बहन को नोटों से बनी चुनरी ओढ़ाई: थाली में 51लाख कैश व 25 तोला सोना लेकर मायरा भरने पहुंचे मामा
मेडतासिटी (नागौर, राजस्थान/ तेजाराम लाडणवा) भारतीय शादियों के रीति-रिवाज सभी को भी हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं। शादी में निभाई जाने वाली ऐसी ही एक रस्म है मायरा। जिसे कई स्थानों पर भात भी बोला जाता है। मायरे को दुल्हा-दुल्हन के मामा की ओर से भरा जाता है। यूं तो मायरा इंडियन वेडिंग कल्चर की एक सामान्य रस्म है। लेकिन राजस्थान के नागौर में मायरा भरने की इस रस्म को काफी खास माना जाता है। यहां ये परंपरा के साथ मान और सम्मान के रस्म की तौर पर भी प्रचलित है। इन दिनों यहां दो बहनों की शादी में उसके मामाओं द्वारा भरा गया मायरा काफी सुर्खियों में है।
यह मायरा भरा गया नागौर के लाडनूं में। यहां किसान मामाओं ने मंगलवार को अपनी 2 भांजी की शादी में करीब 71 लाख रुपए का मायरा भरा। थाली में नोट और जेवरात भरकर लाए तो सभी हैरान हो गए। भाइयों के इस प्यार को देख इकलौती बहन के आंख में आंसू आ गए। इतना ही नहीं भाइयों ने बहन को 500-500 रुपए के नोटों से सजी चुनरी भी ओढ़ाई।लाडनूं की रहने वाली सीता देवी की दो बेटियों प्रियंका (27) और स्वाति (25) की मंगलवार को शादी थी। भाई मगनाराम ने बताया कि 5 भाइयों के बीच सीता देवी इकलौती बहन है। बड़े भाई रामनिवास की तीन साल पहले मौत हो गई थी। उनकी इच्छा थी कि बहन का मायरा जब भी भरे उसकी चर्चा हो। मायरा में किसी भी तरह की कमी नहीं रहे। इस पर जायल के राजोद निवासी चारों भाई सुखदेव, मगनाराम, जगदीश, जेनाराम और भतीजा सहदेव रेवाड़ मायरा लेकर पहुंचे। रिश्तेदारों व पंच पटेल की मौजूदगी में मायरा भरा गया।
51 लाख रुपए कैश दिए
मगनाराम ने बताया कि बड़े भाई की इच्छा के अनुसार 30 साल से रुपए जमा कर रहे थे। शुरू से परिवार की इच्छा थी कि दो भांजी का मायरा गाजे-बाजे के साथ भरा जाए। इस पर चारों मामा थाली में 51 लाख 11 हजार रुपए, 25 तोला सोना और 1 किलो चांदी के जेवरात लेकर पहुंचे। इसके अलावा बहन के ससुराल वालों को भी सोने-चांदी के जेवरात गिफ्ट के तौर पर दिए गए।
नागौर का मायरा प्रसिद्ध
मारवाड़ में नागौर के मायरा को काफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। मुगल शासन के दौरान के यहां के खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मान कर भरे गए मायरा को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं।
कहा जाता है कि यहां के धर्माराम जाट और गोपालराम जाट मुगल शासन में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली दरबार में ले जाकर जमा करने का काम करते थे। इस दौरान एक बार जब वो टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली जा रहे थे तो उन्हें बीच रास्ते में रोती हुई लिछमा गुजरी मिली।उसने बताया था कि उसके कोई भाई नहीं है और अब उसके बच्चों की शादी में मायरा कौन लाएगा ? इस पर धर्माराम और गोपालराम ने लिछमा गुजरी के भाई बन टैक्स कलेक्शन के सारे रुपए और सामग्री से मायरा भर दिया। बादशाह ने भी पूरी बात जान दोनों को सजा देने के बजाय माफ कर दिया था।