दहेज के मुकदमें से पति के दोषमुक्त होने और 20 साल का लम्बा समय पत्नी को भरणपोषण का दावा करने से नहीं कर सकता वंचित
भीलवाड़ा शहर के पारिवारिक न्यायालय संख्या 01 के पीठासीन अधिकारी श्री शंकरलाल मारू ने हाल ही में राय व्यक्त की कि पत्नी को केवल इसलिए भरणपोषण का दावा करने से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि पति द्वारा दहेज की मांग के मुकदमें में दोषमुक्त हो गया और पत्नी द्वारा भरणपोषण का मुकदमा उससे अलग रहने के बाद करीब 20 साल बाद पेश किया गया हो। पत्नी की ओर से न्यायमित्र ललित कुमावत, मनीष नागोरी, ऋत्विका राव, प्रेमचन्द सेन के द्वारा याचिका प्रस्तुत कर दलील दी गई कि एक लम्बे समय के 20 साल का विलम्ब तथा दहेज की मांग के मुकदमें में पति की दोषमुक्ति हो जाने मात्र आधार पर पत्नी को उसके विधिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। जिस संबंध में कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है तथा पत्नी के लिये बनाए हुए कानून को इतना कमजोर नहीं बनाया जा सकता है कि कानून पीड़ित पत्नी के अधिकारों की रक्षा नहीं कर सके।
न्यायालय ने यह राय व्यक्त की कि जब पति पत्नी को रखने को तैयार है, उसे खाने-पीने एवं पहनने का खर्चा उठा सकता है, ऐसे में पति के पास आय होने से पत्नी का खर्चा उठाने में सक्षम मानते हुए पति को आय अर्जित करने में सक्षम मान तथा आपराधिक कृत्य के कारण पत्नी का पति से अलग रहना मानते हुए पर्याप्त कारण माना। यदि ऐसा नहीं होता तो एक पत्नी अपने पति का घर छोड़कार अपने पति से अलग कभी निवास नहीं करती। पति का विधिक नैतिक दायित्व मानते हुए पत्नी को उचित प्रकार से भरणपोषण देने की बात अपने फैसले में कही जो कि पर्याप्त साधन सम्पन्न होते हुए भी पत्नी का भरणपोषण नहीं कर रहा था, वो भी ऐसी दशा में जब पति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होकर नौजवान व्यक्ति के रूप में है और आय अर्जित करने में सक्षम है। इस कारण से उसका यह नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी का उचित प्रकार से भरणपोषण करे। कोर्ट ने पत्नी की भरणपोषण की याचिका को स्वीकार करते हुए पति की सुदृढ आर्थिक स्थिति एवं वर्तमान समय में जीवननिर्वाह के लिए भरणपोषण भत्ता मुकदमा पेश किए जाने की दिनांक से प्रति माह अदा करने का निर्देश पति को किया गया।
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