श्मशान भूमि के कायाकल्प के लिए दो रिटायर्ड अध्यापक भाइयों की अनोखी पहल
पाली (बरकत खा)
बिठियां गांव में श्मशान भूमि के कायाकल्प के लिए दो सेवानिवृत्त सरकारी अध्यापक भाइयों ने एक अनोखी पहल की है, जिसे पूरे गांव में बहुत सराहा जा रहा है। यह पहल एक सामाजिक और संवेदनशील दृष्टिकोण से की गई है, जो न केवल श्मशान भूमि की स्थिति को सुधारने का कार्य कर रही है, बल्कि इससे गांव के सभी निवासियों को एक नई दिशा और सुविधा मिल रही है। गांववासियों का कहना है कि यह कदम न केवल श्मशान भूमि की स्थिति में सुधार करेगा, बल्कि यह गांव में एक नया सामाजिक चेतना भी उत्पन्न करेगा। लोग इसे एक समाज के लिए समर्पित कार्य मान रहे हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद होगा।
सिंघल परिवार के दोनों भाई, छोगाराम सिंघल और जगदीश कुमार सिंघल, जो कि सरकारी शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने श्मशान भूमि के कायाकल्प का बीड़ा उठाया है। इन दोनों भाइयों का उद्देश्य श्मशान भूमि पर सभी वर्गों के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाना है, ताकि यहां अंतिम संस्कार के दौरान कोई भी असुविधा न हो। छोगाराम और जगदीश कुमार सिंघल के इस प्रयास को देखकर अन्य लोग भी समाज सेवा की दिशा में प्रेरित हो सकते हैं, जो गांव और समाज की भलाई के लिए फायदेमंद होगा।
5 लाख की लागत से करवाएँगे कार्य
इस कायाकल्प परियोजना की कुल लागत 5 लाख रुपये निर्धारित की गई है। इस कार्य को पूरा करने के लिए दोनों भाईयों ने अपने निजी फंड से धन उपलब्ध कराएंगे। जिसमें
सबसे पहले श्मशान भूमि पर बबूल की झाड़ियों और अव्यवस्थित घास-पात को हटवाने के लिए जेसीबी से हटाया जा रहा हैं। इससे श्मशान भूमि अधिक साफ और उपयोगी हो जाएगी।श्मशान भूमि के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक लोहे का बड़ा गेट स्थापित किया जाएगा, जिससे यहां आने-जाने में सुरक्षा और सुविधा बनी रहेगी। यह गेट श्मशान स्थल के सौंदर्य को भी बढ़ाएगा। श्मशान भूमि में पौधे लगाए जाएंगे, ताकि यह स्थान प्राकृतिक रूप से अधिक आकर्षक और हरा-भरा बने। पौधे लगाने से पर्यावरण को भी लाभ होगा।
बैठने के लिए बड़ा हाॅल बनाएंगे
श्मशान भूमि में 20 बाय 30 आकार का एक आरसीसी खुला हाल बनवाने का निर्णय लिया गया है। यह हाल अंतिम संस्कार के दौरान परिवार और रिश्तेदारों को बैठने की जगह प्रदान करेगा, जिससे वे आराम से अपने प्रियजन को अंतिम विदाई दे सकेंगे।
समाज में स्वागत और सराहना
यह कदम गांववासियों द्वारा बहुत सराहा गया है। स्थानीय निवासियों ने इसे एक बहुत ही अनूठी और सकारात्मक पहल माना है, जो गांव के लिए एक बड़ी सुविधा साबित होगी। खासकर, श्मशान भूमि की हालत में सुधार होने से लोगों को अंतिम संस्कार के दौरान अधिक सम्मान और सुविधा मिलेगी। इस कार्य को भामाशाह के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इन भाइयों ने न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी गांव के लोगों की भलाई के लिए यह कार्य किया है।
पिता ने भी सेवा कार्य किए
इन दोनों भाईयों के पिता भी रेलवे से रिटायर्ड थे, और उन्होंने अपने जीवन में सेवा कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाई थी। यह सामाजिक कार्य भी उनके पिता की प्रेरणा से ही शुरू हुआ है। इन भाइयों का यह कदम उनके परिवार की समाज सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाता है, और इस कदम से समाज में उनका सम्मान और भी बढ़ गया है।