वर्तमान परिवेश में जीवन जीने के लिए जतन होना जरूरी :- मीणा

Mar 2, 2023 - 23:01
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वर्तमान परिवेश में जीवन जीने के लिए जतन होना जरूरी :- मीणा

वर्तमान मानवीय विकास और बिगड़ते पर्यावरणीय प्राकृतिक संतुलन से विश्व भर में व्यक्ति समाज सरकार मानव व प्रकृति के बीच संतुलन बनाने को लेकर चिंतित दिखाई देने के साथ आगामी पिंडियों को सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है पर विचार करने लगे हैं। क्योंकि जल थल नभ तीनों जगह प्राणवायु की अत्यधिक कमी के साथ जहरीली गैसों ने अपना स्थान बना लिया, सभी जीवों का जीवित रहना मुश्किल हो गया, प्राकृतिक स्वच्छता सुंदरता के सभी स्थान नष्ट होने लगे हैं परिणामस्वरूप बढ़ते पर्यावरणीय प्रदुषण  ग्लोबलवार्मिंग के दुष्प्रभावों से बचने के यत्न जतन प्रयत्न करने में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रादेशिक स्तर पर एक साथ अपने विचार व्यक्त करने, नितियों में संशोधन करने, प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने की बात होने लगी हैं। लेकिन जब तक मानव स्वयं जिम्मेदारी महसूस नहीं करेगा, सरकारों द्वारा अनैतिक विकास नहीं रोका जाएगा तब तक इन मानव निर्मित आपदाओं से निपटना मुश्किल होगा, इसके लिए आवश्यकता है जन जन को प्रकृति प्रदत्त सभी संसाधनों, जीवों परजीवियों के संरक्षण करने की, इसके लिए ग्रामस्तर पर लोगों को जागरूक करने के लिए आज एक  जतन यात्रा करने की आवश्यकता है क्योंकि वे सभी संसाधन जो प्रकृति ने हमें एक उपहार स्वरूप संजीव प्राणियों के साथ रहते हुए एक आनंदमय जीवन जीने के लिए  दिया उन्हें संजो धजौ कर रखना मानव का पहला कर्तव्य बनता है और वह मानव जो प्रकृति के साथ रहकर अपना जीवन व्यतीत किया, इसे संजोए रखा।मानव के साथ प्रकृति तथा प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का बड़ा संयोग बना रहा  उस समय आदिमानव इस बात को गहराई से जानता था कि प्रकृति प्रदत संसाधनों के बगैर मेरा जीवन ख़तरे में है, इसके सन्तुलन को बनाएं रखने के लिए सुक्ष्म जीवों, जलिय जीवों, वन्य जीवों, वनस्पतियों, पेड़ पोंधों, पर्वत पहाड़, नदी नालों को संरक्षण देना महत्वपूर्ण है और संरक्षण दिया। नदियों के किनारे एवं गहरे जंगलों में आबाद हुआं, उनकी स्वच्छता, सुंदरता को बनाए रखने के लिए एक सामाजिक नियम कानून बनाकर रखता जो कहीं लिखें नहीं जाते केवल एक निर्णय होता जिसकी पालना सर्व समाज करता रहा।

आदिमानव के बाद जैसे जैसे सभ्यताओं का विकास हुआं तब भी उन नियमों की पालन करते हुए गांव,शहर, कस्बों के विकास के साथ आवागमन के रास्तों पर जगह जगह जोहड़, बावड़ी, बगीचीयों का निर्माण किया गया, प्राकृतिक वनस्पतियों को संरक्षण देने के लिए ध्याड़ी (धराडीं) प्रथा लागू की प्रत्येक कुटुम्ब को एक विशेष वृक्ष की रक्षा का जिम्मा सौंपा और इसे धर्म से जोड़ कर परम्परा के साथ प्रचारित किया। मानव के साथ साथ पशु पक्षियों, वन्य जीवों के लिए स्वच्छ पानी, छांया की व्यवस्था स्वयं मानव  अपने आपसी सहयोग सहमति से कर्ता, व्यवस्थाओं को देखता, यहां तक सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्थाएं समाज द्वारा, समाज के लिए, समाज के अनुभवों से तैयार की जाती जिसमें पानी पेड़ के साथ सम्पूर्ण प्राकृतिक व सामाजिक व्यवस्थाओं के आपसी तालमेल को बनाएं रखने का पुर्ण ख्याल रखा  जो उस समय का सार्थक व सराहनीय प्रयास था। उसे आज कहीं देखा, कहीं सुना, कहीं पढ़ा जाता है।

प्रकृति प्रदत्त वे सभी संसाधन (नदी, पहाड़, जंगल, झरनें, पठार, मैदान आदि आदि)

जो एक स्वच्छ सुंदर आनंदमय जीवन जीने के लिए प्राप्त हुएं बने रहे, लेकिन ग्यारहवीं शताब्दी के आते ही यहां बाजारवादी व्यवस्था का जन्म हुआ सामाजिक व्यवस्थाओं में गिरावट पैदा होने लगीं व्यक्ति की अपनी आवश्यकता समाज और बाजार दोनों पर निर्भर हुईं और 1500 के लगभग भौतिकवादी विचारधारा के आगमन से इन्हें उपभोग उपयोग के संसाधनों की श्रेणी में सामिल करने लगे, परिणाम स्वरूप 1850 के लगभग औधोगिक इकाईयों की स्थापना होना प्रारम्भ हुआं इसके साथ ही पूंजीवाद ने व्यक्ति को जकड़ना प्रारम्भ कर दिया, बाजारीकरण तेज रफ्तार पकड़ा, सामाजिक व्यवस्थाओं में एका एक  गिरावट पैदा हो गई, पूंजीवाद अपनी जगह बनाने लगा जिससे विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के विनाश की गति तेज हुई। 1935 के बाद समाजिक व्यवस्थाओं का खात्मा प्रारंभ हुआं, आधुनिकता, भौतिकवाद, पूंजीवाद, बाजारवाद के साथ वैज्ञानिकता पर विश्वास अधिक बना, व्यक्ति समाज सरकार सभी उन हजारों वर्षों की सामाजिक व्यवस्थाओं को भुल गया, परिणामस्वरूप 1980 के बाद समाजिक व्यवस्थाएं एका एक खत्म हो गई सरकारों ने विकास का जिम्मा अपने हाथों लिया, विकासवादी सोच के साथ धरती पर ही नहीं इसके गर्भ में  छिपे सभी पदार्थों का अंधाधुंध दोहन होने से प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण का विनाश उस कदर हुआं की आज सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण  को लेकर व्यक्ति समाज सरकार व विज्ञान उस प्रयास में है कि इसका संरक्षण कैसे किया जाए जिससे मानवीय विनाश से बचा जा सके।  आज दुनिया के 70 प्रतिशत वन सम्पदा, दर्जनों प्रजातियों के वन्य जीव, जलीय जीव नष्ट हो चुके हैं। नदियां मर गई है। पीने योग्य पानी नष्ट होने लगा है। पहाड़ों के अवशेष नष्ट होने लगें हैं। औधोगिक करण, बढ़ते शहरीकरण परिवहन के संसाधनों, ट्यूरिज्म के चलते आज स्वच्छ प्राण वायु मिलना कठिन हो गया है। संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से ही ग्लोबलवार्मिंग, पर्यावरणीय प्रदुषण, घटते आंक्सिजन की मात्रा, बदलते मौसम चक्र, गिरते जल स्तर व पीने योग्य पानी की बढ़ती किल्लत, ग्लेशियरों के पिघलने, समुन्दर के आगे बढ़ने, वर्षा के कम अथवा अधिक होने आदि विभिन्न समस्याएं आधुनिक विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के साथ हो रहे छेड़छाड़ एवं अनावश्यक दोहन का कारण बनीं।

विकास के नाम विनाश से उपजे प्रकृति के तांडव से मानव के साथ समुचे प्राणी जगत को बचाना एक व्यक्ति समाज या सरकार के हाथों नहीं रहा, इसके लिए हम सभी व्यक्ति समाज सामाजिक संगठनों सरकारों विचारकों लेखकों शिक्षकों पत्र पत्रिकाओं को एक साथ जुड़ कर बदलीं सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्थाओं, पर्यावरण के विरुद्ध बनीं सरकारी नितियों, औधौगिक विकास की गती  को बदलते हुएं पुनः एक सार्थक प्रयास करने के लिए सरकार समाज के साथ कार्य करना होगा, ओर इसके लिए एक  जतन करना होगा, जिससे जीवन बचाया जा सके। हमारी खोई हुईं सम्पदा को पुनः विकसित करने के लिए सामाजिक व्यवस्थाओं, कानून कायदों, परम्पराओं को दुबारा से मानव समाज में पन पाना होगा,  प्राकृतिक साधनों को संरक्षण मिलें, इसके लिए आज आवश्यकता है एक विशेष कार्ययोजना तैयार करने की जो लम्बे समय तक चलती रहें वह है "जीवन जतन यात्रा" ओर इस मुहिम को एल पी एस विकास संस्थान जन जन तक पहुंचाने के साथ जागरूक करने का कार्य करेंगी जो हमेशा चलती रहेगी।

जीवन जतन यात्रा क्या - जीवन जतन यात्रा  " धरती पर निवास करने वाले जीवों (मानव सहित) की सुरक्षा के लिए जन सामान्य को जागरूक करने के लिए चलाईं एक मुहिम है।

जीवन जतन यात्रा क्यों - वर्तमान मानवीय विकास की तेज रफ्तार में नष्ट होते प्रकृति प्रदत्त प्राकृतिक संसाधनों, आजिविका, पशु पक्षियों, वन्य जीवों को सुरक्षित संरक्षित रखने हेतु।

जीवन जतन यात्रा कैसे - संस्थान के अपने संसाधनों के साथ जन सामान्य, शिक्षण संस्थानों, संगठनों का सहयोग प्राप्त करते हुए ढाणी गांव कस्बों शहरों में आयोजित की जाएगी।

जीवन जतन यात्रा का उद्देश्य - यात्रा का मुख्य उद्देश्य पानी पेड़ पर्यावरण के प्रति जन सामान्य को जागरूक करना, नदी नालों पहाड़ों वनसम्पदा वन्य जीवों के बचाव को लेकर यात्रा के माध्यम से जनता व प्रशासन को परिणामों से अवगत कराने के साथ  सहयोग हेतु आगे लाना व इन्हें संरक्षण देना।

जीवन जतन यात्रा की आवश्यकता :- एल पी एस विकास संस्थान व संस्थान परिवार द्वारा राजस्थान के अलवर जिले की थानागाजी पंचायत समिति के तीन ग्राम पंचायतों सालेटा गढबसई, गुवाडा भोपाला का एक जायजा प्राकृतिक संसाधनों को लेकर लिया गया जिसमें पेड़ पोंधे, नदी नालों, पहाड़ों, जोहडों की एक वर्ष में बदलीं हालात को देखते हुए पाया कि यहां एक हज़ार पेड़ों का व्यापार हुआं, जंगल से लकड़ियां पेड़ पोंधे काटे गए, नदी नालों जोहड़ पर अतिक्रमण तेज हुआं साथ ही प्राकृतिक वातावरण पर विपरीत प्रभाव से यहां जल स्तर गिरने लगा, वायु की गुणवत्ता खत्म होने लगीं, जंगलों में एका एक कमी आने लगीं परिणामस्वरूप नगन पहाड़ीयों व बढ़ते प्रदुषण से तापमान में वृद्धि महसूस होने के साथ कृषि फसलों पर प्रभाव पड़ने लगा है, वन्य जीवों पशु पक्षियों के आवास खत्म होने से उनका जीवन संकट में पड़ गया है, इन सभी को महसूस करते हुए तथा आगामी समय में सुखमय जीवन जीने के लिए एक जतन की आवश्यकता महसूस हुई और इसी के साथ संस्थान परिवार द्वारा निर्णय लिया गया कि आम जन के साथ एक जीवन जतन यात्रा की शुरुआत की जाएं जिससे प्राकृतिक संसाधनों पानी पेड़ पर्यावरण को बचाया जा सके।

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