12 नवंबर देवउठनी एकादशी से गूंजेगी शहनाइयां
लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन ) कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीने ‘चातुर्मास’ कहलाते हैं। चातुर्मास में विवाह, शादी जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही एक बार फिर से शुभ कार्यों की शुरूआत होने जा रही है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउत्थान एकादशी कहा जाता है। इसे देव प्रबोधिनी या देव उठावनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिनका शयन काल देवउठानी एकादशी के दिन समाप्त होता है। देवउठानी एकादशी पर माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का विधान है। इसके बाद से चातुर्मास से रूके हुए विवाह आदि के मांगलिक कार्यक्रमों की शुरूआत हो जाती है। अब 12 नवम्बर को देवउठनी एकादशी पर फिर से शहनाई गूंजेगी। शादियाें का दौर शुरू होगा। विवाह शादी का सीजन शुरू होने से बाजार में भी चहल-पहल बढ़ गई है।