सौभाग्य, पुत्र, धन -धान्य, पति की रक्षा और संकट टालने का करवा चौथ व्रत 20 अक्टूबर को
लक्ष्मणगढ़ (अलवर) कमलेश जैन
करवा चौथ का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार के अनुसार 20 अक्तूबर 2024 को करवा चौथ है। उपवास की शुरुआत सरगी खाने से की जाती है, जो एक दिन पहले सास अपनी बहुओं को देती हैं। इसके बाद शाम को चंद्रमा देखकर व्रत का पारण किया जाता है।
करवा चौथ का पर्व हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी विवाहित जीवन की कामना करती हैं और निर्जला उपवास रखती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं इस दिन अपना व्रत खोलती हैं। कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 अक्तूबर को सुबह 6 बजकर 46 मिनट से आरंभ हो रही है और 21 अक्तूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर इसका समापन हो रहा है। यानी 20 अक्तूबर को महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखेंगी।
करवा चौथ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पति की लम्बी उम्र के लिए रखे जाने वाले इस व्रत की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई। पौराणिक कथा के मुताबिक, जब यम सावित्री के पति को अपने साथ ले जाने के लिए आए तो, सावित्री ने उन्हें से रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से अपने पति को वापस पा लिया। तभी से पति की लम्बी उम्र के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं।
चंद्रमा का विशेष महत्व
करवा चौथ का व्रत सुबह सूर्योदय के साथ शुरू होता है । और शाम को चांद निकलने पर व्रत को खोला जाता है। इस पर्व में चन्द्रमा का विशेष महत्व है। इस दिन चतुर्थी माता और गणेश जी की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा की पूजा सौभाग्य, पुत्र, धन-धान्य,पति की रक्षा और संकट टालने के लिए की जाती है। दिन भर व्रत रखने के बाद चतुर्थी को चंद्रमा को जब महिलाएं छलनी की ओट से देखती हैं, तो उनके मन पर पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव आता है और उनके मुख पर एक विशेष कांति आती है। इससे महिलाओं का यौवन अक्षय और दांपत्य जीवन सुखद होता है।