नगर पालिका चुनाव में रहे प्रत्याशियों की धड़कन बढ़ी और बड़बोले प्रत्याशी मतगणना से पहले ही जीत कर बन गए पार्षद
हारने वाले प्रत्याशी भी कर रहे अपनी जीत का दावा
अलवर,राजस्थान/ राजीव श्रीवास्तव
अलवर:- जिले में शांतिपूर्ण सम्पन्न नगर पालिका चुनाव में रहे तमाम प्रत्याशी अपनी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है।उनके चाटुकार समर्थक भी उनकी जीत को लेकर इस तरह के मनगढ़ंत समीकरण बैठा रहे है कि प्रत्याशी फूल कर कुप्पा हो रहे है।शायद ही ऐसा कोई प्रत्याशी है जिसने स्वेच्छा से अपनी हार स्वीकार कर ली हो।प्रत्याशियों ने अपने वार्ड में किस जाति के और किस गली के कितने वोट उन्हें मिले होंगे यह सब आंकड़ा लगाकर जीत की खुशी में आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर ली है लेकिन वे प्रत्याशी किसी को यह नहीं समझा पा रहे है कि मतदाताओं ने उन पर क्यूं विश्वास कर उन्हें अपना मत दिया होगा।उन्हें ज़रा भी यह अहसास नहीं है कि हर वार्ड में सभी प्रत्याशियों को पटकडी देकर सिर्फ एक ही व्यक्ति अपनी जीत दर्ज करा सकेगा। दूसरी तरफ बीजेपी-कांग्रेस पार्टी के सिंबल को लेकर चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशी कुछ ज्यादा ही जीत को लेकर उत्साहित नजर आ रहे है। उन्हें लग ही नहीं रहा कि वार्डवासियों के मन में सिंबल को लेकर कोई क्रेज-हमदर्दी नहीं है बल्कि उन्होंने उन्हें इग्नोर कर चुनाव प्रचार में उनकी पहली पंसद रहे निर्दलीय प्रत्याशी को बहुमत देकर बोर्ड बनाने वाली पार्टियों के सामने मोल-भाव का विकल्प तैयार कर दिया है।दरअसल बैनर तले उतरे प्रत्याशियों बेवजह का कॉन्फिडेंस है कि वे वार्डवासियों की पहली पसंद नहीं होने के बावजूद सूबे के मुख्यमंत्री गहलोत और देश के पीएम मोदी के आशीर्वाद से जीत की नैया अवश्य पार कर लेंगे।
दरअसल प्रत्याशियों ने पार्षद के चुनावों को पीएम मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिष्ठा से भी जोड़ लिया है।उनका जोड़ना भी शायद जायज ही है।वाकई जिस पार्टी का बोर्ड बनता है उस पार्टी की मीडिया में काफी वाही वाही होती है।कांग्रेसी विचारधारा से जुड़े मीडियाकर्मी कहने लगेंगे गहलोत का जादू चल गया,मंत्री जुली की मेहनत और जिले में कराए गए विकास कार्यो विशेषकर कोरोना काल में मजदूर वर्ग को दी गई बड़ी राहत की बदौलत ही बोर्ड बन सका।दूसरी तरफ बीजेपी विचारधारा से मेल खाने वाले मीडियाकर्मी सबका साथ,सबका विकास कहते हुए मोदी सरकार की योजनाओं से जीत को जोड़ कर गुणगान करने लगेंगे।जबकि कुछ पत्रकारों का मानना है और सच्चाई यह है कि पार्षद के चुनाव सरकारों के लिए बेशक प्रतिष्ठा का सवाल हो सकते है लेकिन वार्ड में केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं को कुछ ज्यादा महत्व नहीं देकर मतदाता अपना कीमती वोट नहीं डालते बल्कि वार्ड मतदाता मुख्यतया चार प्रमुख बिंदुओं को लेकर ही अपना पार्षद चुनते है। उन्हें गर्मियों में भरपूर पेयजल चाहिए,अंधेरे में रोड लाइट का प्रकाश चाहिए और वार्ड की नियमित साफ सफाई के साथ राशन की समय समय पर सप्लाई चाहिए।वार्ड वासियों को यह जानने की कतई आवश्यकता ही नहीं है कि किसान आंदोलन के पीछे किस पार्टी का हाथ है या फिर किसान आंदोलन से किस पार्टी को नफा-नुकसान है।वार्डवासी ममता बनर्जी को भी गंभीरता से नहीं लेते है।
बहरहाल,चुनाव मैदान में उतरे तमाम प्रत्याशी अर्थहीन आंकड़ों को लेकर बेवजह अपनी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है लेकिन उनकी जीत का समीकरण कितना प्रभावशाली रहा यह मतगणना के बाद ही स्प्ष्ट हो पाएगा।उल्लेखनीय है कि मतगणना के बाद कई प्रत्याशी ऐसे भी होंगे जो कर्ज की वजह से कुछ दिनों के लिए ही सही मुंह छुपाकर वार्ड छोड़कर भागते नजर आएंगे। हलवाई,टेंट, फ्लेक्स,बेनर और कतिपय मीडियाकर्मी विज्ञापन के पैसे के लिए पराजित प्रत्याशियों को ढूंढते नजर आएंगे लेकिन वे पराजित प्रत्याशी हार के गम की वजह से सहज ही वार्ड या कस्बे में नजर नहीं आएंगे