समय पर नहीं खुलता महाविद्यालय शिक्षार्थी करते हैं शिक्षकों का इंतजार
लक्ष्मणगढ़ (अलवर / कमलेश जैन) सर महाविद्यालय कब खुलेगा..कब तक हम ऐसे ही खड़े रहेंगे। कुछ ऐसे ही सवाल गुरुवार को सरकारी महाविद्यालय की छात्राओ के जहन में चल रहे थे।
क्योंकि महाविद्यालय खुलने के समय तक न तो कोई प्रोफेसर ना ही प्रिंसिपल महाविद्यालय पहुंचे और न ही कोई सफाई सेवक पहुंचा। शिक्षक अपनी मर्जी से आते हैं। गुरुवार को एक ऐसा ही मामला सामने आया है। सुबह 9.30 बजे से 10 बजे तक महाविद्यालय नहीं खुला था। बच्चे महाविद्यालय के गेट पर खड़े होकर शिक्षकों का इंतजार कर रहे थे। जिनका कहना था कि रोजाना महाविद्यालय देर से खुलता है। प्रबंधन भी इसके प्रति गंभीर नहीं है। शिक्षकों की मनमानी से आने वाले बच्चे महाविद्यालय के बाहर खड़े रहने को मजबूर थे। शिक्षक बच्चों की पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं है।
यही कारण है कि बच्चों के मां बाप बच्चों को निजी विद्यालयों में मोटी फीस खर्च कर पढ़ाने के लिए मजबूर हैं। महाविद्यालयके मेन गेट में लटका ताला देख कर समाज सेवी संजय बुंदेला द्वारा गुरुवार को फोन पर प्रिंसिपल से बात की गई । तो उन्होंने समाज सेवी से अभद्र व्यवहार किया बोले आप कौन होते हैं महाविद्यालय के प्रबंधन के बारे में जो कुछ भी करना है आप करिए। मुझे आइंदा फोन मत करना। महाविद्यालय में जब वहां जाकर देखा तो मेन गेट पर ताला लगा हुआ था।
कुछ बच्चिया महाविद्यालय के बाहर खड़ी हुई थी। बोली - आए दिन देरी से खुलता है।
जब बच्चों से बात की तो उन्होंने कहा कि आए दिन शिक्षक महाविद्यालय में देरी से पहुंचते हैं। जिसके कारण उन्हें बाहर खड़े रहना पड़ता है। खुले में खड़े रहने से इधर बंदरों का आतंक होने से छात्र-छात्राओं को भय बना रहता है। टीचर के समय पर नहीं पहुंचने की समस्या लंबे समय चल रही है। समय पर नहीं खुलने पर बच्चे गेट के बाहर ही महाविद्यालय खुलने का इंतजार करते हैं। इसे विभाग की नलायकी ही कहेंगे कि विभाग शिक्षा के मंदिरों को स्मार्ट बनाने व प्राइवेट विद्यालय जैसी सुविधाएं मुहैया करवाने की बात तो करता है, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ ओर ही है।