प्रगतिशील किसान नत्थीलाल शर्मा उगा रहे हैं ड्रैगन फ्रूट
भरतपुर (कोशलेन्द्र दत्तात्रेय)
संयुक्त निदेशक उद्यान भरतपुर संभाग योगेश कुमार शर्मा ने आज़ भरतपुर तथा डीग जिले के भ्रमण के दौरान डीग जिले के सामई गांव का दौरा किया। सामई गांव में प्रगतिशील किसान नत्थी लाल शर्मा ने लगभग एक हेक्टेयर से अधिक भूमि में ड्रैगन फ्रूट का बगीचा स्थापित किया हुआ है, जिसमें लगभग तीन हजार पौधे लगाए हुए हैं। ये पौधे इन्होंने हैदराबाद तथा करनाल से मंगाए थे। हैदराबाद से मंगाए गए पौधों के परिणाम ज्यादा बेहतर दिखाई दे रहे हैं। शर्मा ने ड्रैगन फ्रूट का बगीचा दो साल पूर्व स्थापित किया था और वर्तमान में बगीचे में फलोत्पादन हो रहा है। इन फलों की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी है। विदेशों से आयातित फलों के मुकाबले यहां उत्पादित फलों का स्वाद और रंग बहुत बेहतर है। किसान शर्मा ने भ्रमण पर आए अधिकारियों को ड्रैगन फ्रूट के फलों का स्वाद चखाया और अवगत कराया कि यहां पैदा हो रहे फल आयातित फलों से ज्यादा बेहतर हैं।
शुरुआत में पौधे लगाते समय लगभग दस लाख का खर्चा हुआ था और इस बार पहली बार फलोत्पादन हुआ है, जिससे उन्हें लगभग एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी प्राप्त हुई है।
ड्रैगन फ्रूट की उत्पत्ति दक्षिण मध्य अमेरिका तथा मेक्सिको से हुई है। वर्तमान में विश्व में ड्रैगन फ्रूट का सबसे ज्यादा उत्पादन वियतनाम में होता है। इसके अलावा इंडोनेशिया, चीन, थाईलैंड इत्यादि देशों में इसकी खेती की जा रही है। भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा राजस्थान राज्यों में की जा रही है। उत्पादन के नजरिए से गुजरात पहले स्थान पर है, तथा कर्नाटक का दूसरा स्थान है। पूर्व कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती पर विशेष जोर दिया गया था और राजकीय फार्म ढिंढोल, बस्सी, जिला जयपुर पर इसकी शुरुआत की कराई गई थी। वर्तमान में राजस्थान में इसकी खेती नवाचार के रूप में विभिन्न जिलों में की जा रही है।
ड्रैगन फ्रूट का पोषण मूल्य अधिक होने के कारण इसकी मांग धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन सी, फाइबर इत्यादि की बहुतायत होती है इसलिए यह मानव जीवन में बहुत उपयोगी है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह वरदान साबित हो रहा है। डेंगू के मरीज भी इसका प्रयोग प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए व्यावहारिक रूप से करने लगे हैं। संयुक्त निदेशक उद्यान भरतपुर संभाग ने किसान भाईयों से अपील की कि फसल विविधीकरण के तहत परंपरागत फसलों के साथ साथ उद्यानिकी फसलों की अपनाएं तो अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।