बुद्ध पूर्णिमा 12 मई को, अहंकार को त्यागने और करुणा व प्रेम के रास्ते पर देता है चलने की प्रेरणा

लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन) बुद्ध पूर्णिमा केवल भगवान बुद्ध की जन्मतिथि नहीं है, यह उनके ज्ञान और त्याग की भावना का उत्सव है। उन्होंने जीवन के तीन बड़े सत्य- दुख, उसका कारण और मुक्ति का मार्ग दुनिया को बताए। बुद्ध पूर्णिमा सिखाता है कि अगर आप खुद को बदलना शुरू करें, तो दुनिया भी बदल सकती है।
योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि हिंदू धर्म में भी बुद्ध के ज्ञान को आध्यात्मिक विकास का जरिया माना गया है। कर्म, मोक्ष और शांति के सिद्धांत दोनों परंपराओं को जोड़ते हैं। बुद्ध पूर्णिमा सिर्फ एक पर्व नहीं, एक जीवन दर्शन है।यह दिन हमें अपने अंदर झांकने, अपने अहंकार को त्यागने और करुणा व प्रेम के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।
हर साल वैशाख महीने की पूर्णिमा को एक ऐसा दिन आता है जो न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी आध्यात्मिक साधकों के लिए विशेष होता है बुद्ध पूर्णिमा। इस दिन को भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिन उनके पूरे जीवन के तीन सबसे बड़े मोड़ों को एक साथ याद करता है।
बुद्ध, जिन्हें कई हिंदू परंपराओं में भगवान विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है, उन्होंने इस दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी। दक्षिण भारत में इस मान्यता को लेकर अलग धारणा है, वहां बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं माना जाता, बल्कि बलराम को आठवां और कृष्ण को नौवां अवतार माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा सिर्फ किसी धर्म का त्योहार नहीं, बल्कि ये उस रोशनी का उत्सव है जो अंदर से जीवन को बदल देती है—सच, अहिंसा और करुणा की ओर ले जाती है।
बुद्ध पूर्णिमा
गंगा स्नान, ध्यान, व्रत, और दान विशेष फलदायी माने जाते हैं। लोग मंदिरों में भगवान बुद्ध और विष्णु की पूजा करते हैं और शांति, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।






