राष्ट्रभाषा की हिंदी होने से बचायें - मंगल सैनी पूर्व तहसीलदार
उदयपुरवाटी (सुमेरसिंह राव)
पूरे भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बांधने वाली हिंदी भाषा विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. विश्व हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 से लगातार मनाया जा रहा है. भारत के अलग-अलग प्रान्तों में वहां की स्थानीय भाषा के मुकाबले हिंदी को दोयम दर्जा दिया जा रहा है फिर भी संपूर्ण भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में हिंदी भाषा की पहचान व सम्मान है।
हमें सरकारी कार्यक्रमों से आगे बढ़ना होगा-
हिंदी दिवस पर विद्यालयों महाविद्यालयों सरकारी कार्यालयों में निबंध वाद विवाद प्रतियोगिता नाटक आदि के आयोजनों से ऊपर उठकर धरातल पर हिंदी को अपनाना पड़ेगा. आज भी केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों की अधिसूचनाएं उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में रिट अपील अंग्रेजी में प्रस्तुत की जाती हैं व अंग्रेजी में ही निर्णय सुनाए जाते हैं. न्यायालयों में जो वकील अंग्रेजी में बहस करते हैं वे अपने आप को हिंदी भाषी वकील से बेहतर समझते हैं. अनेक प्रांत हैं जिन्हें हिंदी को राजभाषा अपनाने से परहेज है और वहां आंदोलन तक होते हैं. तमिलनाडु में तमिल पंजाब में पंजाबी गुजरात में गुजराती बंगाल में बंगाली महाराष्ट्र में मराठी आदि अनेक राज्यों में स्थानीय भाषाओं को हिंदी की कीमत पर राजभाषा की मान्यता दी हुई है।
आज हमारी जीवनचर्या में भी हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी ने कब्जा कर लिया है चाहे प्रिंट मीडिया हो चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो चैनल्स हो सभी हिंदी का उपवास उड़ाने पर तुले हुए हैं. आज के एक हिन्दी समाचार पत्र की एक खबर का अध्ययन करने पर पाया कि एक खबर में ही 35 से अधिक अंग्रेजी शब्द काम में लिए गए हैं। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम लोगों ने हिंदी की क्या दुर्दशा कर दी है। आज विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे व हम सभी आम बोल चाल में 50% शब्द अंग्रेजी के काम में लेते हैं. कुछ शब्द तो ऐसे हैं जिनकी हिंदी लोगों को पता ही नहीं है। क्या हिंदी भाषा विभाग को इस और ध्यान नहीं देना चाहिए। अंत में यही कहूंगा " भारत मां की शान हिंदी हम सब का अभिमान हिंदी"
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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मंगल सैनी पूर्व तहसीलदार