रसोई से सब्जी छूमंतर, महंगाई ने तोड़ी कमर - राम भरोस मीणा

Jul 4, 2024 - 18:46
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रसोई से सब्जी छूमंतर, महंगाई ने तोड़ी कमर - राम भरोस मीणा

बढ़ती जनसंख्या शहरीकरण के दबाव में एक तरफ कृषि भूमि कम पड़ती दिखाई दे रही दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग घटते जल फैलते प्रदुषण से कृषि फसलों के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ने  उत्पादन कम होने  लागत अधिक आनें से आर्थिक विकास अवरूद्ध सा होता  जा रहा है जों वर्तमान में दिखाई देने लगा है।  कृषि से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति कर्ज में डूबे जा रहा है कुछ डूबे दिखाई दे रहे हैं,  आपसी उधारी वापस नहीं कर पा रहे अपने स्वाभिमान के साथ आर्थिक तंगी से जूझते हुए जीविका के साधनों को बेच ने को मजबूर सा दिखाई देने लगे है,  इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं  क्योंकि यह बात आरबीआई ने कह दी है कि बैंक की उधारी डुब रहीं हैं लोग कर्ज चुकाने में असमर्थता दिखा  रहें हैं,  यही नहीं यह भी कहा कि लोगों द्वारा की जाने वाली डिपोजिट भी कम हो रही है और कम होना स्वाभाविक है क्योंकि आय के मुख्य स्रोत खत्म हो रहें हैं। कोरोना के बाद लोगों पर कर्ज बढ़ गया है, जून की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में यह बात कही जों सत्य भी है क्योंकि आपसी में ली गई उधारी भी चुकानें में लोग असमर्थ हैं भला बैंक कों कर्ज कहा से चुकाएगा  जिनके घर से दाल का पानी ग़ायब होता जा रहा है उनके पास बचा हीं क्या होगा जो उधारी चूकता कर सकें।
आरबीआई ने सेविंग कम होने की बात कही जिसे लेकर अब बात यह आतीं हैं कि लोग सेविंग क्यों नहीं कर रहे सेविंग करनी चाहिए बगैर बचत के जीवन कैसे चलेगा, सामाजिक जीवन जीने के लिए बच्चों के शादी विवाह मकान स्वरोजगार सभी में पैसे की बहुतायत में आवश्यकता होती है, कौन नहीं चाहता कि मैं बचत नहीं करु ,   प्रत्येक नागरिक बच्चा युवा बुजुर्ग सभी चाहते हैं परन्तु मजबूरी है कि स्वरोजगार नहीं,  नोकरी नहीं,  कृषि भूमि नहीं,  घर परिवार में आय का कोई श्रोत नहीं, कमाने वाले कम खर्च ज्यादा,  फिर बचत हो कैसे कोनसा रास्ता अपनाएं जो बचत हो, परिवार की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हीं होना मुश्किल सा हो रहा है फिर बचत कैसे हों। आर्थिक तंगी ने कमर तोड़ कर नोट बंदी ओर कोरोना में कंगाल बना दिया अब महंगाई बेरोजगारी की मार, परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। यह बात सरकारें भी जानतीं है, प्रत्येक व्यक्ति को भी यह पता है कि देश का प्रत्येक नागरिक बेरोजगारी के चलते लाचार है। आखिर कब तक इसे छुपा कर रखेंगे, समाधान ढूंढना होगा।
दालों की कीमत में 17 प्रतिशत सब्जियों में 27 से 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी दुसरा कर्ज व महंगाई की मार से प्रत्येक पांचवें परिवार में सब्जी का तडका खत्म सा हो गया,  छटे सातवें परिवार ने सल्पटआ चालू कर  चीटनी रोटी को मजबुर हो गया। आखिर क्या कारण है कि लोग अपने दो वक्त की रोटी सही से पेट भर खा नहीं सकते। अब सवाल यह उठता है कि खाद्य महंगाई जों बढ़ी उसका कारण कहीं जनसंख्या वृद्धि दर खाद्य पदार्थो के उत्पादन की तुलना में  अधिक नहीं बढ़ रही है अथवा जनसंख्या की पूर्ति के लिए कृषि योग्य भूमि कम नहीं पड़ गईं या फिर उत्पादन घट गया। वास्तविकता सत्य है कि जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, उत्पादन घट रहा है, कृषि योग्य जमीन ऊसर बंजर होने के साथ कम होतें जा रही है।
सत्य यही है कि जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन कम होने से सब्ज़ियों के भाव आसमान छूना प्रारम्भ कर दिये, ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी के भाव में बढ़ोत्तरी हुई जिससे आज लोकी 45 रुपए, पालक 20 रुपए, बैंगन 50 रुपए, टिण्डा 90 रुपए, प्याज सफ़ेद 40 रुपए, हरी मिर्च 90 रुपए, धनिया 200 रुपए प्रति किलो के भावों से बिकने लगा जबकि शहरी क्षेत्रों में सब्जी दाल के भाव कहीं ओर अधिक होने से नकारा नहीं जा सकता। किसानों द्वारा आधुनिक तकनीकी प्रयोग कर अधिक से अधिक उत्पादन की होड़ में सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं लेकिन फिर भी आवश्यकता की पूर्ती नहीं होना सवालिय प्रशन उठा हीं देती है कि आखिर कारण क्या है जो भरपेट रोटी के साथ सब्जी प्राप्त नहीं हो पा रही।
एक बेरोजगार ग्रामीण या दिहाड़ी मजदूर इस बढ़ती महंगाई जों पिछले डेढ़ दो दशकों से लगातार बढ़ती ही जा रही है, बढ़ते बढ़ते आज चर्म पर पहुंच सी गई भला सब्जी दाल कैसे खरीद सकता है, उत्पादन घटने के साथ बढ़ती डिमांड से  खाद्यान्नों के भाव विशेष कर सब्जी दाल चावल के इतने आसमान में पहुंच गए कि बाजार से सब्जी लेकर आना मुश्किल हो गया। महंगाई सभी की बढ़ी दूध छांछ घी हल्दी मिर्च आटा लेकिन आज सब्जी ने रिकार्ड बनाने को लेकर अपनी क़मर कस रखीं हैं, ग्राम परिवेश में मानें तो भोजन के साथ 95 प्रतिशत आबादी को फल नसीब नहीं होते, 70 प्रतिशत कों सलाद तथा 50 प्रतिशत कों दाल नसीब नहीं होती फिर हमें पौष्टिक आहार की बात करें वह सरा सर मिथ्या है, आज आवश्यकता है कि सरकारें इन समस्याओं को समय रहते समाधान ढूंढने की कोशिशें करें, किसानों को प्रोत्साहित करें, कृषि भूमि पर बढ़ते शहरीकरण औधऔगइकरण के अतिक्रमण से बचाएं, एक गरिब के घर सब्जी पहुंचाने की सोच बनाएं, अन्यथा देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा कुपोषित हों सकता है जो शर्मसार करने वाला होगा। लेखक के अपने निजी विचार है।

  • रामभरोस मीना

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