मीठे पानी के लिए ग्लोबल वार्मिंग से निबटना जरूरी - मीणा

थानागाजी (अलवर) पृथ्वी गृह पर जीव की उत्पत्ति ने इस गृह को सभी गृहों में श्रेष्ठ बनाया, भगवान ( भुमि, गगन, वायु, अग्नि, जल) जीवों की अनुकूलता के लिए पर्याप्त मात्रा में उपस्थिति रहे, मानव अपने विवेक से यहां उपस्थित पांचों तत्वों का उपभोग करते हुए सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैलने के साथ सभी जीव जंतुओं में श्रेष्ठतम बना, वह आदि मानव इस गृह पर उपस्थित सभी जीव जंतुओं पशु-पक्षियों को अपने मित्र सम्मान मानते हुए एक साथ जीवन यापन करते रहा। लेकिन जब इसे शुन्य का ज्ञान हुआ तब से यह शोषण करने लगा, सभी जीव जन्तु , प्राकृतिक सम्पदा ओं का शोषण करने लगा, आज स्थिति उत्पन हो गई कि भगवान स्वमं प्रदुषित होने के साथ इसमें विराजमान वायु और जल दोनों की कमी महसूस होने लगी। वायु अर्थात् आंक्सिजन जीवंत रहने के लिए जीतनी आवश्यक है उतना ही जल।
जल सरंक्षण की बहुत बड़ी आवश्यकता दुनिया को महसूस हो रहीं हैं। स्वाभाविक भी है ग्लोबल वार्मिंग, बड़ते जल दोहन, बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन से मौसम परिवर्तन होते हुए वर्षा ऋतु का समय गड़बड़ा गया, हिमपात नहीं होने से बर्फ से ढके पहाड़ नग्न होते दिखाई देने लगे हैं, पीने योग्य मिट्ठे पानी की पूर्ति नहीं होने से सर्दी खत्म होते किल्लत मचने लगती है, वन्य जीव भटकते हुए दिखाई देते हैं, वहीं सुखी झीलों के किनारे पक्षी मरते दम तोड़ते दिखाई देने लगते और यह सत्य है।
अब बात यह आतीं हैं कि जल है क्या ? जल " एक रासायनिक पदार्थ" है जो दो हाइड्रोजन और एक आंक्सिजन परमाणु (H2O) से मिलकर बना, यह तीनों अवस्थाओं ठोस द्रव गैस के रूप में पाया जाता रहा , पानी की सो बुंदों के शोधन के बाद एक बुंद अर्थात सो किलो ग्राम पानी से एक लीटर अम्रत तुल्य पीने योग्य मीठे पानी की प्राप्ति होती है, इसीलिए कहते हैं की "जल है तो कल" है यानी "जल ही जीवन" सत्य है, जल के बगैर जीवन सम्भव नहीं, इसीलिए पीढ़ियों से जल संरक्षण के प्रति एक दुसरे को जागरूक करने के साथ साथ जल के कार्यों में जुटना पुन्य प्राप्त करने जैसा माना जाता है, वैसे पानी सभी जगह पाया जाता है लेकिन पानी की उपलब्धता के आधार पर इसे दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया खारा पानी, मीठा पानी। खारा पानी की मात्रा सर्वाधिक है यह कुल पानी का 97.5 प्रतिशत, मीठा पानी 2.5 प्रतिशत, वर्तमान में यह 1.8 प्रतिशत रह गया। यह भी विभिन्न रुपों में पाया जाता है, जिससे इसका एक प्रतिशत से भी कम उपयोग किया जा सकता है।
बात हम मीठे पानी की करें, मीठा पानी वर्षा जल चक्र के माध्यम से सुर्य के तेज ताप से गैस के रूप में उपर उठते हुए बादलों में परिवर्तित होने के बाद हमें कोहरा औंस, वर्षा, हिमपात के माध्यम से ठोस द्रव गैस अवस्थाओं में प्राप्त होता जों बाद में झीलों नदियों भूगर्भ से प्राप्त होता है। मीठा पानी का उपलब्धता के आधार पर विभाजन करने पर आता है कि यह बर्फ के रूप में 75.2 प्रतिशत, भू-जल के रूप में 22.6 प्रतिशत, धरती की सतह पर 0.3 प्रतिशत, वाष्प और बादलों में 0.001 प्रतिशत, भूमिगत जल 1.6 प्रतिशत पाया जाता है। आवश्यकता के आधार पर हम भूमिगत जल का सर्वाधिक उपयोग करते हैं और उसके बाद थोड़ा नदियों का पानी बाकी झीलों से कृषि उत्पादन में उपयोग किया जाता है, इन परिस्थितियों में कुल मीठे जल का एक प्रतिशत जल उपयोग में लाया जाता है और वही जल सर्वाधिक मात्रा में कम पड़ते दिखाई दे रहा है, जिसके सरंक्षण की आवश्यकता है, इसे लेकर विश्व भर में विश्व जल दिवस मनाया जाता है ताकि पानी को बचाया जा सके।
पानी उपलब्ध कों लेकर शरीर की बात करें तो उसमें 70%पानी पाया जाता है, मस्तिष्क में 85% पानी, मानव रक्त में 79% पानी, फेफड़ों में 80% पानी पाया जाता है, पुरा शरीर पानी का पुतला है, लेकिन वर्तमान में यहां भी पानी की कमी आने लगीं है और यह सब होने लगा है बड़ते पोल्यूशन, अत्यधिक दोहन, बिगड़ते पर्यावरणीय हालातों की वज़ह से, इन सभी का जिम्मेदार स्वमं मानव है जो आज कष्ट भोग रहा है पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है। 2050 के बाद हालातों में और अधिक परिवर्तन होगें जिनसे पृथ्वी गृह पर उपस्थित मानव सहित सभी जीव जंतुओं पशु-पक्षियों को सूतक लगने की पुर्ण संभावनाओं के साथ यह कह सकते हैं कि दुनिया की आधी आबादी को मीठा पीने योग्य पानी नसीब नहीं होगा, जहां जल की धाराएं बहा करती वहीं आज जहरीले पानी को पीने के लिए लोग मजबूर हैं। दूषित पानी पीने से कैंसर, रक्त संबंधी, हड्डियों में जकड़न, त्वचा जैसे रोगी यों की संख्या बढ़ने के साथ शरीर में पानी की कमी लोगों में दिखाई देने लगी। वर्तमान जलीय समस्याओं को समझते हुए हमें रोज जल दिवस जैसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है, बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग को कम करने, जल प्रदुषण जैसी समस्या से निपटने, भूगर्भीय जल दोहन तथा जल के व्यावसायिक करण को रोकने की आवश्यकता है, जिससे प्रत्येक नागरिक को मीठा पानी प्राप्त हो सकें। लेखक के अपने निजी विचार है।
- लेखक :- राम भरोस मीणा जाने माने पर्यावरणविद् एवं स्वतंत्र लेखक हैं।






