संतान की दीर्घायु एवं खुशहाली का अहोई माता का व्रत 24 अक्टूबर को
लक्ष्मणगढ़ (अलवर) कमलेश जैन
कार्तिक मास प्रारंभ होते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसी क्रम में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि हिंदू धर्म में इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा का विधान है। इसीलिए इस तिथि पर अहोई अष्टमी का व्रत पूजन किया जाता है। 24 अक्टूबर गुरुवार के दिन यह निर्जला व्रत रखा जाएगा।
माताएं अपनी संतान की दीघार्यु, खुशहाली और तरक्की के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं। यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है क्योंकि यह निर्जला रखा जाता है। और रात को तारे निकलने के बाद ही तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता अहोई के साथ साथ स्याही माता की उपासना भी की जाती है।
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि शुरू - 24 अक्तूबर, 01:08 ए.एम.
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त - 25 अक्तूबर , 01:58 ए.एम.
पूजा मुहूर्त - 24 अक्तूबर, सायं 05:42 से सायं 06:59 तक
तारों को देखने का समय - 24 अक्तूबर, सायं 06:06
चंद्र अर्घ्य - 24 अक्तूबर रात्रि 11:55
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन जो माताएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं वह सूर्योदय से पहले स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर जाएं और व्रत का संकल्प लें। धूप, दीप अर्पित करें और फल-फूल चढ़ाएं। अक्षत रोली और दूध अर्पित करे। अहोई माता के साथ सेई की का ध्यान कर माता और सेई को हलवे के साथ सात घास का भोग अर्पित करें। पूजा के अंत में माता अहोई की आरती करे । फिर तारों या चंद्रमा को करवा या कलश से अर्घ्य दिया जाता है।