मुख्यमंत्री के नीतिगत निर्णय लेने के बावजूद भी नहीं हो रहा आदिबद्री व कनकाचल पर्वत का संरक्षण, हरिवोल बाबा ने दी 3 मार्च से सैकड़ों साधु संतो के साथ आमरण अनशन की चेतावनी
तत्कालीन जिलाधीश के राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजने के 4 माह बाद भी सरकार के द्वारा अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई
कनकाचल और आदिबद्री पर्वत को वन संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जाने की मांग को लेकर साधु संत करेंगे 23 मार्च से 26 मार्च तक पर्वतों की परिक्रमा और प्रदर्शन
ड़ीग (भरतपुर, राजस्थान/ पदम जैन) ब्रज के पर्वत कनकाचल व आदिबद्री को खनन मुक्त कराने की मुहिम फिर जोर पकड़ने लगी है । सोमवार को ड़ीग उपखंड के आदि बद्री धाम में साधु संतों की बैठक आयोजित की गई। जिसमे सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर 23 फरवरी से 26 फरवरी तक कनकाचल और आदिबद्री पर्वत की परिक्रमा कर पर्वतों पर चल रहे बड़े पैमाने पर खनन और मुख्यमंत्री के पर्वतों को वन संरक्षित क्षेत्र में शामिल करने के नीतिगत निर्णय के किर्यान्वन में हो रहे अनावश्यक विलंब के विरोध में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में आदि बद्री धाम के महंत बाबा शिवराम दास ने कनकाचल और आदि बद्री पर्वत पर बड़े पैमाने पर चल रहे खनन पर चिंता जताते हुए कहा कि यदि इसी प्रकार पर्वतों पर अंधाधुंध खनन चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब इन द्वापर कालीन इन धरोहरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा । बैठक में हरि बोल बाबा भूरा बाबा और गोपाल कृष्ण बाबा ने स्पष्ट किया की साधु संतों द्वारा पिछले वर्ष 16 जनवरी से शुरू किया गया आंदोलन तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक दोनों पर्वतों को वनसंरक्षित क्षेत्र घोषित कर संरक्षित नही किया जाता। हरि बोल बाबा ने चेतावनी दी है कि अगर आगामी 3 मार्च तक दोनों पर्वतों को वन क्षेत्र में स्थानांतरित नहीं किया जाता तो वह सैकड़ों साधु संतों के साथ आमरण अनशन पर बैठेंगे और यदि राज सरकार इसके बाद भी मुख्यमंत्री के निर्णय की पालना में देरी करती है तो वह मजबूर होकर आत्मदाह का प्रयास करने को विवश होंगे। बैठक में सैकड़ों ब्रज वासियों और साधु संतों के साथ प्रमुख रूप से गोपाल गिरी बाबा कृष्ण, चैतन्य दास महाराज ,मान मंदिर के गोविंद बाबा, बृज किशोर दास, मुकेश शर्मा आदि लोग मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 16 जनवरी 2021, को साधु संतों व ब्रजवासियों द्वारा डीग तहसील के ग्राम पसोपा में आदिबद्री व कनकाचल पर्वत को खनन मुक्त कर वन क्षेत्र में स्थानांतरित करने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरना प्रारंभ किया गया था। जो वंहा पर अभी तक जा रही है । धरने के दौरान समय-समय पर किए गए प्रदर्शन और आंदोलन के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साधु संतों की मांग पर सहमति जताई थी। व ब्रज के पर्यावरण के रक्षण के लिए एक अक्टूबर 2021 को नीतिगत निर्णय लेते हुए, दोनों पर्वतों को खनन मुक्त कर वन क्षेत्र में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था । जिसके उपरांत भरतपुर के तत्कालीन जिला कलेक्टर हिमांशु गुप्ता ने एक विस्तृत प्रस्ताव बनाकर राजस्व एवं खनन विभाग को अनुमोदन के लिए भेजा था। उक्त प्रस्ताव को राज्य सरकार को भेजे हुए आज 4 माह से अधिक हो गए हैं। लेकिन अभी तक दोनों पर्वतों को वन क्षेत्र में स्थानांतरित कर सभी खानों बंद करने का निर्णय नहीं लिया गया है। आंदोलन के संयोजक राधा कांत शास्त्री ने बताया है कि साधु संतों द्धारा इस संबंध में कई बार राज्य सरकार के अधिकारिक मंत्रियों एवं मुख्यमंत्री के सचिवों से भी चर्चा की गई है, जिस पर हर बार उन्हें शीघ्र कार्रवाई का आश्वासन ही मिला है। लेकिन साधु संत और धरने पर बैठे ब्रजवासी यह बात समझने में बिल्कुल असमर्थ हैं कि राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री के निर्णय को अमलीजामा बनाने में देर क्यों की जा रही है
जबकि सभी कार्रवाही तत्कालीन कलेक्टर हिमांशु गुप्ता द्वारा पूरी कर दी गई थी । जहां तक बात प्रभावित खानों को अन्यत्र पुनर्स्थापित करने की है, उसके लिए भी पूरी योजना तैयार की जा चुकी है। वहीं इस देरी का फायदा उठाते हुए खनन कर्ताओं द्वारा दोनों पर्वतों पर खनन गतिविधि काफी तेज कर दी गई है। यहां तक कि लगभग हर वाहन, जो खनन पत्थरों को ले जा रहा है, वह सब ओवरलोडेड है ।