चौमूं उपखण्ड में बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया गणगौर का पर्व

Apr 11, 2024 - 20:32
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चौमूं उपखण्ड में बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया गणगौर का पर्व

चौमूं / जयपुर ( राजेश कुमार जांगिड़ ) चौमूं उपखण्ड में बड़े हर्ष उल्लास के साथ गणगौर का पर्व मनाया गया। महिलाओं ने ईश्वर गणगौर को को घेवर का भोग लगाकर चुनरी ओढ़ कर सुख समृद्धि की कामना की। जानकारी के अनुसार  गणगौर पूजा सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जो सामाजिक एकता, साझा, संवेदनशीलता और भाईचारे को बढ़ावा देती है। भारतीय सनातन सभ्यता में अखंड सुहाग का प्रतीक गणगौर के पूजन और व्रत का अपना एक अलग ही महत्व है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला यह त्यौहार स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। वास्तव में गणगौर पूजन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। क्योंकि मां पार्वती ने भी अखंड सौभाग्य की कामना के लिए कठोर तपस्या की थी और इस तप के प्रभाव से भगवान शिव को पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। शास्त्रों के अनुसार तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरम्भ हुई। गणगौर पूजन के लिए विवाह योग्य कन्याएं शिव जैसे भावी पति को पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा भक्ति से यह पूजन करती है। वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, मंगल कामना और परिवार के साथ सुख समृद्धि की कामना करती है। यह त्यौहार महिलाओं के साधारण दैनिक जीवन को एक अलग रंग और जीवंतता देता है। वहीं गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्या है विवाहित स्त्रियां सुबह-सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहनकर सिर पर लोटा लेकर बाग बगीचों में जाती है। वहीं से ताजा जल लोटों में भरकर उसमें हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती है। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरूप ईश्वर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती है। शिव गौरी को सुंदर वस्त्र पहनकर संपूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित की जाती है। चंदन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह - सोलह बिंदिया रोली, मेहंदी व काजल भी लगाई जाती है। थाली में जल, दूध - दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर कर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर के छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती है। अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है। पूजन करने वाली समस्त स्त्रियां बडे़ चाव से गणगौर के मंगल गीत गाती है जो बहुत सुहावने लगते हैं। गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिंदूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती है। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड में आदि में इनका विसर्जन किया जाता है।

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