अधिकारी उड़ा रहे हैं कानून की धज्जियां नहीं देते हैं आरटीआई की जानकारी
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लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन) विभाग के अधिकारियों की मनमानी कहे अथवा लापरवाही एक वर्ष के बीत जाने के बाद भी आरटीआई का जबाब नहीं दिया जाता है । आरटीआई के कागज नगर पालिका दफ्तर में पड़े धूल फांकते है। वहीं पीड़ित आवेदक कई बार लिखित में पत्र प्रेषित कर चुका है। किन्तु अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी है। जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम मात्र कागजी आदान प्रदान तक ही सीमित रह गया है।
कस्बे के जागरूक समाजसेवी आईटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र शर्मा का कहना है कि अधिकारी सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की जमकर धज्जियां उड़ाने में लगे हैं। अधिकारी उक्त कानून को सिरे से नकार कर मनमानी चला रहे हैं। जनहित में चाही गई जानकारी कीअधिकारियों ने एक साल बीतने पर भी आवेदक द्वारा मांगी सूचनाओं का अभी तक कोई भी जबाब नहीं दिया है। जबकि नियम के अनुसार एक माह में जबाब देना अनिवार्य है।
आवेदक ने की लोकायुक्त से शिकायत: आरटीआई आवेदक जितेंद्र शर्मा ने सूचनाएं उपलब्ध न कराने पर लापरवाह अधिकारियों की शिकायत की है। आवेदक का कहना है कि अधिकारी अपनी मनमानी चलाकर नागरिकों को परेशान करने में लगे हैं।
- नगर पालिका अधिशासी अधिकारी का कहना है कि जानकारी उपलब्ध कराने के लिए संबधित अधीनस्थ कर्मचारी की जिम्मेदारी तय करी हुई है। वहीं दूसरी ओर सूचना अधिकार अधिनियम से आम आदमी सशक्त हुआ है। लेकिन इससे नौकरशाह काफी परेशान हैं। नौकरशाह कह रहे हैं कि आरटीआई के सवालों में वह उलझे रहते हैं। इससे काम प्रभावित होता है।
इधर लोगों का कहना है कि यदि वे इस एक्ट के सिर्फ एक प्रावधान को अपने अपने विभाग में लागू कर दें तो जनता को बात-बात पर आरटीआई लगाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
- विरेंद्र कोठारी पूर्व कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष का कहना है कि अधिकारी सारी सूचनाएं पब्लिक डोमेन में डाल दें फिर देखें कि आरटीआई का प्रेशर कम होता है या नहीं।ऐसा करने से जिसे जो सूचना चाहिए वह उस विभाग की वेबसाइट से निकलवा लेगा। इससे सूचना लेने में आरटीआई जितना वक्त नहीं लगेगा। एवं विभाग को भी परेशानी नहीं होगी।
- आरटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र शर्मा कहते हैं कि हर विभाग में आईटी के लिए बजट आता है। उसके तहत उसे पुराना रिकॉर्ड भी स्कैन करवाकर ऑनलाइन करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति किसी अधिकारी के वेतन के बारे में सूचना चाहता है तो उसे आरटीआई लगाने की जरूरत क्यों पड़े। जब हर विभाग के लेन-देन का ऑडिट होता है तो फिर यह जानकारी वेबसाइट पर क्यों नहीं अपलोड की जाती। जबकि नियम में यह प्रावधान दिया हुआ है। फिर लोगों का आरटीआई लगाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा।
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