विशेष: शिक्षा को समर्पित सावित्रीबाई फुले - रिटायर्ड तहसीलदार मंगल चंद सैनी

महाराष्ट्र में दलितों को शिक्षित करने वाले समाज सेवकों में सावित्रीबाई फुले का नाम अग्रणी है जो आकाश में ध्रुव तारे के समान प्रकाशमान है। सावित्री फुले खुद शिक्षित नहीं थी किंतु दो शताब्दी पूर्व की दलितों की दुर्दशा उन्होंने देखी और महसूस की तो उन्होंने दलितों को शिक्षित करने का दृढ़ संकल्प लिया और अपने पति ज्योतिबा फुले से शिक्षा ग्रहण कर भारत की प्रथम दलित महिला शिक्षिका बनी। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ और ज्योतिबा फुले जो उस दौर के महान समाज सुधारक थे से उनका 1840 में विवाह हुआ।उस समय पुणे शहर भ्रष्ट ब्राह्मणों के मनगढ़ंत तथा पाखंडी धर्म शास्त्रों का अड्डा था। इसी शहर को फूले दंपति ने अपना क्रांतिकारी कार्य व आंदोलन का केंद्र बनाया। महात्मा फुले ने अपनी अर्धांगिनी सावित्रीबाई को साथ लेकर सबसे पतित शूद्र अतिशूद्र जातियों तथा नारी वर्ग को शिक्षित बनाने का सूत्रपात किया।
पुणे के बुधवार पेठ में 1 जनवरी 1848 को प्रथम विद्यालय की स्थापना की जिसकी व्यवस्था व अध्यापन कार्य सावित्री फुले ने स्वयं अपने हाथों में ली। पुणे के ब्राह्मण व कट्टरपंथियों का खून खौल उठा तथा इस कार्य को धर्म विरोधी मानते हुये पूरे शहर में कोलाहल मचा दिया।उनके पिता गोविंद राम को स्कूल को बंद करवाने के लिए धमकाया फल स्वरुप उन्होंने फूले दंपति को शिक्षा कार्य बन्द करने या घर छोड़ने का विकल्प अपनाने पर जोर दिया जिस पर घर छोड़ देना स्वीकार किया किंतु स्कूल चालू रखा. सावित्रीबाई जब स्कूल जाती तो लोग उन पर गोबर पत्थर फेंकते जिस पर वे कहती कि आप मुझ पर फूलों की वर्षा कर रहे हैं मेरा विश्वास और दृढ़ हो रहा है।
15 में 1848 को पुणे की अछूत बस्ती में पहला विद्यालय खोला मजदूर वर्ग के लिए रात्रि कालीन विद्यालय शुरू किया आसपास के गांवों में 18 स्कूल खोलकर अछूतों व दलितों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया।
उनके द्वारा रचित कविता संग्रह "काव्य फूले " में वे कहती हैं दो हजार वर्षों का शूद्रों का यह दुख है ब्रह्म सेवा भूदेव के चक्र में वे हुए फंसे हुये हैं उनकी अवस्था देखकर मन कराह उठता है, इनसे निजात पाने के लिए शिक्षा ही उपाय है. यही नहीं उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह व सती प्रथा का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया. सावित्रीबाई फुले को क्रूर काल के हाथों ने हमसे 10 मार्च 1897 को छीन लिया ऐसे लगा था जैसे अछूत व शूद्र अनाथ हो गए।ऐसी थी महान समाजसेवी सावित्रीबाई फुले।
- सुमेरसिंह राव






