाव में खण्डर

सलेमपुर कलां की बेटी हंसिया से किया था महाराजा सूरजमल ने विवाह, Bहंसिया के पिता रतीराम थे जयपुर के महाराजा जयसिंह दरबार में थे मालगुजार

May 15, 2021 - 17:44
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महाराजा सूरजमल की ससुराल की हवेली रखरखाव के अभाव में खण्डर

भुसावर (भरतपुर, राजस्थान/ रामचन्द सैनी) भरतपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सूरजमल ने जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह के मालगुजार भुसावर उपखण्ड के गांव सलेमपुर कलां निवासी रतीराम नाहर की पुत्री हंसिया से विवाह किया,जिनके ससुराल पक्ष की प्राचीन दुर्ग, हवेली व कचहरी सहित आदि इमारते रखरखाव के अभाव में खण्डहर हो रही है,जिससे ऐसा लगता है कि कुछ समय बाद प्राचीन धरोहर का नामोनिशान गायब हो जाऐगा और टूटी-फूटी दीवार एवं उनका नाम ही नजर आऐगा। यहां के रतीराम दुर्ग व हवेली आदि प्राचीन इमारतों को देखने पडौसी गांव के अलावा दूर-दराज से ग्रामीण आते है,जो दुर्ग के दरवाजा,हंसिया के जन्म स्थान,हवेली,कुआं आदि को देख कर आज भी आश्चर्य करते है और स्थानीय प्रशासन,ग्राम पंचायत,सांसद व विधायक आदि को कोसते है और जिन पर प्राचीन इमारतों के खण्डहर होने से बचाव को मदद नही करना एवं रूचि नही रखना के आरोप लगाते है। गांव के लोगों ने कई बार सांसद व विधायक सहित प्रशासन से प्राचीन इमारतों के रखरखाव पर ध्यान तथा जन्हे पुरातत्व विभाग को सौंपा जाने की मांग की। 

- नाहर के साथ खेलती थी हंसिया

जयपुर के महाराजा जयसिंह के विश्वसनीय व वफादार पात्र एवं मालगुजार रहे रतीरात नाहर की पुत्री हंसिया बचपन से योद्वा एवं वीर थी, जो हमेशा मातृभूमि, पर्यावरण, शिक्षा, कृषि, समाज उत्थान सुधारक रही और हिन्दु धर्म के अलावा अन्य धर्म को महत्व नही देती। ये मूक-बधिर जीव-जन्तुओं के प्रति दयावान थी और जंगल के हिंसक जानवरों के साथ ऐसे खेलती बताई की जीवान्त हिंसक जानवर रबड-प्लास्टिक से बने खिलौना हो। कई बार नाहर,शेर,बघेर,रीछ आदि जानवरों के साथ कुश्तियां लडती और उनकी  सवारी कर घर तक ले आती,जिसको लेकर माता-पिता की कई बार डांट-फटकार का सामना किया,लेकिन वह नही मानी। भरतपुर के राजा बदनसिंह एवं उनके पुत्र सूरजमल निजी कार्य से गांव सलेमपुर कलां आए,जहां हंसिया को नाहर के साथ खेलता देखा,तो सूरजमल ने उससे विवाह की ठांन ली और पिता से बोल कर हंसिया से विवाह रचा।

-84 खम्बा की कचहरी

महाराजा सूरजमल के ससुर रतीराम नाहर की कचहरी थी,जो 84 खम्बा की बनी हुई,जहां जयपुर के महाराजा जयसिंह एवं उसके दरबार में लगे प्रशासनिक अधिकारी आते और प्रजा की समस्या सुन कर समाधान करते,साथ ही लगान वसूली का कार्य भी होता। आज कचहरी की हालत दयनीय बनी हुई,जिसकी देखरेख व सफाई करना वाला कोई नही। गांव के कुछ लोग कभी-कभी कचरा साफ कर जाते है। ये समतल भूमि से करीब 50 फीट ऊंचाई पर बनी हुई। गांव के सेवानिवृत अध्यापक व इतिहासकार ज्ञानसिंह बताते है कि कहचरी में साल 1723 से आज तक किसी के खिलाफ गलत फैसला व अन्याय नही हुआ। आज भी गांव के  पंच-पटेल वाद-विवाद के फैसला कचहरी की सौंगन्ध व शपथ दिला कर करते है।,कचहरी के नाम कोई भी असत्य सौंगन्ध नही खाता,एक बार पडौसी गांव तालछिडी के एक जने ने आर्थिक परेशानी,बीमार मां की सेवा एवं उपचार कराने लिए के पर असत्य सौंगन्ध खा ली,उसकी पुत्री ने पिता पर असत्य बोलने के आरोप लगा दिए, उस समय भरतपुर के महाराजा सूरजमल भी मौजूद बताए ,महाराजा सूरजमल ने गांव के पंच-पटेलों से कमेटी गठित कर सत्य का पता लगाने का आग्रह किया। कमेटी ने उसके परिवार की हालत देखी,तो पंच-पटेल टूटी खाट पर उसकी 88 वर्षीय मां को बीमार तथा उसकी सेवा करते परिजनों को देख दंग रह गए,कमटी ने सत्य-असत्य की रिर्पोट कचहरी पर मौजूद लोगों को बताई,जिस पर सभी को दया आई गई,उसे असत्य बोलने पर माफ कर लगान वसूली भी जमा नही कराने के आदेश दे डाले और जिस पर भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने मां की सेवाभावी उक्त व्यक्ति को 111 सोने की मोहर देकर सम्मान किया। 

-हवेली में चलता था स्कूल

मालगुजार की रतीराम की दुर्ग व हवेली शिक्षा विभाग के अधीन है, जिसमें साल 1945 से बालिका स्कूल संचालित है,जो खण्डहर का रूप ले चुका है,राज्य सरकार ने साल 2015 में गांव के राउमावि में विलय कर डाला,जिसके बाद हवेली की हालत दयनीय हो गई,अब हवेली की एक कोठरी में महिला-बाल विकास विभाग का आंगनबाडी केन्द्र संचालित है। शेष कोठरी-कमरा आदि पर ताला लटके नजर आते है।

सत्य का गढ रहा सलेमपुर कलां

गांव के ज्ञानसिंह एवं सत्यवीरसिंह ने बताया कि गांव सलेमपुर कलां हमेशा सत्यवादी रहा,यहां के संस्थापक रतीराम ने जयपुर के महाराजा जयसिंह के मालगुजार रहने के बाद भी कभी असत्य व अन्याय का साथ नही दिया। विदेशी शासन एवं अग्रेजों से कभी भयं नही किया,कटटर हिन्दुवादी थे,इनकी पुत्री हंसिया का विवाह भरतपुर रियासत के संस्थापक सूरजमल के साथ हुआ। एक बार स्वयं के समधी व राजा बदनसिंह के साथ अन्याय होता देख उनके विरोधियों को जयपुर के महाराजा जयसिंह का सहयोग लेकर धूल चटवा दी। जिसका इतिहास गवाह है।

 

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