बांधों के बढ़ते कुनबे से पड़ा नदियों के आंतरिक प्रवाह पर दुष्प्रभाव

Jan 22, 2022 - 18:14
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बांधों के बढ़ते कुनबे से पड़ा नदियों के आंतरिक प्रवाह पर दुष्प्रभाव
जयसमंद बांध अलवर

सम्पूर्ण भारतवर्ष या कहें विश्व में जल संग्रहण प्रबंधन  व्यवस्था एक हजार से पन्द्रह सो वर्ष पुरानी समाज विज्ञान से उत्पन्न जल व्यवस्था से बहते नालों नदियों पर अवरोधकों का निर्माण कर पानी को लेकर पनपी समस्याओं से निजात पाने के लिए जोहड़, नाड़ी, एनिकट, चैकडेम, छोटे बड़े बांधों का निर्माण किया, यह जल व्यवस्था को वर्ष भर बनाएं रखने, अकाल दुकाल त्रिकालों से निपटने के लिए समाज के लिए,समाज द्वारा, समाज की व्यवस्था रही। मानव समाज की आवश्यकताओं को समाज के गणमान्य नागरिकों द्वारा ग्राम, नगर, शहर, रजवाड़ों की आवश्यकताओं, भौगोलिक स्थिति, भु गर्भ की संरचनाओं पारिस्थितिकी तंत्र के साथ मौसमी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर नदीयों पर अवरोध स्वरूप मिट्टी की कच्ची दीवार तैयार की जाती, पानी के वेग बहाव क्षेत्र, भराव क्षेत्र के साथ निचले हिस्से में जलीय समस्या ना बिगड़ सके मध्य नजर रखते समाज द्वारा सामाजिक अनुभवों से तैयार समाज विज्ञान से बांधों का निर्माण किया, आज भी खरे हैं, लेकिन आधुनिक विज्ञान द्वारा निर्मित बांध एक सामाजिक समस्या को जन्म दिया, भु गर्भ में जलीय संरचनाओं पर विपरीत प्रभाव डाले, नदीयों के आंतरिक प्रवाह को प्रभावित किया।
संसदीय सुत्रों से देश में सौ वर्ष से अधिक पुराने बड़े बांधों की संख्या 227 बताई गई जो आज भी खरे हैं, देश आजादी के बाद या कहें पिछले पांच दस्क में इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई,  सामाजिक व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते निर्मित नहीं हुएं , आधुनिक विज्ञान, वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित किए , यें सामाजिक, पारिस्थितिकी, भु गर्भिक जल भण्डारण, पर्यावरणीय परिस्थितियों में कही भी खरे 
 नहीं उतर रहें, वर्षा जल के भण्डार । अकेले राजस्थान में 22 बड़े बांध होने के साथ 256 छोटे बांध बनें जो विद्युत आपूर्ति, सिंचाई व्यवस्था, औधोगिक ईकाईयों के साथ पेयजल योजनाएं के माध्यम से सामाजिक व्यवस्थाओं को बनानें में सहायक रहें।
पिछले तीन दशक से सामाजिक विज्ञान की लुप्त होती उपयोगिता, नई तकनीक से जल व्यवस्था में आये बदलाव,"कूढ़ का पानी कूढ़ में", "हमारे पानी पर हमारा अधिकार" , ग्राम पंचायत द्वारा बांध बनाने की होड़, आदी अनेकों व्यवस्थाओं से आज बांध समाधान नहीं सामाजिक समस्या बन गये, नदियों सांसें गिनने लगी, जैवविविधता में बदलाव आया, पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव के साथ मानव समाज, जीव जंतु, वनस्पतियों पर विपरीत प्रभाव पड़ा। जल जंगल के साथ सामाजिक सरोकार व्यवस्थाओं में सहभागी बन कर कार्य कर रही अलवर राजस्थान में एल पी एस विकास संस्थान के अपने अनुभवों से ज्ञात होता है कि अलवर में 22 बड़े बांध जल संसाधन विभाग के पास 107 ग्राम पंचायतों के अधिनस्थ होने के इनमें पानी के आवक क्षेत्रों में ही जोहड़, एनिकट, चैकडेंम हजारों की संख्या में बनाएं गए, परिणाम स्वरूप सभी बांधों में पानी की आवक कम होने लगीं, बांध सुखने लगें, मंगलसर, बघेरी खुर्द, मानसरोवर, जयसमंद, देवती, समर सरोवर, रामपुर बांधों पर संकट के बादल मंडरा रहे, बांधों के रास्ते में बने छोटे छोटे अवरोधों से जहां बड़े बांध खत्म हो रहें वहीं उनके संरचनाओं को बदलने की साजिशें रची जा रही, नदियां वेंटिलेटर पर सांसें गिनने लगी, छोटे बांध पानी के साथ आए विधि प्रकार के अपशिष्टों से भरने लगें, पानी रास्ता बदलने लगा, नदियों की आंतरिक संरचनाओं में परिवर्तन होने के साथ बहाव क्षेत्र बदलने लगा, ये सामाजिक समस्याओं के साथ जलीय, पर्यावरणीय, पारिस्थितिकी समस्या पैदा होने के साफ संकेत हैं जिनसे बचने के लिए बांधों के बढ़ते कुनबे को रोकने के साथ नदियों पर बने छोटे अनुपयोगी अवरोधों को हटाना होगा जिससे जलीय आंतरिक प्रवाह, संरचनाओं, बहाव क्षेत्र में उत्पन्न अवरोधों से बचने के साथ सामाजिक विज्ञान व समाज द्वारा निर्मित बांधों को बचाया जा सकें।

  • लेखन:- रामभरोस मीणा

 

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