गाड़ियां लोहार, सरकारी योजनाओं से दूर सड़क किनारे काट रहे हैं जिंदगी
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लक्ष्मणगढ़ (अलवर /कमलेश जैन) वर्तमान समय के युग में तकनीकी पैमाना बढ़ने से हस्तकला में दक्ष लोगों के जीवन में परिवर्तन हुआ है। लेकिन लक्ष्मणगढ़ कस्बे में गाड़िया लोहार आज भी सड़क किनारे आशियाना डालकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। गाड़ियों में घरेलू सामान और सड़क किनारे चारपाई पर बिछौना यही उनके रहन सहन का तरीका है।
सड़क किनारे छोटी भट्ठी लगाकर और उसमें लोहे को तपाकर घरेलू वस्तुएं तैयार कर उन्हें गली मोहल्लों और गांवों में आवाज लगाकर बेचना उनकी आजीविका है। इस काम में गाड़िया लोहारों के पुरुष, महिला और बच्चे हाथ बंटाते हैं। इनके बच्चे पढ़ाई से कोसों दूर हैं। सरकार अनेक लाभकारी योजनाएं संचालित कर रही हैं, लेकिन उनका लाभ गाड़िया लोहारों को नहीं मिलता है। जनप्रतिनिधि और स्वयं सेवी संस्थाएं भी इनकी ओर ध्यान नहीं देती है। यह लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
गाड़िया लुहारों ने कस्बे में पंचायत समिति के क्वार्टर्स के समीप सड़क किनारे डेरा डाला हुआ है। करीब 6 परिवारों का डेरा पड़ा हुआ है। एक परिवार में पांच से छह सदस्य हैं। आवश्यक सामान इनकी गाड़ियों में और सोना बैठना तिरपाल लगाकर सड़क किनारे होता है।
जगह-जगह घूमकर कट रहा जीवन :- गाड़िया लोहारों का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। एक स्थान से दूसरे पर घूमकर जीवन कट रहा है। जिस स्थान पर इनके घरेलू वस्तुओं की बिक्री से आमदनी अधिक होती है, वहां अधिक समय तक रहते हैं। कम आमदनी वाले स्थान पर कुछ दिन रहकर जगह बदल देते हैं।
परिवार का भरण पोषण हो रहा मुश्किल :- गाड़िया लोहार का कहना है कि पहले उनके घरेलू वस्तुओं की खूब बिक्री होती थी। लोग उनके डेरों पर सामान बनवाने आते थे। नई नई तकनीक के घरेलू उपकरण बाजार में आने से उनका काम प्रभावित हुआ है। उनके परिवार का भरण पोषण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।
मूलभूत सुविधाओं से वंचित :- गाड़िया लोहार मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। समाज सेवी विक्रम सिंह नरूका का कहना है कि उनको सरकारी राशन का लाभ नहीं मिल रहा है। आज तक उनको आवास भी नहीं मिले हैं। उनके बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नही दिया जाता है। बच्चों की शादी में अनुदान नहीं मिलता है। शासन व प्रशासन उनकी कोई सुध नहीं लेता है। सरकार को उनके समाज की ओर ध्यान देना चाहिए।
रुपये नही तो कैसे बने घर :- कहना है कि उनके पास इतने पैसे नहीं है। जिससे वह अपने लिए एक आशियाना बना सके। इस कार्य से उनको प्रतिदिन 300 से 400 रुपये की कमाई होती है। यह पैसा उनके परिवार पर ही खर्च हो जाता है।
मजबूरी में नहीं कर पा रही पढ़ाई :- आरती का कहना है कि उनका सपना है कि शिक्षा ग्रहण कर आगे बढे़, मगर उनके सामने मजबूरी है कि वह परिवार के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। वह चाहते हैं कि उनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था हो, जिससे उनको डेरे पर शिक्षा मिल सके।
पढ़ने की तमन्ना कि उनके परिवार में कोई भी एक अक्षर तक का ज्ञान नहीं रखता है। वह पढ़ना चाहती है। जिससे वह भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ कर आगे बढ़ सके।
सरकार को देना चाहिए। उनका परिवार मूल रूप से चित्तौडगढ़ के निवासी हैं। वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम कर देश के विभिन्न राज्यों में लोहे के घरेलू सामान बेच कर परिवार का पालन पोषण करते हैं। सरकार को हमारे समाज की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
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