आमजन की सांसें फूला रहीं आबोहवा - मीणा

बढ़ती भोगवादी प्रवृत्ति को बदलने के साथ विकासवादी परिभाषाओं के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने वाली बनाईं जाएं जिससे हवाओं में घुलते जहरीली गैसों ख़राब होती आबोहवा से निपटा जा सके।

Nov 23, 2024 - 19:33
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आमजन की सांसें फूला रहीं आबोहवा - मीणा
प्रतिकात्मक छवि

उत्तरी शरद हवाओं के प्रारम्भ होते हीं एन सी आर क्षेत्र के साथ  दिल्ली पंजाब हरियाणा राजस्थान यूपी राज्यों में आबोहवा एका एक लोगों की जाने लेने को उतारु हों गई,  दिल्ली गुड़गांव भिवाड़ी एमआईए जैसे औधोगिक क्षेत्र में आम आदमी हवाओं में घुली जहरीली दुर्गंध से  इतना व्याकुल सहमा सा दिखाई देने लगा की अपने को सुरक्षित रखना मुश्किल समझ रहा है स्वस्थ व्यक्ति भी अपने कों ख़तरा महसूस कर रहा है वहीं बिमारियों से पीड़ीत व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाओं का सहारा लेना पड़ रहा इसी के परिणामस्वरूप हस्पतालों में ओपीडी बड़ते जा रही है आंखों में जलना फैफडों में फुलावट शरीर में आंक्सिजन की कमी, एलर्जी गले में दर्द के साथ विभिन्न बिमारियों ने आम व्यक्ति को घेरना प्रारम्भ कर दिया।
हरियाणा दिल्ली पंजाब में पराली जलाने से राजस्थान की स्थिति खराब होती जा रही है  राजस्थान के गंगा नगर हनुमानगढ़ कोटा बारां बूंदी के साथ शेखावाटी में पराली जलाने से सबसे अधिक परेशानी बढ़ते  सम्पूर्ण राज्य यलो,  रेड जोन में आने के साथ ग्रीन ज़ोन खत्म हो गया, 17 नवम्बर सायंकाल सरिस्का राष्ट्रीय टाईगर रिजर्व क्षेत्र के चारों ओर फैली सफ़ेद काली चादर एका एक  वायु गुणवत्ता सुचकांक कों तीन से चार गुणा ज्यादा बढ़ा दिया जों सरिस्का के इतिहास में प्रदुषण कों लेकर एक काला दिवस रहा जब एका एक यहां प्रदुषण का स्तर 300 के पार पहुंच गया,  इस ने साबित कर दिया की बढ़ते प्रदुषण के कारणों पर अम्ल नहीं किया गया तो  दिन दूर नहीं जब व्यक्ति को जीवन्त रहने के लिए आंक्सिजन क्लबों का सहारा लेना पड़ेगा और उससे भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं रह सकता जबकि प्रत्येक नागरिक के लिए यह सम्भव नहीं है वन्यजीव पशु पक्षियों का एसी स्थिति में हाल बेहाल हो रहा और यह सत्य भी है कि जब व्यक्ति हीं सुरक्षित नहीं है तब इन की परेशानी बढ़ना स्वाभाविक है।
पोल्यूशन को रोकने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए ग्रेडेड रिस्पांन्स एक्शन प्लान ( ग्रेप), राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड जैसी संस्थाओं का गठन किया गया लेकिन बावजूद इसके वायु की गुणवत्ता के स्तर में गिरावट लगातार जारी है यलो व रेड जोन बड़ते जा रहें हैं, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सुचकांक इन दिनों 400 के पार पहुंच गया, जयपुर में 250 - 300, भिवाड़ी 350 के आगे  पहुंच गया जों  एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार गम्भीर खतरनाक स्थिति में आते हैं, जयपुर का पीएम 10 पीएम 2.5 का स्तर 400 को पार कर गया जो 390 गुणा ज्यादा बढ़ा, इस गंभीर स्थिति में व्यक्ति हीं नहीं प्रत्येक जीव जन्तु ख़तरे में होते हैं और हालात इस बात को साबित भी कर रहे हैं कि थोड़ा परिवर्तन होने पर व्यक्ति का जीवंत रहना मुश्किल होगा। 
हालांकि वर्तमान में प्रदुषण से बचने के लिए सरकारी स्तर पर प्रदूषित क्षेत्रों में एंटी स्मोग गन, मैकेनाइज्ड स्वीपींग मशीनों का उपयोग तथा कृत्रिम वर्षा, पानी का छिड़काव जों किया जा रहा  वह क्षेत्र विशेष में समय विशेष के लिए कारगर साबित हो सकता है यह स्थाई समाधान  नहीं हो सकता। अब यह प्रदुषित क्षेत्र या जगह विशेष का मुद्दा नहीं रहा यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या है  प्रत्येक देश से इसका खात्मा करने की आवश्यकता है।
बात यह भी है कि वायु की गुणवत्ता को खत्म करने में किसी एक के शिर पर थोपा जाना बेहद ग़लत है, वर्तमान में आबोहवा कों जहरीली बनाने में पराली कों मुख्य मानना गलत ही नहीं  भुल भी है, हमें अपनी व्यवस्थाओं नितियों विकास की गतियों के साथ योजनाओं में परिवर्तन करने की सर्वाधिक आवश्यकता वर्तमान परिस्थितियों में महसूस हो रही है,  अपनी भौतिकवादी विचार धाराओं के साथ भोगवादी प्रवृत्ति में भी बदलाव लाना आवश्यक है। आवश्यकता है हम वाहनों के धुआं, इंडस्ट्रीज से निकलने वाली धुआं जहरीली गैसें,  सोलिड मैनेजमेंट, प्लास्टिक कचरे, बारुद के उपयोग पर ठोस कदम उठाते हुए पारिस्थितिकी सिस्टम को अनुकूल बनानें के लिए वन क्षेत्रों वनस्पतियों के साथ जल स्रोतों को सुरक्षित रखें जिससे वातावरण में फैलती जहरीली आबोहवा कों बड़ने से रोका जा सके। लेखक रामभरोस मीणा थानागाजी के अपने निजी विचार है।

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