नहीं गुजेंगी शहनाई और न होंगे कोई मांगलिक कार्य
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि और चातुर्मास का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। देव शयनी एकादशी के बाद चार महीने के लिए शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है । क्योंकि इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है। जो कि सावन, भादौ, अश्विन और कार्तिक महीने के आखिरी दिनों तक रहता है। योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि चार महीनों तक देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते है और शिव जी सृष्टि का कार्य भार संभालते हैं। इन चार महीनों में शादी, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। हालांकि पूजा-पाठ, उपासना, पूजन अनुष्ठान, मरम्मत करवाए गए घर में प्रवेश, वाहन और आभूषण की खरीदारी जैसे काम किए जा सकते हैं।
17 जुलाई देवशयनी से सभी प्रकार के मंगल मुहूर्त समाप्त हो जाएंगे और 12 नवम्बर तक देवउठनी एकादशी के बाद से फिर से शुरू हो जाएंगे।
चातुर्मास में पूजा-पाठ, रामायण गीता और भागवत पुराण जैसे ग्रंथों का पाठ करें। जरूरतमंद लोगों की मदद करें। इससे जीवन में सुख-शांति आने के आसार रहते हैं।
चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। चातुर्मास में ऋत परिवर्तन और बारिश का मौसम होने से जल में हानिकारक बैक्टीरिया और फंगस ज्यादा होने के चांसेज रहते है और हमारी इम्यूनिटी पावर वीक रहती है और त्वचा संबंधित रोग भी हो सकते है।
इन चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है, इसी वजह से इस दौरान खानपान में लापरवाही करने से न सिर्फ दोष लगता है, बल्कि सेहत को भी नुकसान पहुंचता है। इसलिए चातुर्मास के पहले महीने सावन में पत्तेदार सब्जियों का सेवन नहीं करें वहीं भाद्रपद में दही, छाछ का सेवन करने से बचें। अश्विन महिने में दूध और चौथे महिने कार्तिक मास में हाई कैलोरी वाले उड़द, मसूर दाल और लहसुन प्याज, अरहर का सेवन नहीं करें।
- कमलेश जैन