पित्र ऋण से बढ़ा है वृक्ष ऋण, चुकाना जरूरी - राम भरोस मीणा
थानागाजी ,अलवर
आज बढ़ते तापमान, चलतीं गर्म हवाओं, जलती धरा से ताप घात होने का शोर चल रहा है, आम जन जीवन अस्त-व्यस्त परेशान हो रहा है, हिदायतें दी जा रही है की वर्तमान में ग्लोबल बाउलिंग जोरों पर है, तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जा रहा है, राजस्थान में यह बाड़मेर का 28 साल पुराना रिकॉर्ड तोड दिया। पृथ्वी ग्रह के उपर बड़ते ताप में सहयोग कर रहे औधोगिक इकाईयों, परिवहन के साधनों, फैलती प्लास्टिक, जलते अपशिष्ट, कटते पेड़ों तथा जंगलों की आग ने आज ग्लोबल वार्मिंग से बाउलिंग प्रारम्भ कर दिया।
ताप घात तेजी से बढ़ रहा है, व्यक्ति के अपने निजी स्वार्थ प्रीता के चलते कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का फैलाव इतना हों गया की शुद्ध वायु मिलना मुश्किल हो गया।
तापमान बढ़ने के साथ व्यक्ति पशु पक्षी जानवरों कीट-पतंगों सभी को अधिक पानी छांव नम भूमि अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है, इन परिस्थितियों में वातानुकूलित जगह कों खोजने लगते हैं, अपने आवास के आसपास उस जगह थोड़ा आराम महसूस कर सकें, ठहर सकें, ताप घात से बच सकें। यह सही है कि हीटवेव बड़ने से स्वाभाविक सम्पूर्ण वातावरण तेजी से गर्म होता है, शरीर बाहरी ताप के साथ आंतरिक ताप बढ़ने से बचने के लिए पेड़ पौधे याद आना प्रारम्भ होते हैं, इन परिस्थितियों में वह यह भी महसूस करता है कि हमारे सच्चे मित्र पेड़ पौधे हैं हमारी सुरक्षा करते हैं, पर्यावरण में मानवीय तथा प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा कवचों का काम करते हुए रक्षा करते हैं। यह सत्य है कि हमें छांव तथा पेड़ के साथ व्यक्ति प्रकृति पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का केवल पुस्तकीय ज्ञान है, व्यवहारिक नहीं, पेड़ का महत्व और आवश्यकता तब समझने में आते हैं जब धरती पर पानी की कमी और तापमान बढ़ने से गर्म हवाओं में शरीर पसीजने लगता हो, व्यक्ति श्रष्टि से अपना अंत समझता हो, उन परिस्थितियों में पेड़ पौधों झरनों नदी नालों बाग बगीचों ताल तलैयों का महत्व समझने लगता है।
खैर जानते सब है कि पेड़ पौधों का हमारे जीवन से अंतर सम्बन्ध है लेकिन उसे हम भुल रहे हैं प्रकृति से प्रेम करुणा ना अपना कर दुर जा रहें हैं उन्हें समझ नहीं रहे हैं, हमें उन सभी को समझना चाहिए जो इस श्रष्टि कों प्रत्येक सजीव प्राणी के अनुकूल बनाएं रखते हैं, सभी जीवों को जीवन्त रहने में मदद करते हैं, भोजन पानी छांव मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं और ऐ सब पेड़ पौधों झाड़ियों से प्राप्त कर सकते हैं। पेड़ों के साथ व्यक्ति का अंतर सम्बन्ध मानव की उत्पत्ति के साथ बन जाता है, भोजन पानी हवा ईंधन छांव जीवन्त रहने योग्य वातावरण इन्हीं से मिलता है हमें श्रद्धाहीन नहीं होना चाहिए, इनके प्रति श्रद्धा सम्मान दया प्रेम करुणा त्याग कों अपनाना चाहिए, भौतिक सुख सुविधाओं को त्यागना चाहिए, पानी पेड़ के संरक्षण में काम करना चाहिए।
वेदों पुराणों उपनिषदों धार्मिक ग्रंथों संस्कृति और समाज सभ्यता इतिहास सब प्राकृतिक संसाधनों नदी पहाड़ जंगल जों भी है उन्हें सुरक्षित रखने जानवरों पक्षियों को संरक्षण देने की शिक्षा देते हैं, सत्य है प्रकृति प्रदत संसाधनों के साथ जब-जब छेड़छाड़ हुई होगी तब तब इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए समाज शास्त्रियों समाजसेवकों समाज विज्ञानीयो द्वारा धर्म आस्था के साथ जोड़कर जागरूक किया ओर उसी का परिणाम रहा की पिछले तीन दशकों पहले धराड़ी प्रथा लागू रही ओर वह भी प्रत्येक गोत्र समाज के साथ जो पेड़ ही नहीं जंगलों को संरक्षण देने वाली भारतीय परम्पराओं में श्रेष्ठ रहीं क्यों व्यक्ति समाज और उस वक्त के शासक प्रशासक यह समझ गये होंगे की "जंगल ही जीवन है" जंगलों के बगैर हम सुरक्षित नहीं है।
आज वही समय है जो पृथ्वी को विनाश से बचाने के लिए पंचभूतों के सरंक्षण की और ध्यान आकर्षित कर रहा है उन प्रथाओं को पुनः लागू करने को कह रहा है जो इन्हें सुरक्षित रखने में मददगार बनें, हमें चाहिए कि हम देव ऋण पित्र ऋण ऋषि ऋण को चुकानें के लिए हवन दान पुण्य के साथ धार्मिक अनुष्ठान करते हैं सामुहिक भोज करते हैं व्यक्तिगत स्तर से सहयोगी बनते हैं उसी तरह हमें जल ऋण वृक्ष ऋण को चुकानें के लिए काम करने की आवश्यकता है, जंगल अरण्य रुंध गोरव्या देव बनिया बाग बगीचों का संरक्षण करना होगा, प्रत्येक व्यक्ति परिवार समाज कों सहयोग के साथ आगे आ कर काम करना होगा ताकि हम ताप घात से बच सकें, धरती को जलने से बचा सकें, श्रष्टि कों एक विनाश से बचा सकें। लेखक के अपने निजी विचार है।
लेखक:- राम भरोस मीणा पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है।