अखंड- सौभाग्य का पर्व गणगौर 31 मार्च को

लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन) प्रतिवर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर पूजा मनाई जाती है। गणगौर का पर्व 31 मार्च, सोमवार को मनाया जाएगा। दिल्ली समयानुसार तृतीया तिथि 31 मार्च 2025 को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी और 01 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगी।
योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि गणगौर व्रत भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है, जिसमें कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं।
गणगौर का अर्थ क्या - गणगौर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - "गण" और "गौर"। "गण" का अर्थ होता है भगवान शिव और "गौर" का अर्थ है देवी पार्वती, जिन्हें गौरी भी कहा जाता है। इस प्रकार, गणगौर का अर्थ है शिव और पार्वती का दिव्य मिलन, जो प्रेम, समर्पण और अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। गणगौर पर्व विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है, जो मां गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन और अच्छे वर की प्रार्थना करती हैं।
गणगौर व्रत कैसे मनाते हैं? - वैसे तो गणगौर व्रत की शुरुआत होली के बाद से ही हो जाती है। विवाहित और कुंवारी महिलाएं इस पर्व को पूरे नियम और निष्ठा के साथ करती हैं। 16 दिन तक व्रत रखने वाली महिलाएं हर दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनतीं हैं और मिट्टी की गणगौर (गौरी) और ईसर (भगवान शिव) की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं।
गणगौर व्रत का महत्व:- गणगौर व्रत का महत्व बहुत अधिक है। इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मिलता है, जबकि कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था, तभी उन्हें शिवजी का आशीर्वाद मिला था। इसी कारण गणगौर व्रत को अखंड सौभाग्य का पर्व माना जाता है।






