आचार्य श्री सुनील सागर महाराज की प्रेरणा से जियो और जीने दो की प्रासंगिकता पर विशेष सर्वधर्म सभा का आयोजन

May 8, 2024 - 18:35
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आचार्य श्री सुनील सागर महाराज की प्रेरणा से जियो और जीने दो की प्रासंगिकता पर विशेष सर्वधर्म सभा का आयोजन

खैरथल (हीरालाल भूरानी ) आज प्रातः बड़ा धड़ा पंचायत नसिया में आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज के आशीर्वाद व प्रेरणा से एक विशेष धर्म सभा का आयोजन किया गया जिसमें सभी धर्म के प्रमुख व्यक्तियों ने अपनी सहभागिता दी । सर्वधर्म मैत्री संघ के अध्यक्ष प्रकाश जैन ने बताया कि आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज न केवल अध्यात्म अपितु समाज के सर्वांगीण विकास में महान आत्माओं की जीवन शैली में आवशायक बदलाव लाकर आमजन को प्रोत्साहित करते हैं ।
कार्यक्रम का आयोजन दिगंबर जैन महासमिति के सदस्यों के द्वारा किया गया।  कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी आमंत्रित अतिथियों का दुपट्टा व माल्यार्पण के द्वारा अभिनंदन किया गया। प्रथम वक्ता के रूप में पंडित सुदामा शर्मा ने जियो और जीने दो की प्रासंगिकता को पर जोर देते हुए कहा कि भगवान महावीर के संदेश और जैन धर्म अनुशासन सिखलाता है । बोहरा मस्जिद के मोहम्मद अली बोहरा ने मोहम्मद साहब का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया और भगवान महावीर के अपरिग्रह वाद की बात करते हुए जैन धर्म की विशेषताओं की व्याख्या की ।  
गंज गुरुद्वारा से सरदार दिलीप सिंह छाबड़ा ने गुरु ग्रंथ साहब का हवाला देते हुए बताया कि इंसानो में कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । सबको संसार में जीने का समान रूप से हक है । फादर अजय ने बताया कि प्रभु यीशु मसीह ने क्षमा धर्म को अपनाया जो कि जैन सिद्धांत में मूल सिद्धांत आता है । बौद्ध धर्म के जीसी बेरवाल जी ने कहा कि भारत की दो प्रमुख संस्कृतियों में  बौद्ध संस्कृति एवं जैन संस्कृति दोनों में ही बहुत सी समानताएं हैं और श्रवण संस्कृतियों के नाम से जानी जाती है। 

इतिहासकार प्रोफेसर सुरेश अग्रवाल ने  भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक के 24 तीर्थंकरों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए जियो और जीने दो संदेश के बारे में चर्चा की । महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ एस के बैरवा ने संदेशों को जीवन में उतरने से जीवन उपयोगी हो जाता है ।  सभी आमंत्रित अतिथियों व सभी सभागार में उपस्थित प्रबुद्ध जनों के द्वारा आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने आज की वार्ता की व्याख्या करते हुए वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता बताई । सभी धर्म यही कहते हैं कि वह सबसे पहले इंसान बनो । धर्म कभी भी एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या स्पर्धा नहीं सिखाता उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल स्वरूप ही विविधता में एकता है अलग-अलग धर्म के अनुयाई अलग-अलग भाषाओं के अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग संस्कृति होते हुए भी भारत वर्ष में एक साथ रहते हैं पूरी दुनिया में यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है ।
मैत्री संघ के अध्यक्ष प्रकाश जैन ने संस्था का परिचय कराते हुए कार्यक्रम का संचालन किया दिगंबर जैन महासमिति के मनोज मोरासिया, राजेंद्र पत्नी राजकुमार लोहारिया , नाथूलाल जैन,  अरुण सेठी , सुनील जैन श्रीमती रूप श्री जैन , अनुभव जैन,  सुनीता जैन,  कुसुम जैन सहित मैत्री संघ के डॉ भारत छबलानी  डॉ लाल थदानी, वीरेंद्र सिंह, हरदीप सिंह सहित अन्य सदस्य उपस्थित रहे ।

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