चार सूत्रीय मांगों को लेकर मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

Aug 14, 2021 - 22:33
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चार सूत्रीय मांगों को लेकर मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

भीलवाड़ा (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) चार सूत्रीय मांगों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम जिला कलेक्टर शिव प्रसाद एम नकाते को ज्ञापन सौंपा गया। सौंपे हुए ज्ञापन में बताया की कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण आज हर व्यक्ति प्रभावित है। सभी प्रकार के आर्थिक क्रियाकलाप इस महामारी के कारण बन्द है और घोर आर्थिक संकट पैदा हो चुका है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना मुश्किल हो गया है। महामारी के इस दौर में विद्यार्थी वर्ग भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। शिक्षण कार्य ठप्प होने की वजह से उनका शैक्षणिक स्तर पर असर पड़ा है। 
प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेज में काफी समय से भौतिक रूप से बंद है। छात्रों द्वारा इसके संसाधनों का उपयोग नहीं किया है बावजूद इसके विश्वविद्यालय और कॉलेजों द्वारा बेवजह कई संसाधनों और मदों के नाम पर फीस की वसूली की जा रही है जो गलत है। छात्रों की मांग है की 2 साल से जो बेवजह फीस ली गई है उसको या तो छात्रों को वापिस किया जाए या इस सत्र में समायोजित किया जाए।
विश्वविद्यालय और कॉलेजों में कोरोना वायरस के कारण ज्यादातर विद्यार्थियों को अगले सत्र के लिए प्रमोट किया गया है। इसके बावजूद परीक्षा शुल्क सभी विद्यार्थियों से लिया गया। जिन छात्रों की परीक्षा हुई ही नहीं उनसे बेवजह परीक्षा शुल्क लिया गया है जो बहुत ही गलत है। इसलिए छात्रों की मांग है कि छात्रों को परीक्षा शुल्क अतिशीघ्र वापस किया जाए।
कोरोना की तीसरी लहर की पूरी संभावना विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की जा रही है। इसलिए हमारी मांग है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ऑनलाइन कक्षाओं और पाठ्यक्रम की व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए ताकि पहले से पीडित विद्यार्थियों का शैक्षणिक कार्य और अधिक प्रभावित ना हो। 
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में छात्रसंघ अध्यक्ष सहित तीन विद्यार्थियों को छात्रों की मांग उठाने के कारण अलोकतांत्रिक तरीके से निलंबित करने के प्रशासनिक आदेश प्रशासन के गलत इरादों को जाहिर करते है। हमारी मांग है कि हमे इस बात को लेकर आश्वस्त किया जाए कि भविष्य में जब भी कोई युवा अपने हक की बात करे तो उसे इस तरीके के अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक हथकंडे अपनाकर उसकी आवाज को दबाया ना जाए। 
सभी मांगों पर अतिशीघ्र विचार किया जाए और उनको पूरा किया जाए ताकि कोई भी विद्यार्थी शिक्षा जैसी मूलभूत अधिकार से वंचित ना हो और भारतीय संविधान द्वारा अपनाई गई लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा कमजोर ना पड़े। अगर छात्र समुदाय की मांगो को नहीं माना जाता है तो आमरण अनशन प्रदेश के हर विश्वविद्यालय और कॉलेज में शुरू किया जाएगा और किसी अप्रिय घटना की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी।

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