अंता के गांव रायपुरिया की दृष्टि बाधित बालिका फिजा ने गोवा में आयोजित 24वीं राष्ट्रीय स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता में जीते दो गोल्ड मेडल
अंता (शफीक मंसूरी) गोवा में आयोजित 24वीं राष्ट्रीय स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता 2024 में साबिर हुसैन की पुत्री फिजा ने दो गोल्ड मेडल प्राप्त किये दृष्टि बाधित होने के बाद भी अपने जीवन में संघर्ष करती रही और पिता की प्रेरणा से खेलों में आगे बढ़ती रही 7 व 8 अक्टूबर को आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तीन गोल्ड मेडल प्राप्त करके राष्ट्रीय स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता के लिए चयनित हुई और कोच शेराराम के मार्गदर्शन में तैयारी करते हुए फिजा ने 50 मीटर ब्रेस्ट में गोल्ड मेडल व 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक में दो स्वर्ण मेडल प्राप्त किए इसके अलावा भी राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में 20 से अधिक मेडल प्राप्त करके अपने गांव रायपुरिया तथा बारां जिले का नाम रोशन कर रही है
जिसमें देशभर के पैरा-स्विमर्स ने अपनी अद्भुत प्रतिभा और अटूट संकल्प का प्रदर्शन किया। इस चैंपियनशिप में विभिन्न राज्यों के एथलीट्स ने भाग लिया, जो अपनी खेलकला और साहस का प्रदर्शन किया
तैराकी कोच शेराराम -
ने संवाददाता को बताया कि 8 साल में तैयार किए 100 से ज्यादा दिव्यांग तैराक दिव्यांग खिलाड़ियों के कोच शेराराम परिहार 2015 से खिलाड़ियों को तैराकी का प्रशिक्षण दे रहे हूं शेराराम ने फिज़ा सहित 100 से अधिक दिव्यांगों को तैराकी में तैयार किया। इनसे प्रशिक्षित खिलाड़ी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पदक विजेता हैं। इन खिलाड़ियों में 15 खिलाड़ी खेल कोटे व आउट ऑफ टर्न पॉलिसी से सरकारी नौकरी में लग चुके हैं। हाल ही में सातवीं पैरा स्विमिंग प्रतियोगिता में इनके 42 प्रशिक्षु खिलाड़ियों ने भाग लेकर राज्य स्तर पर 112 पदक हासिल किए। शेराराम वर्तमान में क्रीड़ा परिषद जोधपुर में तैराकी प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं।
गाँव की बालिका ने रचा इतिहास -
बचपन में दृष्टि की मार और परिवार में व्याप्त आर्थिक तंगी के बीच सफलता के मुकाम तक पहुंचना आसान न था, लेकिन हौसले की उड़ान और कुछ कर गुजरने की चाह में अंता के नजदीक एक छोटे से गांव रायपुरिया की बेटी ने संकट की सभी वैतरणी को पार कर अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त किया. आज दुनिया के सामने इनकी कामयाबी की कहानी बेमिसाल नजीर है. खास कर उन लोगों के लिए जो हालात का रोना रोते नहीं थकते हैं. वहीं, इस मुकाम को हासिल करने के लिए इन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी दृष्टि के दंश को दरकिनार कर स्विमिंग सीखी और राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में एक के बाद एक कई मेडल जीते. साथ ही देखते ही देखते दूसरों के लिए प्रेरणा बन गईं. वहीं,एक युवती भी स्विमिंग को हथियार बना आज पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुकी है.
फिज़ा ने बताया मैं अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देता हूँ। उन्होंने हमेशा मुझे गहराई से सोचने और खुद को और अधिक समर्पित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने हमेशा मुझे प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। मेरे माता-पिता हमेशा सैर पर जाना पसंद करते थे, और वे मुझे भी अपने साथ ले जाते थे। उन्होंने मुझे कभी अकेली नहीं छोड़ा, और मैं जितना हो सका, उनके पीछे-पीछे चलती रही। मैं अपनी गति से, अपने हौंसलो पर उनके पीछे-पीछे चलती रही।