सम्पादकीय:- बाजारी ऑक्सीजन से जीवित रहना नामुमकिन, प्रकृति प्रदत्त है जीवन रक्षक

Apr 22, 2021 - 12:15
 0
सम्पादकीय:- बाजारी ऑक्सीजन से जीवित रहना नामुमकिन, प्रकृति प्रदत्त है जीवन रक्षक

मानव सहित सभी जीव जंतुओं को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, भोजन के बिना सप्ताह भर से ज्यादा जीवित रह सकते है, पानी के बिना घंटों भर, लेकिन ऑक्सीजन के बिना क्षण भर जीवित रहना भी नामुमकिन है। हमें हर दिन हवा से ऑक्सीजन की पूर्ति होती है और सांसों द्वारा ली ऑक्सीजन फेफड़ों से बहने वाले रक्त में प्रवेश करने के बाद हर्दय ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के सभी भागों को भेजता है, जिसके माध्यम से हम जीवित रहते हैं। आखिर यह वायु हमें प्राप्त कैसे होती है ?  किसके माध्यम से होती है ? और किस मात्रा में होती है ? यह एक विचारणीय बिंदु ! लेकिन वर्तमान में भौतिकवाद के चलते हम मैं से चाहे सरकार हो,  समाज हो, व्यक्ति हो, कोई भी उसी यंत्र की तरफ ध्यान नहीं दे रहा,  जिससे हमें प्राणवायु प्राप्त होती है। आखिर है कौन, जो हमें जीवित रखने में मददगार साबित होता है। जिसके होने से दुनिया में मानव, पशु, पक्षी, वन्य जीव सब प्राणी जीवित है ! वह वृक्ष है।
वृक्ष पौधे सूर्य के प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से अपना ग्लूकोज स्वयं बनाते हैं, वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प को लेकर इस काम में उनका हरा रंजक (क्लोरोफिल) महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,और सूर्य के प्रकाश  से इस प्रकाश संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज के साथ ऑक्सीजन बनती है,

जिसे वायुमंडल में वापस छोड़ देते हैं, उसे हम श्वसन क्रिया के माध्यम से ग्रहण कर जीवित रहते हैं।ऑक्सीजन रंग हीन, स्वादहीन तथा गंध रहित गैस के साथ एक रासायनिक तत्व भी है जो सर्व व्यापी है। लेकिन ऑक्सीजन के इन भंडारों को हमने खत्म करना प्रारंभ कर दिया।
विज्ञान पत्रिका "नेचर " में 2015 में प्रकाशित रिसर्च में बताया कि मानव जाति ने 12 हजार वर्ष पहले खेती करना शुरू किया, तब से अब तक मानव ने दुनिया के कुल करीब 6 खरब पौधों  में से आधे को काट डाला, ज्यादातर पेड़ों की कटाई कुछ सदियों में ही हुई, खासतौर से औद्योगीकरण की शुरुआत के बाद दुनिया के जंगलों की तादाद 32% घट गई । जिससे "ऐसा लगता है कि बिना दरख्तों के सारी उम्मीदें टूट गई है"।  "जंगल हमारी दुनिया की लाइफ लाइन है, उनके बगैर हम पृथ्वी पर जिंदगी का पहिया घूमने का सपना भी नहीं ले सकते" । "पौधे ही जीवन है" पौधे कार्बन सोखते है, मिट्टी की परत को बनाए रखने के साथ  पानी के चक्कर के नियमितीकरण में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं । इसीलिए भारतीय सभ्यता, संस्कृति व समाज में वृक्षों की पूजा आध्यात्मिकता के साथ जोड़कर काटने पर प्रतिबंध लगाया गया ,  बड़े बड़े आंदोलन भी पौधों को बचाने के लिए हुए,जैसे  "चिपको आंदोलन"। पौधों को धार्मिकता के साथ जोड़कर इनके लिए व्रत, उपवास, उत्सव मनाए जाते रहे, पीपल पुन्यु, बरगद अमावस्य, तुलसी पूजन, खेजड़ी पुजन आदि जीते जागते उदाहरण है। इनकी पूजा के पीछे यह छुपे राज साफ बयां करतें हैं कि ये हमारे मित्र, पालक है। पीपल, नीम, तुलसी, बरगद, बांस, पीस लिली, समुद्री पौधे 24 घण्टे  ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्सीजन के  अलावा ये  हमारे प्राकृतिक वातावरण को स्वच्छ व सुंदर बनाने में मददगार है। "पीपल के सर्वाधिक ऑक्सीजन देने के गुण के कारण श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं । अर्थात हर तरह से कल्याणकारी"। लेकिन फिर भी इतनी उदारता के बावजूद वृक्षों को नष्ट किया जा रहा है।

बढ़ते औद्योगीकरण, फैलते  प्रदूषण, घटते जंगल, कटते पैडों के चलते आज हमें सांस लेना भी दुर्लभ हो रहा है, विभिन्न प्रकार की बीमारियां, महामारीयों ने चारों ओर से घेर लिया,  जिसके चलते प्राण वायु की कमी महसूस होने लगी है।  कोरोना  के बिगड़ते हालातों में ऑक्सीजन की कमी एक  बड़ा संकट होने के साथ देश के कोरोनावायरस प्रभावित राज्यों में जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान मैं मरीजों की मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण होने लगी। वैसे कोरोना में बढ़ते ऑक्सीजन के संकट से निपटने के लिए भारतीय रेल ने "ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत की है"। लेकिन फिर भी सफलता मिलना नामुमकिन । ऑक्सीजन मरीजों,  उद्योगों के साथ  आम जन को चाहिए। ऑक्सीजन की कमी महसूस होने  पर उसकी पूर्ति होना भी बहुत जरूरी है, जिसके चलते लोग ऑक्सीजन की पूर्ति करने के लिए ऑक्सीजन बार में जाने लगे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद कर घर में रखने लगे हैं। लेकिन यह स्थाई उपाय नहीं, वही आम आदमी की पहुंच के बाहर है। बढ़ती बीमारियों में अस्थमा, हाइपोक्सिया, नाक, गला, फेफड़ों से संबंधित बीमारियां अधिक मात्रा में फैलने लगी है, हर घर परिवार में इनके मरीज मिलने लगे, जिसके चलते बाजारी सिलेंडर से हर किसी को बचाना नामुमकिन है। ऑक्सीजन श्वसन क्रिया के साथ-साथ आग जलाने में भी काम आता है,  उद्योगों को चलाना भी बहुत जरूरी है।इसका उत्पादन जो हो रहा है उससे कई गुना अधिक इसकी डिमांड बढ़ रही है,वही इसके बढ़ते दामों से आम आदमी खरीद नहीं सकता, जानवरों, पशु- पक्षियों , जीव जंतुओं, किट - पतंगो के लिए फिर भी संकट। "हमें प्रकृति प्रदत ऑक्सीजन चाहिए"। जिससे मानव के साथ-साथ सभी जीव जंतु, पशु पक्षी, कीट पतंगे जीवित रह सके और इसकी पूर्ति ऑक्सीजन के अपार भंडार वन व वन संपदा ही कर सकते हैं।एक एकड़ के पेड़ पौधों से लगभग 6 टन कार्बन डाइऑक्साइड खत्म होता है और 4 टन ऑक्सीजन वायु को पेड़ों के माध्यम से प्राप्त होती है, जो सर्वव्यापी, सबके लिए उपलब्ध होती है। अतः हमें वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकते हुए ऑक्सीजन देने वाले पौधों के विकास पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।

लेखन:- रामभरोस मीणा

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

एक्सप्रेस न्यूज़ डेस्क बुलंद आवाज के साथ निष्पक्ष व निर्भीक खबरे... आपको न्याय दिलाने के लिए आपकी आवाज बनेगी कलम की धार... आप भी अपने आस-पास घटित कोई भी सामाजिक घटना, राजनीतिक खबर हमे हमारी ई मेल आईडी GEXPRESSNEWS54@GMAIL.COM या वाट्सएप न 8094612000 पर भेज सकते है हम हर सम्भव प्रयास करेंगे आपकी खबर हमारे न्यूज पोर्टल पर साझा करें। हमारे चैनल GEXPRESSNEWS से जुड़े रहने के लिए धन्यवाद................