मीना समाज के मसीहा स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मीनारायण झरवाल की पुण्य तिथि पर विशेषांक
नीमकाथाना (सुमेरसिंह राव)
स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी और समाजसेवी लक्ष्मी नारायण झरवाल का जन्म कार्तिक पूर्णिमा विक्रम संवत 1971 अर्थात 2 नवंबर 1914 ई. को सूर्योदय पूर्व झरवाल सदन मोती डूंगरी रोड जयपुर में हुआ था । यही वह दिन था जो पुराणों के अनुसार बहुत ही पावन और भाग्यशाली था । इसी दिन गुरु नानक देवजी का भी जन्म दिवस था । जो मानवता और शोषितों के उत्थान धनवान व निर्धन व ऊंच-नीच के भेद-भाव को समाप्त करने के लिए जन्मे थे ।
प्रारंभिक जीवन
झरवाल की माता का नाम भोंरी देवी और पिता का नाम भुरामल मीना था । लक्ष्मी नारायण परिवार में सबसे बड़े थे अतः घर की जिम्मेदारियां भी तब इन्हीं पर थी । जुलाई 1934 ई. में अपने पिता का निधन हो जाने के कारण उनके स्थान पर वे रामनिवास बाग में कार्य करने लगे । उन चार वर्षो की सेवा के दौरान वे अनेक विद्वानों व साधु संतों के संपर्क में आए और आध्यात्मिक और चारित्रिक गुणों को भविष्य के लिए संवारा
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
20 अक्टूबर 1938 में किशनपोल बाजार स्थित आर्य समाज मंदिर में प्रजामंडल के अधिवेशन में इन्होंने भी भाग लिया जहां इनका जयपुर राज्य प्रजामंडल के संस्थापक सदस्य हीरालाल शास्त्री वेद, विजय शंकर शास्त्री स्वतंत्रता सेनानी आदि नेताओं से परिचय हुआ । इस स्वतंत्रता सेनानी ने रामबाग की नौकरी से इस्तीफा दे दिया जबकि वे घर में सबसे बड़े बैठे थे । घर की जिम्मेदारियां भी थी ।इस अधिवेशन में अन्य कई प्रस्तावों के साथ मुख्य प्रस्ताव भारत में उत्तरदाई शासन की मांग एवं नागरिक अधिकार दिए जाने संबंधी थी । वे यहीं से प्रजामंडल के कार्यों में गहरी रुचि लेने लगे और उसी दिन से इन्होंने खादी वस्त्र पहनना शुरू कर दिया । जिसे जीवन भर निभाते रहे । राष्ट्रपिता पूज्य गांधी जी के सत्य व अहिंसा पर आधारित रचनात्मक कार्य जैसे छुआछूत अंधविश्वास जागीरदार बैठ-बेकार लाटा-बाटा तथा नशाबंदी कौमी एकता देश की अखंडता शिक्षा प्रसार की जन जागरण आदि में उनकी रुचि दिन प्रतिदिन बढ़ती ही गई । जिसके फलस्वरुप आगे से प्रजामंडल के लगभग सभी अधिवेशन में सक्रिय भाग लेना प्रारंभ कर दिया । स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू गांधी जी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि गणमान्य नेताओं से भी हुई । स्वतंत्रता संग्राम में इनको कई बार जेलयात्रा पर भी जाना पड़ा ।
जयराम पेसा कानून निरस्तीकरण के लिए संघर्ष
क्रिमिनल ट्राइब अधिनियम की धारा 28 के अंतर्गत मीणों पर अनेक अत्याचार हो रहे थे जिसकी वजह से यहां तक की मीणा जाति के पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पड़कर इस काले कानून के तहत तंग किया जाने लगा तब से लक्ष्मी नारायण झरवाल ने अपना संपूर्ण जीवन प्रजामंडल की स्वतंत्रता आंदोलन तथा मीणा जाति पर हो रहे अत्याचारों अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने में लगा दिया । इसी प्रकार वे बहादुरी के साथ जयराम पेसा कानून के निरस्तीकरण के लिए भारत स्वतंत्र होने तक लड़ते रहे जब तक यह काला कानून निरस्त नहीं हो गया ।
आरक्षण के लिए संघर्ष
आरंभ में मीणा जाति को केवल पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किया गया था दूसरी ओर भारत सरकार ने संविधान प्रदत्त प्रावधान के अनुसार चित्तौड़ उदयपुर डूंगरपुर और बांसवाड़ा की भील/मीना आदिवासियों को यह सुविधा प्रदान कर दी गई थी । परंतु शेष जिलों के आदिवासियों को यह सुविधा सुलभ नहीं थी । काकाकालेकर व भीखा भाई ने जो रिपोर्ट भारत सरकार के सामने रखी उसी को सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार ने सन 1956 राजस्थान के सभी मीना आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति सुलभ आरक्षण दिए जाने बाबत भारत सरकार राज में आज्ञापत्र जारी कर दिया । इसमें शिक्षार्थियों को छात्रवृत्ति राज्य व केंद्र सरकार में नौकरियां विधानसभा व लोकसभा जिला परिषद आदि में आरक्षण का लाभ मिलना सुलभ हो गया । यह आरक्षण मीणा समाज की प्रगति में लाभदायक साबित हुआ ।और मुख्य धारा में जोड़ने में कारगर साबित हुआ । इस प्रयास में झरवाल अग्रणी रहे जिसका समाज ऋणी है ।