नगर बसाये जो कभी दानी कहाये, सुनते हैं वे भी जेबकतरे हो गये झांगर श्याम, कोटड़ी के दशहरे मेले में देर रात तक जमा कवि सम्मेलन

Oct 13, 2024 - 11:43
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नगर बसाये जो कभी दानी कहाये, सुनते हैं वे भी जेबकतरे हो गये झांगर श्याम,  कोटड़ी के दशहरे मेले में देर रात तक जमा कवि सम्मेलन

भीलवाड़ा (राजकुमार गोयल) कोटड़ी. नवरात्रि महोत्सव की महानवमी के अवसर पर कोटड़ी - मेजा डेम के झांगर श्याम देव स्थान पर युगीन साहित्य प्रवाह संस्थान के संयोजन और झांगर श्याम सेवा समिति के तत्त्वावधान में कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत संचालक माण्डलगढ़ के मनीष सुखवाल ने 'छोड़ कर सारे काम यही एक काम करते हैं, आज की ये शाम झांगर श्याम के नाम करते हैं' से की। बिजयनगर से आये कवि ओमप्रकाश ओझा ने सरस्वती वंदना के बाद 'दिन-दिन कटरया रे, आधो यो जमारौ रेग्यो, म्हारा मन में रे,भाव को भुँवारो रेग्यो' जैसे राजस्थानी गीत सुनाए। राजस्थानी भाषा के कवि ओम आदर्शी ने अपनी राजस्थानी रचना 'म्हाका पड़ोस मं ब्याव हो, म्हाने नाचबा रो घणो चाव हो' और कवि मुकेश चेचाणी ने हास्य कविता 'जीमबा को नूंतो'  सुनाकर श्रोताओं को लोटपोट कर दिया। संपत साथी सरगांव ने नेताओं की कुर्सी पर अपनी पैरोडियों से लोगों का दिल जीत लिया। नाथद्वारा की कवयित्री शालू सांखला ने वीर रस की कविता 'ये वो शक्ति है जो आग में जल के भी जी जाती है, नारी घूंघट में अपने आंसू को भी पी जाती है' और गुलाबपुरा के वीर रस के कवि हेमंत चौबे ने 'आजादी के खातिर अपना लहू सींचना पड़ता है, वन्देमातरम गाते गाते फाँसी चढ़ना पड़ता है' रचना सुनाकर श्रोताओं में देशभक्ति का भाव भर दिया। कवि संजीव सजल ने अपनी पैरोडी 'लड़खड़ा करके तू रूबरू आ गया, तूने जितना कमाया नशा खा गया' सुनाकर समाज में नशाखोरी की प्रवृत्ति पर संदेश दिया। गौभक्त कवि रामेश्वर रमेश ने गौ सेवा के अपने प्रण और मिशन के बारे में बताकर अपना चर्चित गीत 'देस रो कल्याण चावौ तो गायां पाळो रे' सुनाया।  कवि अजीत सिंह चुंडावत ने 'देव दीपक' गीत सुनाकर झांगर श्याम की महिमा बताई। योगेश दाधीच योगसा ने हास्य रचनाओं से सबको खूब गुदगुदाया। उन्होंने 'मिटा सके जिसको किसी में वो दम है कहाँ, जिसपे चले ये जमाना वो लकीर बना सकता हूँ' पंक्तियां सुनाई तो श्रोताओं और कवियों ने भी भरपूर सराहना की। मोहन पुरी ने मुक्तक, राजस्थानी गीत और हिन्दी प्रेमगीत सुनाए। उनके मुक्तक 'जो  कभी  तालाब  थे वे चंद कतरे हो गये हैं, एक नन्हीं जान को अब ख़ूब ख़तरे हो गये हैं। शहर जिन्होंने बसाये  जो  कभी दानी कहाये, आजकल सुनते हैं वे  भी  जेब़कतरे हो गये हैं' पर श्रोताओं की ख़ूब वाहवाही मिली। कार्यक्रम में ग्राम पंचायत के सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और पूर्व सरपंच सहित सैंकड़ों की तादाद में श्रोता सुनने आये थे।

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