गौशालाओं और डेयरियों में संधारित गौवंशों के शीतकालीन स्वास्थ्य एवं सामान्य प्रबंधन हेतु गोपालन विभाग ने जारी किए दिशा निर्देश
जयपुर, 28 दिसंबर। प्रदेश की गौशालाओं और डेयरियों में संधारित गौवंश के शीतकालीन स्वास्थ्य एवं सामान्य प्रबंधन के लिए गोपालन विभाग ने एडवायजरी जारी की है। पशुपालन, गोपालन और डेयरी सचिव डॉ समित शर्मा ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि राजस्थान के शुष्क मरूस्थलीय, मैदानी तथा पठारी क्षेत्रों में अत्यधिक ठंडे तापमान, कम आर्द्रता और सीमित वनस्पति के कारण कठोर सर्दी पड़ती है। इस अवधि के दौरान गौवंश के उचित वैज्ञानिक प्रबंधन से उनके स्वास्थ्य, उत्पादकता और अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसलिए तीक्ष्ण सर्दी, पाला एवं शीत लहर की स्थिति को देखते हुए गोपालन विभाग गौवंश के लिए शीत ऋतु में प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी करता है।
उन्होंने पशुपालकों को सलाह दी है कि वे सर्दी के मौसम में अपने पशुओं का विशेष ध्यान रखें। उन्हें ठंड से बचाने के लिए शेड में रखकर उन्हें चारों तरफ से कंबल या जूट के बोरों से ढकें। गौ आश्रयों को गर्म रखने के लिए सूखी घास, पुआल या अन्य तापरोधी सामग्री का इस्तेमाल करें। उन्होंने बूढ़े, कमजोर एवं छोटे बछड़ों का विशेष ध्यान रखने की सलाह देते हुए कहा कि शीत ऋतु इनके लिए विशेष रूप से कठिन होती है। इसलिए नवजात बछड़ों को दूध पर्याप्त मात्रा में पिलाया जाना चाहिए और उन्हें गर्म रखने के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
डॉ शर्मा ने कहा कि गौवंश के शरीर को गरम बनाए रखने में मददगार सांद्र आहार जैसे चापड़, खल, बांटा, गुड़ आदि ऊर्जा युक्त पशु आहार खिलाना चाहिए। निर्जलीकरण को रोकने के लिए ताजा एवं गुनगुना पानी पिलाना चाहिए और उचित मात्रा में आवश्यकतानुसार पूरक आहार भी खिलाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बीमार गौवंश के लिए अलग बाड़े की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि स्वस्थ गौवंश को संक्रमण से बचाया जा सके। उन्होंने बीमारियों से रोकथाम के लिए गौवंश को उचित उपचार एवं टीकाकरण की भी सलाह दी। डॉ शर्मा ने कहा कि गौवंश के स्वास्थ्य की नियमित रूप से निगरानी के लिए पशु आहार, स्वास्थ्य और उत्पादकता का सटीक संधारण किया जाना चाहिए।
शासन सचिव ने विभाग के जिला अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि वे गोष्ठियों, चौपाल, सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे विभिन्न माध्यमों से गौशाला संचालकों और गोपालकों को नियमित रूप से जागरूक करते रहें।